पारिवारिक संघर्ष के चलते सत्ता खो चुका समाजवादी परिवार अभी मानने को तय्यार नहीं है । मौजूदा सपा मुखिया के हाथों में समाजवादी पार्टी की कमान तो दिख रही लेकिन अखिलेश का नेत्रत्व कितना सफल रहा ये सभी देख चुकें है । उधर टीपू के चाचा ने अपनी बेज्जती का हिसाब चुकता करने का सही समय देखकर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने का एलान कर डाला ये कोई बड़ी बात नहीं इसका अंदाज़ा अखिलेश को पहले से ही था लेकिन सपा सुप्रीमो को झटका तो तब लगा जब शिवपाल द्वारा उस मोर्चे का राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को प्रस्तावित कर दिया गया ।
राजनीति में कुछ भी हो सकता है लेकिन मुलायम अखिलेश के ख़िलाफ़ जाएँगे ये शिवपाल का भ्रम है ।दरसल इस घटनाक्रम में सबसे अहम बात ये है कि इटावा में मुलायम की बहन के घर पर शिवपाल और मुलायम एक बंद कमरे में बैठक करते हैं जहाँ कई रिश्तेदार शिवपाल के समर्थन में मुलायम पर पारिवारिक दबाव बनाते हैं जिसके चलते मुलायम तात्कालिक रूप से शिवपाल के क्षणिक समर्थक बन कर शिवपाल के साथ होने का दिलासा देकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो लेते हैं और शिवपाल अपने बड़े भाई का हाथ अपने सर पर समझकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नेता जी के नाम का एलान कर देते हैं । उधर दूसरी तरफ़ अखिलेश चाचा को आसतींन का साँप बता देते हैं और कहते हैं कि वो सच्चे समाजवादी हैं और ऐसे साँपों को बीन बजाकर बाहर निकालना जानते हैं लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर अखिलेश इतनी अच्छी बीन बजाना जानते हैं तो आज जनता योगी की धुन पर क्यों नाच रही हैं ??
अब राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बयान पर मुलायम किनारा करते हुए पुत्र मोह में आकर अपनी और शिवपाल की एक हफ़्ते से मुलाक़ात ना होने की बात कह देते हैं । कुल मिलाकर बात यह है कि शिवपाल एक बड़ी समस्या से जूझ रहें हैं एक तरफ़ भतीजा शिवपाल को राजनैतिक रूप से एकदम ठिकाने लगाने पर तुला है , वहीं दूसरी ओर नेता जी अपने गोलमोल बयानों से शिवपाल के दोनों गाल बजाते नज़र आ रहें हैं । अगर शिवपाल पार्टी बनाते और उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम को बनाते हैं उसके बाद अपने जनाधार और मेहनत के दम पर पार्टी को मज़बूती के साथ स्थापित करते हैं , तब अगर फिर से नेता जी को अपने पुत्र का भविष्य याद गया और लोक सभा चुनाव से पूर्व समाजवादी सेक्युलर पार्टी का सपा में विलय कर बैठे तो शिवपाल क्या करेंगे ?? अगर शिवपाल मुलायम का साथ छोड़ते हैं तो नयी पार्टी कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पाएगी क्योंकि तब मुलायम शिवपाल को जनता के बीच ग़द्दार कहने में तनिक भी नहीं हिचकिचाएँगे और लगे हाथ अपने प्रिय पुत्र की राजनीति चमकाने से नहीं चूकेंगे और शिवपाल अपनी बची हुई इज़्ज़त भी गवाँ बैठेंगे । ये दाँव पेंच तीनो यादव बंधुओं की तिकड़ी बख़ूबी समझती है इसी लिए तीनों बस फ़ुट्बॉल खेल रहे हैं ।
@ अभ्युदय अवस्थी(लेखक राज्य मुख्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकार है )