प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के मजबूरी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ - न्यूज़ अटैक इंडिया
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के मजबूरी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ

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उत्तर प्रदेश में भाजपा ने नतीजा आने के एक हफ्ते बाद राज्य के मुख्यमंत्री के नाम का खुलासा किया। 18 मार्च को गोरखपुर के गोरखनाथ पीठ के महंत आदित्यनाथ योगी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का एलान किया। और अगले रोज प्रदेश के 21 वें मुख्यमंत्री के रूप में उनको शपथ दिला दी गई। उनके साथ दो उप मुख्यमंत्री- दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को शपथ दिलाई गई। बाईस कैबिनेट मंत्री, 9 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 13 राज्यमंत्रियों का भी शपथ ग्रहण कार्यक्रम हुआ। उस दिन मुख्यमंत्री समेत कुल 47 मंत्रियों का शपथ ग्रहण संपन्न हुआ। मगर पूरे आठ दिन यूपी में कोई सरकार नहीं रही। इसलिए घोर अराजकता का आलम रहा और इसका खामियाजा राज्य की मौजूदा भाजपा सरकार को उठाना पड़ेगा। एक मुख्यमंत्री के चयन में इतनी लेट-लतीफी उचित नहीं थी वह भी उस समय जब आपके पास अपार बहुमत था। इसके विपरीत आपने गोआ और मणिपुर में भाजपा ने तीन दिन में ही अपने मुख्यमंत्री घोषित कर दिए और सरकार भी बना ली। जबकि वहां पर भाजपा का बहुमत तो दूर वह नंबर एक संख्या वाली पार्टी भी नहीं थी। इससे यूपी के लोगों में संदेश तो यही गया कि अन्य दलों की तरह भाजपा में भी नेतृत्त्व को लेकर बड़ी खींचतान रहती है।

दरअसल मुख्यमंत्री को लेकर यूपी में महाभारत रहा। कहा तो यहां तक जाता है कि स्वयं प्रधानमंत्री शायद आदित्यनाथ योगी को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते हैं। उसकी वजह उनका कट्टर हिंदूवादी होना भी है। वे अपनी भाषा पर संयम रखना नहीं जानते और अतीत में वे ऐसी-ऐसी बातें कह चुके हैं जिनका जिक्र तक सभ्य समाज में नहीं होता। मसलन एक बार उन्होंने कह दिया कि कब्र से निकाल कर रेप किया जाएगा। मगर आरएसएस योगी के नाम पर अड़ा था। संघ का मानना था कि योगी ही आरएसएस के कट्टर हिंदूवादी एजेंडे को लागू करा पाएंगे। इसके अलावा एक चर्चा यह भी है कि आरएसएस नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से चिंतित है। उसे लगता है कि यदि मोदी ऐसे ही लोकप्रिय होते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब मोदी संघ की पकड़ से बाहर निकल जाएंगे। संघ को पता है कि यूपी में जीत नरेंद्र मोदी के कारण हुई है। हर जगह बस उन्हीं की चर्चा थी। इसलिए संघ ने मोदी के पसंदीदा मनोज सिन्हा का नाम ठुकरा दिया और योगी को मुख्यमंत्री बनाने पर दबाव बनाया। इसीलिए केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा का नाम लगभग तय हो चुका था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री उनके नाम पर मुहर लगा चुके थे मगर उनके नाम की घोषणा होती इसके पहले आरएसएस ने अपना वीटो लगा दिया और मन मारकर इन दोनों नेताओं को मनोज सिन्हा का नाम पीछे करना पड़ा। अब यह तो तय है कि उत्तर प्रदेश में मोदी अब संघ के एजेंडे को पूरी तरह अमल में लाएंगे।

