मैं बहन मायावती जी से पूछना चाहती हूं कि वह अपने आप को दलित की बेटी सिर्फ दलित समाज में पैदा होने की वजह से कहती है या दलित समाज के वोट बैंक की बोली लगाने के लिए ।जब वह सत्ता में होती है तो माना जा सकता है, की व्यस्तता की वजह से उन्हें दलित समाज के बीच में जाने का समय नहीं मिलता। लेकिन जब सत्ता से बाहर होती है तभी भी दलित समाज से मिलना तो दूर , लखनऊ आना भी पसंद नहीं करती सिवाय चंद मौकों के।कभी बहुजन समाज पार्टी का नारा हुआ करता था, तिलक तराजू और तलवार इनके जूते मारो चार और आज हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णुमहेश। अगर आज दलित समाज यह समझ गया है कि अगर बहन मायावती जी सत्ता सुख भोगने के लिए दलित वोट बैंक का इस्तेमाल करती तो गनीमत थी लेकिन उन्होंने तू दलित वोट बैंक को अपनी तिजोरी भरने के लिए एक बहुत ही सरल और आसान जरिया बना लिया। मैं पूछना चाहूंगी अगर दलित समाज आज बहन जी के अपने प्रति इस उदासीन रवैये, पैसा कमाने के जरिये और दलित समाज से दूरी बनाए रखने को समझ गया है तो इस बात का चिंतन बहन जी को स्वयं करना चाहिए ना कि अपने दलितों के प्रति इस सौतेली व्यवहार को ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी जैसी बात को कहकर अपनी झुंझलाहट और अपने पद की गरिमा को गिराने की क्या जरुरत पड़ गई बहन मायावती जी को एक सलाह देना चाहूंगी व्यक्ति का स्वयं और उससे जुड़ी किसी भी संस्था और दल का उत्थान तभी हो सकता है जब व्यक्ति स्वयं में कमियों को तलाश कर उन्हें दूर करने की कोशिश करेगा और अगर गर्त में जाना है दूसरों की कमियां तलाश कर उन्हें उन कमियों को दूर करने का मौका देकर, मजबूती प्रदान करने के बराबर है।
- साधना सिंह सचान
(खबर कैसी लगी बताएं जरूर. आप हमें फेसबुक, ट्विटर और जी प्लस पर फॉलो भी कर सकते हैं.)