संबिधान व दलित विरोधी शंकराचार्य- अशोक भारती - न्यूज़ अटैक इंडिया
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संबिधान व दलित विरोधी शंकराचार्य- अशोक भारती

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मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर लगातार विवाद होता रहा है , हिन्दू धर्म के तमाम तथाकथित ठेकेदार एवं शंकराचार्य मंदिरों में शास्त्र सम्मत न होने का हवाला देते हुए दलितों का प्रवेश निषिद्ध होने को उचित ठहराए है। वर्ष 2022 में तमिलनाडु के सलेम जिले के विरुदासमपट्टी में शक्ति मरियम्मन मंदिर में दलितों के प्रवेश पर तथकथित हिन्दू धर्मावलम्बी उच्च जाति की महिलाओं ने रोक लगाया था जिसे लेकर देश पर में विवाद हुआ था।

जनवरी 2023 में उत्तरखंड के मोरी में दलित समुदाय के आयुष के मंदिर में प्रवेश के बाद जमकर पिटाई हुई थी , घायल आयुष को देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज ईलाज चला था , उसके बड़े भाई विनेश कुमार ने बताया था कि नौ तारीख़ की रात क़रीब आठ बजे आयुष मंदिर में गए थे और ध्यान लगाकर बैठे थे. यह पता चलने पर बैनोल गांव के कुछ सवर्ण वहां पहुंचे और उनकी बुरी तरह से पिटाई कर दी.

मार्च 2022 को मध्यप्रदेश के खरगोन जिला मुख्यालय से मात्र सात किलोमीटर दूर टेमला गाँव में शिवरात्रि पर्व पर दलित महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से गांव की महिलाओं और पुजारी ने रोक दिया था। जुलाई 2023 में मध्य प्रदेश  के ही धार जिले मे महादेव के मंदिर में दलित के प्रवेश पर रोक लगाने  का मामला सामने आया था जहा एक मंदिर के बाहर बैनर लगाकर दलितों के प्रवेश पर रोक की बात कही गई थी। 

मंदिरो में दलित समाज के प्रवेश पर रोक लगाने  का मामला यही नहीं है अपितु देश के अधिकांश जगहों पर ऐसा हुआ है। मंदिरो में प्रवेश को लेकर अक्सर पिटने वाले दलित समाज के लोग अब भी मंदिरो की चौखट पर मिल ही जाते है।

शंकराचार्यो के बयान पर दलित चिंतक अशोक भारती –

देश में लगातार दलितों हेतु नफ़रत की बात करने वाले शंकराचार्यो को लेकर दलित चिंतक अशोक भारती ने सोसल अकाउंट X पर एक पोस्टकरते हुए समाचार पत्र का कटिग शेयर किया है –

शंकराचार्य बहुत ही विद्वान हैं। इन्होंने वेद – पुराण पढ़े हैं। इन्होंने मनु स्मृति सहित तमाम स्मृतियां और इनकी दकियानूसी टीकाएं भी पढ़ी होंगी लेकिन शंकराचार्य ने संविधान का अध्ययन नहीं किया है। उन्होंने आजादी के बाद बने देश के विभिन्न कानूनों को भी नहीं पढ़ा है। यदि इन्होंने कानून पढ़ा होता, तो वह धर्मगुरु होने के बावजूद ऐसा बयान नहीं देते। इन्होंने कानून पढ़ा होता तो वह जरूर जानते कि उनका यह सार्वजनिक बयान उनके ही धर्म के करोड़ों करोड़ दलितों का सार्वजनिक अपमान है।

दलितों का सार्वजनिक अपमान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 1989 के अंतर्गत अपराध है। शंकराचार्य बूढ़े है , दलितों को उनके बयान को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। दलितों को केवल अपनी तरक्की और सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और संपूर्ण विकास को ही गंभीरता से लेना चाहिए। दलितों को याद रखना चाहिए कि पीढ़ी दर पीढ़ी शंकराचार्यों के बरगलाने के बावजूद समाज में लाखों हिंदू ऐसे हैं, जिन्होंने कभी न कभी दलितों के उत्थान में सहयोग किया है। केवल इस उपकार के लिए उन्हें शंकराचार्य के इस बयान को नजर अंदाज कर देना चाहिए।

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