पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट किसके साथ ! - न्यूज़ अटैक इंडिया
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट किसके साथ !

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाटलैंड कहा जाता है ऐसा भी भ्रम पैदा किया जाता है कि यहाँ भी जाट  हरियाणा जैसी वर्चस्व की  स्थिति में है पर हकीकत एकदम इसके उलट है.जाट पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक शक्तिशाली जाति है परन्तु यहाँ के जाट मूलतः खेती-बारी पर ही निर्भर है.पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जाट बिरादरी के साथ ही अन्य कृषि आधारित जातियों के सर्बमान्य नेता थे. 


 

लखनऊ .उत्तर प्रदेश के चुनाव में राजनीति की डुगडुगी तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बजेगी. जिसको चाहेंगे धरती दिखा देंगे. पूरब की तरफ तो सभी सबको लपकेंगे लेकिन पक्के वोट तो यहीं के होंगे. यह आवाज है पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महिला,पुरुष और युवा वर्ग की .न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों में 77 विधानसभा सीटें हैं. इस इलाके में जाटों की आबादी लगभग 17 फीसदी और मुसलमान 26 फीसदी हैं. 2012 के चुनाव में 26 सीटों से मुसलमान जीते थे.
बर्तमान सरकार के दौरान इन इलाको ने दंगो की मार झेली है ,दंगो की मार से अखबारी पन्ने रंग गए थे किन्तु सच ये है कि यहां कई जातियां द्विधार्मिक हैं. हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों में ये जातियां मौजूद हैं. जाट मुसलमान, गूजर मुसलमान, त्यागी मुसलमान अन्य ..
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस इलाके में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी तो हैं ही किन्तु यहां पर अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल भी है.पूर्व प्रधानमंत्री और किसानो के नेता चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह जाटों के परंपरागत नेता रहे हैं.न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack



रास्ट्रीय लोकदल की राजनीति किसानों और जाटो के इर्द गिर्द घूमती रही है क्योंकि इस इलाके के जाट मुख्य रूप से किसान हैं. एक मजबूत जाट-मुसलमान गठबंधन रास्ट्रीय लोकदल को सत्ता में भागीदारी दिलाता रहा है.
किन्तु जैसे-जैसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव इस जाट लैंड में बढता गया वैसे-वैसे रास्ट्रीय लोकदल से मुस्लिम वोट कटता गया. दंगो और काम धंधो में बदलाव के चलते रास्ट्रीय लोकदल अपने परंपरागत जाट वोटों से भी कटा है. जाटों का मानना है की पिछले कुछ सालों में पार्टी के नुकसान की वजह अजित सिंह की मुसलमानों को ज्यादा तरजीह देने की भूल रही है जिसका कारण रहा कि .2014 लोक सभा चुनावों में अजीत सिंह खुद भी चुनाव हार गए पर सिंह के लिए अब हालात बदलाव की तरफ सरकते दिख रहे हैं.
अजीत सिंह की रास्ट्रीय लोकदल ने बिगत वर्षो से पश्चिमी इलाको में युवा राजनीति को बढावा दिया है जिस हेतु चौधरी अजीत सिंह के पुत्र जयंत चौधरी ने परम्परागत वोट बैंक के साथ ही यूवाओं पर कसरत की है.जयंत चौधरी ने इन वर्षो में पार्टी और खुद को पश्चिमी इलाको में प्रस्थापित करने का सफल प्रयाश किया है जिस कारण इन इलाको में लगातार जयंत के नेतृत्व में अनेको रैली और कार्यक्रम सफल रहे है.पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग कही न कही जयंत की काबलियत के मुरीद हुए है और कहते सुना गया है की जयंत में चौधरी चरण सिंह की छाप दिख रही है. इन इलाको के लोगो के कथन को अगर सत्य सिद्ध करने में जयंत सफल होते है तो निश्चित तौर पर जयंत की राजनैतिक पारी दमदार हो सकती है.

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भारतीय जनता पार्टी के लिए इस बार जाट वोट बैंक मुफीद साबित नहीं होगा, जाटों को जो बात से खटकती है वो है अजीत सिंह के साथ लगभग बेमानी हो जाना और उनको दिल्ली के सरकारी घर से निकाल फेंका जाना. जाट समाज के बुजुर्ग भाजपा से खासा नाराज दिख रहे हैं. उनकी नाराजगी के कई कारण हैं. एक तो जाटों को आरक्षण नहीं मिला ऊपर से जाट नेता ओम प्रकाश चौटाला को जेल भेज दिए गया. अजित सिंह का सरकारी मकान धक्के मार कर खाली करा लिया गया.
वे इस बात को ठनक से कह रहे हैं, उन्होंने दिल्ली से बड़े जाट नेता अजित सिंह के बर्तन फेंके हम उनको यहां से उखाड़ फेकेंगे .जाट बुजुर्गों की बात मानें तो उन्हें बसपा और रालोद के गठबंधन में उम्मीद दिखती है. उनके अनुसार यह गठबंधन ही सत्ता में आए तो सबका भला होगा.न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack



समाजवादी पार्टी की सरकार में हुए दंगे साईकिल के लिए इस बार अच्छा संकेत नहीं दे रहे है,सपा की सरकार में हुए दंगो ने किशानो,मजदूरों और सपा के परम्परागत वोटो को अधिक नुकसान पहुचाया है,फिर भी यहाँ का सपाई मतदाता मुलायम की जगह अखिलेश को ज्यादा तरजीह दे रहा है जिसका प्रमुख कारण अखिलेश का माफिया विरोध है,अखिलेश यादव अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे मुसलमान नेताओं के खिलाफ हैं. इन बाहुबलियों की मुसलमानों के बीच में भी कोई बहुत अच्छी छवि नहीं है. ऐसे बाहुबली मुसलमान वोटरों की भी मजबूरी होते हैं क्योंकि पार्टियां इसी तरह के लोगों को टिकट देती हैं.
यूं समझिए कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मतदाता अपने लिए जरूरी भ्रम की तलाश में है.वो भ्रम जिसके सहारे वो किसी पार्टी के साथ अपनी उम्मीदें बांध सके.

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