बसपा की इस रणनीति से विरोधी दल परेशान - न्यूज़ अटैक इंडिया
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बसपा की इस रणनीति से विरोधी दल परेशान

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वर्ष 1992 में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार जाने के बाद 2007 में नया इतिहास बनाते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली मायावती अब एक बार फिर विरोधियों के सीधे निशाने पर हैं. सीधे इसलिए कि सभी को बसपा का हाथी उत्‍तर प्रदेश में सभी दलों को डराए हुए है. पिछले एक दशक में बहुत कुछ बदल चुका है, लेकिन उन पर प्रत्‍याशियों से पैसे लेने के आरोप अब भी लगते हैं, और लगते ही रहते हैं. मायावती इन आरोपों का ना तो जवाब देना मुनासिब समझती हैं और ना ही उनका वोटर उनसे इस पर कोई सवाल करता है.

बसपा समर्थको की दीवानगी
बसपा समर्थको की दीवानगी

आरोपों से बेपरवाह मायावती और उनकी बसपा की रफ्तार और जनाधार पर कोई बहुत असर नजर नहीं आता है. तब भी नहीं, जब उनकी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई. बसपा के जनाधार तब‍ भी कम नहीं था और ना अभी इसमें कोई फर्क दिख रहा है. नोटबंदी के बाद पार्टी के खाते में एक अरब से ज्‍यादा रुपए जमा करवाने वाली बसपा और मायावती पर विरोधी दल चौतरफा हमला कर रहे हैं. बसपा छोड़कर भाजपा में आए नेता इस मुद्दे पर कुछ ज्‍यादा ही मुखर नजर आ रहे हैं, पर मायावती को पता है कि उनकी पार्टी को कार्यकर्ता चलाते हैं ना कि आने या जाने वाले नेता. इन आरोपों से बेफिक्र मायावती यूपी की सत्‍ता पाने की कोशिश में लगी हुई हैं.

दरअसल चुनाव नजदीक आने के साथ बसपा और मायावती के खिलाफ विरोधी दलों के हमले लगातार तेज होते जा रहे हैं. खासकर भ्रष्‍टाचार से जुड़े हमले।.उन पर पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन मायावती इसके बावजूद अपने अंदाज में सियासत करती रहती हैं. सारे हमलों से बचने के लिए मायावती दलित की बेटी नाम की दीवार को सामने कर देती हैं, फिर सारे दल गणित देखते हुए अपने हथियार-गोले समेट कर नए सिरे से हमले की तैयारी में जुटने लगते हैं. समाजवादी पार्टी भी बसपा पर गिने-चुने हमले कर रही है, लेकिन सबसे मुखर विरोध भारतीय जनता पार्टी कर रही है. मायावती को भ्रष्‍टाचार साबित करने के लिए जमकर प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है.

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बसपा के खाते में पैसे जमा करने की घटना के लीक के पीछे भी इसे बड़ा कारण माना जा रहा है. भाजपा इसे लेकर लगातार हमलावर है,लेकिन पलटवार में माहिर मायावती सही मौके का इंतजार कर रही हैं. इसके पहले भी मायावती अपने उत्‍पीड़न की बातों को दलितों तक पहुंचाकर 2007 में बहुमत वाली सरकार बना चुकी हैं. मायावती एक बार फिर उसी अंदाज में नजर आने लगी हैं. उत्‍तर प्रदेश में भाजपा भले ही सरकार बनाने के दावे कर रही है, लेकिन उसके नेतृत्‍व को पता है कि बसपा ही उसके राह की सबसे बड़ी बाधा है.

भाजपा नेतृत्‍व को इसका आभास शुरू से रहा है,इसलिए उन्‍होंने रणनीति के तहत यूपी में समाजवादी पार्टी से सीधी लड़ाई का रट्टा लगाते चले आ रहे हैं। बसपा को कमजोर करने की रणनीति के तहत ही स्‍वामी प्रसाद मौर्या से लगायत बसपा के कई विधायक और बड़े नेताओं को भाजपा ने अपने पाले में किया, लेकिन उत्‍तर प्रदेश में राजनीति की थोड़ी भी जानकारी रखने वाले व्‍यक्ति को पता है कि बसपा में चुनाव नेता नहीं बल्कि उसके जमीनी कार्यकर्ता लड़ते हैं। कुछ महीने पहले तक यूपी में लड़ाई त्रिकोणात्‍मक थी, लेकिन समाजवादी कुनबे में मचे घमासान के बाद अब सीधी लड़ाई भाजपा और बसपा के बीच सिमटती दिखने लगी है.

