नरेंद्र मोदी को झटका दे सकता है अक्‍खड़ बनारसी मिजाज ! - न्यूज़ अटैक इंडिया
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नरेंद्र मोदी को झटका दे सकता है अक्‍खड़ बनारसी मिजाज !

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उत्‍तर प्रदेश का चुनाव अपने सातवें और आखिरी पड़ाव की तरफ पहुंचने जा रहा है। अब भाजपा से ज्‍यादा प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिष्‍ठा दांव पर लग गई है। 4 मार्च को छठे चरण के लिए मतदान होगा, लेकिन सबकी निगाहें सातवें चरण पर लगी हुई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय सीट वाराणसी समेत उनके कैबिनेट साथी मनोज सिन्‍हा, डा. महेंद्र नाथ पांडेय तथा अनुप्रिया पटेल जैसों की भी परीक्षा होगी। इन दो चरणों के लिए सभी पार्टियों ने अपनी समूचा ताकत झोंक दिया है, पर चुनौती भाजपा के लिए ज्‍यादा है क्‍योंकि इस पूरे इलाके के सांसदों की कसौटी भी तय होगी।

आखिरी चरण में वैसे तो चुनावी अभियान मुद्दों से भटककर जुबानी जंग में तब्‍दील हो चुका है, लिहाजा सभी दल एक दूसरे को शब्‍दों से नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इन सब के बीच मोदी का संसदीय क्षेत्र इस बाद पीएम की परीक्षा लेने को तैयार है। लगातार सात बार विधायक रहे और बनारस के लोकप्रिय नेता श्‍याम देव राय चौधरी का टिकट काटे जाने से काशीवासी खासे नाराज हैं। दादा को हल्‍के में लेने का परिणाम अब पीएम समेत पूरी भाजपा को असहज कर सकता है।

इसी असहज स्थिति से बचने के लिए भाजपा के दर्जनों मंत्री, सांसद बनारस में डेरा डाले हुए हैं। पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन पिछले विधानसभा चुनाव में बेहद कमजोर रहा है, इसलिए चुनौती भी ज्‍यादा है। बनारस एवं आसपास के जिलों में भाजपा की हार विपक्षियों को पीएम पर हमला करने का सीधा मौका देगी। बनारस में इस बार स्थितियां अनुकूल नहीं हैं क्‍योंकि कार्यकर्ता भी पार्टी नेतृत्‍व से नाराज है। कई सीटों पर बागी भी ताल ठोंक रहे हैं। वाराणसी में केवल जीत से बात नहीं बनने वाली क्‍योंकि यह पीएम की साख से जुड़ी हुई है।

वाराणसी में आठ विधानसभा सीटें हैं। इनमें तीन पर भाजपा का कब्‍जा है। भाजपा नेता सुजीत सिंह टीका शहर उत्‍त्‍री सीट से टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दल उतर गए। श्‍याम देव राय चौधरी की नाराजगी भी पार्टी पर भारी पड़ सकती है। कैंट सीट से पार्टी ने दिवंगत नेता हरिश्‍चंद्र श्रीवास्‍तव के पुत्र को टिकट दिया है, जिससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। यह नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ सकती है। पार्टी को भितरघात का सामना तो करना ही पड़़ेगा, स्‍थानीय सांसद के विकास कार्य भी कसौटी पर होंगे। अक्‍खड़ बनारस क्‍या फैसला लेगा यह तो 11 मार्च को पता चलेगा, लेकिन साख पीएम की दांव पर है।

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