सूबे का मुखिया कामकाजी दिखे , इससे ये नहीं माना जा सकता कि काम हो रहा है या काम दौड़ रहा है क्योंकि यूपी में काम बोलता है जैसे नारों और जुमलेबाज़ी से चल रही पिछली सरकार की दुर्दशा जनता ने कैसे कर डाली ये सभी देख चुकें है जनता ने परिवर्तन कर भाजपा को सत्ता सौंपी है इतना ही कहना काफ़ी नहीं होगा क्योंकि ये सरकार जनता की आशाओं की सरकार है ये सरकार जनता के मन में छुपी अपेक्षाओं की अति का परिणाम है । ऐसी स्थिति में योगी के लिए चुनौती बहुत बड़ी है , भाषणों में शासन की कमियों के प्रति तल्ख़ी होना सात्ता और जनता के प्रति समर्पण का भाव दिखना बहुत अच्छी बात है लेकिन उस तल्ख़ी और समर्पण के साथ लोक कल्याण के संकल्प के समाधान को धरातल पर लागू कर पाना बहुत कठिन होता है ऐसी स्थिति में योगी ख़ुद को कितना साबित कर पाएँगे ये उनकी ही कार्यशैली या कार्यपद्धति पर निर्भर नहीं करेगा । यदि भविष्य में जनता यूपी की भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड सिर्फ़ योगी आदित्यनाथ के कार्यों और उनकी लोक कल्याण की नियत को आधार मानकर बनाती तो भाजपा का ग्राफ़ गिरने की सम्भावनाएँ शून्य मानी जा सकती हैं , क्योंकि इस बात में तनिक भी शंका नहीं कि नाथ सम्प्रदाय के इस हठयोगी में ज़रा भी परिवर्तन या अपने इरादों से पलटने का कोई लक्षण दिख रहा हो । लेकिन मुझे एक कवि की कही हुई एक बात याद आती है कि “काजल की कोठरी में कितनो ही सयानो जाए काजल की एक रेख लागिहै पै लागिहै” ।
विकास के साथ योगी के सामने ख़ुद की छवि बचाने जैसी कोई चुनौती नहीं होगी क्योंकि योगी को कुछ नहीं चाहिए लेकिन सरकार एक व्यक्ति से नहीं चलती योगी को छोड़कर बाक़ी मंत्री और विधायक जी पिछले कई वर्षों से वनवास के चलते लगातार ख़्वाबों के महल में नाच रहे थे अब उनके सपनों का क्या होगा , क्या उनके सपने योगी की दृढ़ता पर भारी पड़ सकते हैं ?? चुनाव के समय शाह ने तमाम नयी भर्ती के साथ दलबदलू नेताओं को जीत सुनिश्चित करने हेतु अपनी मंडली में जोड़ा था बेशक उनकी ये युक्ति काम आइ और परिणाम स्वरूप 325 विधायकों की फ़ौज तय्यार हुई । लेकिन उनपर आश्रित कार्यकर्ताओं की ठेका-पट्टी की अपेक्षाओं पर ई-टेंडर का दंश भारी पड़ चुका है योगी जी कार्यकर्ताओं की टूटती जुगाड़ूपन की आशाओं को आप रोजगार की तरफ़ कैसे मोड़ेंगे क्यूँकि जनता में पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवाओं की एक फ़ौज पहले से ही मौजूद है जिसकी उम्मीदों पर अखिलेश पहले ही फ़ेल हो चुकें हैं अब कसौटी पर आप हैं । फ़िलहाल योगी जिस सरकार के मुखिया हैं वो पूरी तरह शंकर जी की बारात नज़र आ रही है । ऐसे में सवाल ये है की योगी सबके प्रति जवाबदेह ही बनते जा रहे ।
योगी ने तमाम मंत्रियों और विधायकों में से ही एक जय-वीरू की जोड़ी के रूप में दो सरकारी प्रवक्ता नियुक्त कर ख़ुद को मीडिया से दूर कर लिया है हालाँकि ये जुगत शुरुआत में सरकार चलाने के किए अच्छी है लेकिन इन दोनों प्रवक्ताओं में से ही एक जनाब सत्ता में अहम ज़िम्मेदारियों के चलते ख़ुद को कुछ अधिक युवा और और बलिष्ठ समझ बैठे हैं और हर प्रेस कानफ़्रेंस में अपनी तल्ख़ शैली से किसी न किसी वरिष्ठ पत्रकार से उलझते दिखाई पड़ते हैं लेकिन कम राजनैतिक अनुभव के चलते शायद वो यह भूल गये हैं की अब वो संगठन नहीं सरकार चला रहें है सरकार के प्रवक्ता होने के साथ-साथ एक ऐसे विभाग के मुखिया भी हैं जहाँ पिछली सरकार के भ्रष्ट अधिकारियों की फ़ौज वो अब तक बदल नहीं पाए हैं और स्वयं उन अधिकारियों के काफ़ी क़रीब दिख रहें हैं । ध्यान रहे कि सरकार चलाने में ग़लतियों की माफ़ी नहीं मिलती राजनीति के इस अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवान धराशाई होते चले आयें हैं । फ़िलहाल योगी के सपनों के भविष्य को देखते हुए मंत्रियों के ऐसे स्वभाव को ख़तरनाक माना जा सकता है । इसलिए कुछ समय पश्चात योगी को मीडिया से सीधा सम्पर्क साधना होगा क्योंकि बिचौलियों के चलते सरकार से मीडिया के संवाद का बेहतर स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पा रहा ।
✍?©*अभ्युदय अवस्थी(राज्य मुख्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकार )
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