लखनऊ। पुरे देश में 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम लला प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन की तैयारियां चल रही हैं। आर एस एस एवं अन्य हिंदूवादी संघठन शहर से लगायत गावो तक इस क्षण को ऐतिहासिक बनाने की दिशा में पिछले 15 दिनों से एक करते हुए तमाम आयोजनों पर बल दे रहे है वही दूसरी ओर ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को एक पत्र लिखकर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा पर प्रश्न खड़ा कर दिया है।
ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद लगातार कह रहे हैं कि यह प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम शास्त्रसम्मत नहीं है। जारी पत्र में उन्होंने कहा है कि 17 जनवरी को विभिन्न समाचार माध्यमों से मालूम हुआ कि किसी स्थान विशेष से प्रतिमा परिसर में ट्रक द्वारा लाई जा रही है। इसी प्रतिमा की स्थापना नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में की जानी है। इससे स्पष्ट होता है कि नई मूर्ति की स्थापना की जाएगी, जबकि श्रीराम लला विराजमान पहले से ही परिसर में विराजमान हैं।
अब प्रश्न उठता है कि यदि नवीन मूर्ति की स्थापना होगी तो श्रीराम लला विराजमान का क्या होगा। अभी तक रामभक्त यही समझते थे कि यह नया मंदिर श्रीराम लला विराजमान के लिए बनाया जा रहा है। पर अब नई मूर्ति की स्थापना की खबर से आशंका हो रही है कि कहीं श्रीराम लला विराजमान उपेक्षा का शिकार न हो जाएं।
उन्होंने लिखा याद रखिए यह वही श्रीराम लला विराजमान हैं,
- जो अपनी जन्मभूमि पर स्वयं प्रकट हुए हैं, जिसकी गवाही मुस्लिम चौकीदार ने दी है।
- जिन्होंने न जाने कितनी परिस्थितियों का वहां पर प्रकट होकर डटकर सामना किया।
- जिन्होंने सालोंसाल टेंट में रहकर धूप, गर्मी, ठंड व वर्षा सही है।
- जिन्होंने न्यायालय में स्वयं का मुकदमा लड़ा और जीता है।
- जिनके लिए भीटी नरेश राजा महताब सिंह, रानी जयराज राजकुंवर, पुरोहित पं. देवीदीन पांडेय, हंसवर के राजा रणविजय सिंह, वैष्णवों के हमारी तीनों अंगों के असंख्य संतों, निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास जी, अभिराम दास जी, महंत राजारामाचार्या जी, दिगंबर के परमहंस रामचंद्र दास जी, गोपाल सिंह विशारद जी, हिंदू महासभा, तिवारी जी, निर्वाणी के महंत धर्मदास जी, कोठारी बंधु शरद जी व रामजी तथा शंकराचार्यों व संन्यासी आदि सहित लाखों लोगों ने अपना बलिदान दे दिया और जीवन समर्पित किया।
- हमारे अधिवक्ताओं ने प्रस्तुत मुकदमे में उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंड पीठ में गुलाब चंद्र शास्त्री के पुराने हिंदू ला के पुराने संस्करणों में उद्धृत शास्त्र वचनों का उल्लेख करते हुए तर्क दिया था कि स्वयंभू या सिद्ध पुरुषों द्वारा स्थापित/पूजित विग्रह जिस स्थान पर पूजित होते होंगे, वहां से हटाया/प्रतिस्थापित नहीं जा सकता। इसी आलोक में यह निर्णय आया है कि रामलला जहां विराजमान हैं, वहीं विराजमान रहेंगे।
उन्होंने पत्र में लिखा कि स्वयंभू, देव असुर या प्राचीन पूर्वजों द्वारा स्थापित मूर्ति के खंडित होने पर भी उसके बदले नई मूर्ति स्थापित नहीं की जा सकती। बदरीनाथ और विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग इसके प्रमाण हैं।
उन्होंने ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास से अनुरोध किया है कि यह सुनिश्चित करें कि निर्माणाधीन के जिस गर्भगृह में प्रतिष्ठा की बात की जा रही है, वहां पूर्ण प्रमुखता देते हुए श्रीराम लला विराजमान की ही प्रतिष्ठा की जाए।
शंकराचार्य ने कहा है कि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो धर्मशास्त्र, कानून आदि की दृष्टि में अनुचित तो होगा ही, श्रीराम लला विराजमान के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा। शंकराचार्य ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ट्रस्ट दर्शनार्थियों और श्रद्धाभावना के संवर्धन के लिए अगर किन्हीं और मूर्तियों को यथास्थान लगाना चाहता है तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है। लगाई जा सकती है। परंतु मुख्य वेदी पर मुख्य रूप से राम लला विराजमान की ही प्रतिष्ठा अनिवार्य है।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर के निर्माणकर्ता सोमपुरा से भी जानकारी चाही है कि वास्तुशास्त्र के अनुसार मंदिर का निर्माण पूरा होने पर ही निर्माण कराने वाले को सौंपा जाता है। तो, उन्होंने किस आधार पर अधूरे मंदिर को प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपलब्ध करा दिया। इस कारण से होने वाले अतिरिक्त व्यय और आगे निर्माण कार्य चलते रहने से दर्शनार्थियों की सुरक्षा का दायित्व क्या वह ले रहे हैं ? क्योंकि निर्माणाधीन परिसर के लिए भी कुछ नियम-कानून हैं, जिनका पालन आवश्यक होता है।
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