लखनऊ। स्वरास्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व , पुरोगामी ऐतिहासिक साम्राज्य के 350 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आगामी सितम्बर माह में आगरा में विशाल बौद्धिक महासम्मेलन का आयोजन किया गया है। उक्त महासम्मेलन में शिवाजी महाराज के देश भर के बंसजों को आमंत्रित किया जा रहा है।
उक्त जानकारी छत्रपति शिवाजी राजे स्वराज समिति के संस्थापक संरक्षक एवं शिवाजी महाराज के बंसज जनार्दन पाटिल ने समिति के लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय के उद्घाटन समारोह पर आयोजित विचार गोष्टी में दिया। उक्त प्रदेश कार्यालय का उद्घाटन छत्रपति शिवाजी राजे स्वराज समिति के संरक्षक सेवानिवृत वरिष्ठ आईएसएस अरुण कुमार सिन्हा ने किया।
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए श्री सिन्हा ने कहा कि देश भर में करोड़ो की आबादी में फैले शिवाजी महाराज के बंसजो को अपने महापुरुष स्वरास्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ने एवं उस पर आत्मसात कर एकजुट होने की जरुरत है। बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल, वास्तविक कर्म बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगा। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई। यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे। महान वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 में हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने आक्रमणकारियों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उन्हें परास्त किया। इतिहासकारो ने शिवाजी महाराज के वास्तविक चरित्र को छुपाने का करते हुए एक धर्म का दुश्मन बना दिया जबकि शिवाजी महाराज सभी धर्मो का सम्मान करते थे।
वरिष्ठ आईएसएस अरुण कुमार सिन्हा को पुष्पगुच्छ देते प्रदेश अध्यक्ष , उद्घाटन करते अतिथि
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए संस्थापक संरक्षक जनार्दन पाटिल ने बताया कि शिवाजी महाराज के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग-बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं। छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरंभ किया था। उनकी इस युद्ध नीति से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंग जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित ‘शिव सूत्र’ में मिलता है। गुरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध है। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्द्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रु सेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं। आज जरुरत है कि देश में अधिक संख्या में मौजूद शिवाजी महाराज के बंसज अपने महापुरुष से प्रेणना लेते हुए एक जुट होकर शिवाजी महाराज की नीतियों ,सिधान्तो को आत्मसात कर आगे बढ़े।
उक्त अवसर पर समिति के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार वर्मा , प्रमोद कुमार गंगवार ,चक्रपाणि वर्मा , हरिशंकर पटेल , दीपक कुमार चौधरी ,सोनेलाल वर्मा ,प्रवीण सिंह ,एस डी वर्मा ,शिव कुमार वर्मा ,डॉ संजय वर्मा ,एच आर वर्मा ,शशांक वर्मा , अभिषेक चौधरी पत्रकार सहित सैकड़ो सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।