नीरज भाई पटेल
लखनऊ। जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति के इस दौर में स्वतंत्रदेव सिंह ने जाति और क्षेत्र की राजनीति से परे सर्वमान्य जमीनी नेता का मुकाम बनाया है। पूरे प्रदेश में किसी भी विधानसभा के कार्यकर्ताओं की टिकट वितरण की नाराजगी दूर करना हो या विपरीत परिस्थियों में कमल खिलाने की जिम्मेदारी। पार्टी नेतृत्व के सामने पूर्व से लेकर पश्चिम तक बस एक ही नाम आता है स्वतंत्रदेव सिंह।
पूर्वांचल में जन्म, बुंदेलखंड कर्मभूमि, पश्चिम के प्रभारी, मध्य में निवास-
स्वतंत्रदेव सिंह का जन्म पूर्वांचल के मिर्जापुर मे हुआ लेकिन अपने बड़े भाई की सरकारी नौकरी के चलते बुंदेलखंड के जालौन में आकर शिक्षा ग्रहण की और फिर यही बस गए। उरई से ही छात्र राजनीति की शुरूआत करते हुए आज प्रदेश के अग्रणी नेताओं में शुमार हो गए हैं। संगठनिक जिम्मेदारियों के चलते लगातार लखनऊ को ही केन्द्र बनाए रहे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन से लेकर प्रधानमंत्री की सफतलम रैलियों के कर्ता धर्ता रहे। मौजूदा स्थिति में बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर बीजेपी की जीत से स्वतंत्रदेव सिंह का कद संगठन में और मजबूत हुआ है जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेेेश की सफलता बहुत ऊपर ले गई है।
भारी विरोध के बीच सहारनपुर में कमल खिलाया था स्वतंत्र ने-
लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए उप चुनाव में 11 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी का उड़ान भरने का ख्वाब भले ही पूरा न हुआ हो, पर सहारनपुर सदर सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजीव गुंबर को मिली अप्रत्याशित जीत से साबित हो गया है कि स्वतंत्रदेव सिंह किसी भी सीट पर कमल खिला सकते हैं। दरअसल टिकट के चयन को लेकर नेताओं में आपसी फूट, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का सहारनपुर में विरोध व इस मामले का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दरबार में पहुंचने के बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि भाजपा को सहारनपुर में नुकसान होगा। पार्टी नेतृत्व की सांसे तब फूली जब राजीव गुंबर के चुनाव कार्यालय के उद्घाटन के दौरान प्रदेश अध्यक्ष का जमकर विरोध हुआ। बाद में अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद प्रदेश महामंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने वहां डेरा डाल दिया। असर हुआ कि भाजपा नेता एकजुट नजर आने लगे और इस मुश्किल सीट पर विजय मिल गई। गौर करने की बात ये है कि इस सीट पर कुर्मी समाज नाममात्र का भी नहीं है लेकिन संगठन क्षमता जाति की दीवारों से बहुत आगे की बात है।
जाति सीमाओं से परे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए गए-
ऐसे समय में जब नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने से पहले राजनीति में उनकी जाति टटोलने की परम्परा आम बात हो,परम्परा हो,रही हो या किसी क्षेत्र का प्रभारी बनाने का आधार उस क्षेत्र में उस नेता की जाति का बाहुल्य होता हो इस राजनीतिक दौर में स्वतंत्रदेव सिंह को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाना उनकी संगठन पर मजबूत पकड़ को दर्शाता है। मुजफ्फरनगर, हापुड़, मेरठ, सहारनपुर, बागपत, बिजनौर, रामपुर, संभल, जेपी नगर, बुलंदशहर ,मुरादाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, गाजियाबाद समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश अन्य जिलों में कुर्मी समाज की संख्या नाम मात्र की है। लेकिन संगठन कौशल के माहिर स्वतंत्रदेव सिंह की क्षमताओं को समझते हुए उन्हें इस पूरे क्षेत्र की कमान सौंपी गई। भाजपा की सीमा जागरण यात्रा सहारनपुर से पीलीभीत बॉर्डर, गोरखपुर से बिहार तक और उमा भारती की गंगा यात्रा में गढ़मुक्तेश्वर (मुरादाबाद) से बलिया तक संयोजक बनाए गए। जिसे उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ निभाया भी।
राजनैतिक सफर–
- 1986 – आरएसएस से जुड़कर स्वयंसेवक के रूप में संघ का प्रचारक का कार्य करना प्रारम्भ कर दिया।
- 1988-89- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ए.बी.वी.पी.) में संगठन मन्त्री के रूप में कार्य भार ग्रहण किया।
- 1991- भाजपा कानपुर के युवा शाखा के मोर्चा प्रभारी थे।
- 1994- बुन्देलखण्ड के युवा मोर्चा के प्रभारी के रूप में विशुद्ध राजनीतिज्ञ के रूप में राजनीति में पदापर्ण किया।
- 1996- युवा मोर्चा का महामन्त्री नियुक्त किया।
- 1998- दोबारा भाजपा युवा मोर्चा का महामन्त्री बनाया गया।
- 2001- भाजपा के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी बने।
- 2004- विधान परिषद के सदस्य चुने गये व प्रदेश महामन्त्री भी बनाये गये।
- 2004 से 2014 तक दो बार महामन्त्री
- 2010- प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए।
- 2012- फिर महामंत्री बने अभी भी हैं।
- 2013- पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए गए।