भाजपा के अंदर इससे कलह बढ़ेगी। मोदी और शाह के समर्थक नेता योगी के साथ असहज रहेंगे। और योगी भी उन्हें पसंद नहीं करेंगे। इसके अलावा आरएसएस का यह मानना भी है कि अगर योगी यूपी में कुछ नया कर दिखाते हैं तो उन्हें केंद्र में लाने के प्रयास तेज किए जाएं। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रास तो नहीं आएगी। यूं भी योगी ने शपथ ग्रहण के बाद जो प्रेस कांफ्रेंस की उसमें संकेत दे दिया है कि उनके साथ काम करना थोड़ा टफ होगा। मसलन उन्होंने अधिकारियों और मंत्रियों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने की बात कही। उनके आने के बाद से अचानक कुछ ऐसी चीजें शुरू हो गईं जिनसे टकराव बढ़ेगा। मसलन अवैध बूचडख़ानों पर पाबंदी की बात कर उन्होंने तीर निशाने पर ठोका है। इसके अलाव एंटी रोमियो स्क्वैड बनाना और अचानक राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केहर का यह बयान आ जाना कि हिंदू-मुसलमान दोनों ही पक्षकार चाहें तो वे मध्यस्थता को तैयार हैं। ये सब चीजें ऐसी हैं जिनसे माहौल गरमाने लगा है। योगी ने सचिवालय ने पान-गुटखा खाने पर सख्ती से पाबंदी लगा दिया है। और इसके साथ ही गुटखा बनाने वालों के लिए मुश्किल के दिन आ गए हैं। यूपी में गुटखा खाने वालों की संख्या बहुत है और गुटखा बनाने वालों की कमाई इसी राज्य के चलते होती है इसिलए उनका बेचैन होना स्वाभाविक है। अब एक तरफ तो आम लोग परेशान होंगे दूसरी तरफ पूंजीपति भी इसलिए तनाव बढऩा लाजिमी है।

एक और संकट आ रहा है। कुछ लोगों ने योगी की जाति तलाश ली है और वे जिस तरह खुशियां मना रहे हैं उससे उनकी प्रतिद्वंदी जाति के लोग भयभीत हो गए हैं। उनका इस तरह से हंगामा करना लोगों को परेशान करेगा तो योगी को भी जाति और क्षेत्र के दायरे में बांधना होगा। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में आदित्यनाथ योगी के मुख्यमंत्री बनते ही उनकी जाति, बिरादरी और उनके अतीत को खगालने की कोशिशें तेज हो गई हैं। और ऐसा कोई मीडिया वाले ही नहीं कर रहे हैं बल्कि योगी जी के बचपन को जानने वाले लोग अधिक सक्रिय हैं। मसलन सूबे कई जिलों में एक जातिविशेष के संगठन ने इसलिए खुशियां मनाईं क्योंकि उनको किन्हीं सूत्रों से पता चला कि नए मुख्यमंत्री उत्तराखंड के राजपूत हैं। बस फिर क्या था उनकी पूरा अतीत खोज लिया गया। वे कहां के रहने वाले हैं, उनके परिवार में कौन-कौन हैं, उनकी जाति और उनका कुलनाम तथा वे कब कहां से आए। एक विस्तृत और व्यापक आधार वाले आध्यात्मिक संत राजनेता को एक छोटे से दायरे में कैद कर देने की साजिश है यह। जब कोई व्यक्ति संन्यास लेता है तो वह अपने अतीत से कट जाता है और वह किसी कुलनाम में नहीं बंधता। इसलिए यह पहले ही तय कर दिया जाता है कि अब आप अपने परिवार में वापस नहीं जा सकते। आदि शंकराचार्य को इसलिए प्रताडऩा झेलनी पड़ी थी क्योंकि उन्होंने संन्यास लेने के पूर्व अपनी माँ को वायदा किया था कि वे उनकी चिता को अग्नि देने अवश्य आएंगे। और जब वे गए तो संन्यासियों ने उनके विरुद्घ आंदोलन कर दिया। इसलिए उन्हें प्रच्छन्न संन्यासी कहा गया।

अब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को उनको किसी जातिविशेष में बांधने का मतलब ही है कि उनका दायरा सीमित कर देना। उत्तर प्रदेश में जब उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया था तब उनके पीछे तर्क यही था कि वे जातिपात जैसे संकीर्ण दायरे से मुक्त हैं। वे परिवारवाद से भी बाहर हैं तथा उनके कार्यकाल में कतई भ्रष्टाचार नहीं पनप सकता क्योंकि वे कोई भेदभाव नहीं करेंगे। अब एक प्रश्न उठता है कि इतने विशाल हृदय वाले योगी को एक संकीर्ण दायरे में लाने का कुत्सित प्रयास कौन कर रहा है। अचानक असंख्य उत्तराखंड के राजपूतों ने लखनऊ में आमद-रफ्त बढ़ा दी है। अभी यह नहीं पता कि हमारे मुख्यमंत्री ने ऐसे लोगों से दूरी बरती हुई या नहीं। मगर यदि वाकई उत्तर प्रदेश को जातिपात तथा इलाकाई संकीर्णता से मुक्त करना है तो इस तरह की कोशिशों को हतोत्साहित करना चाहिए।

साभार -शंभूनाथ शुक्ल
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