बसपा की सबसे बड़ी ताकत उसके कार्यकर्ता हैं. मायावती पर शुरू से ही इस बात का आरोप लगाया जाता रहा है कि बहुजन समाज पार्टी में उन्‍होंने कोई दूसरा लीडर उभरने नहीं दिया. खासकर दलित लीडरशिप। इसके पीछे माना जाता है कि मायावती के इसी रवैये के चलते बसपा से कई बड़े दलित नेता टूट कर दूसरे दलों में गए या अपनी पार्टी भी बनाई, लेकिन बसपा के वोट बैंक को अपनी तरफ नहीं कर सके. दरअसल, यही कारण है, जिसने बसपा को टूट-फूट के बावजूद मजबूत बनाए रखा है. बसपा से जाने वालों के बारे में यही कहा जाता है कि इससे बसपा का नहीं बल्कि उक्‍त नेता का व्‍यक्तिगत नुकसान होता है.

बसपा के इतिहास को देखें तो कांशीराम के साथ काम करने वाले तमाम लोग बसपा छोड़ते गए और मायावती के नेतृत्‍व में पार्टी लगातार बड़ी होती चली गई. इसका कारण है तो उसका स‍मर्पित कार्यकर्ता और वोटर. दलित वर्ग मायावती में अपनी उम्‍मीद देखता है. बसपा को यही कार्यकर्ता और मतदाता मजबूती देते हैं, ना कि कोई नेता, अन्‍य पार्टियों में ऐसी स्थिति नहीं है. भाजपा, सपा, कांग्रेस जैसे दलों का वोटर नेताओं के साथ इधर-उधर होता रहता है, लेकिन बसपा का वोटर केवल मायावती के साथ रहता है. भाजपा ने बसपा को कमजोर करने के लिए दलित वोटरों को भी साधने की कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई. भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले कुछ दलित मतों के आधार पर दलितों को अपने साथ जोड़ने का फैसला किया था. डा. अंबेडकर के नाम पर भाजपा ने ढेर सारे अभियान चलाए, लेकिन दलित वोटर टस से मस होता नहीं दिख रहा है, थक-हार कर भाजपा वापस सवर्ण और पिछड़ा वर्ग पर वापस लौट आई है.

दरअसल, पिछले पांच साल में मायावती ने भी खुद को बहुत बदला है. अब उनके बयान मीडिया में ज्‍यादा आने लगे हैं. अब वह मीडिया से ज्‍यादा रुबरु होने लगी हैं. मीडिया बात करते समय अब उनके चेहरे पर मुस्‍कान दिखती है. कभी कभार हंसी-ठिठोली भी करने लगी हैं।.यह बदलाव इस बात का संकेत है कि मायावती ने अब विश्‍वास से भरी हुई हैं. मायावती ने दलितों के साथ मुसलमान और कुछ सवर्ण जातियों को जोड़कर उत्‍तर प्रदेश में फिर एक बार मजबूत वापसी करना चाहती हैं. लोकसभा चुनाव में करारी हार के बावजूद उन्‍हें हाशिए पर मानने वाले डरे हुए हैं.बसपा के वोट बैंक में बहुत कमी नहीं आई थी. दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस ढाई गुना ज्‍यादा मत बसपा को मिले थे. कांग्रेस ने 60 लाख मत पाकर दो सीटें जीती थीं, तो बसपा 1 करोड़ 59 लाख मत पाने के बावजूद खाली हाथ रह गई. दूसरी तरफ 1 करोड़ 79 लाख मत पाकर सपा पांच सीटों पर जीत गई.

विधानसभा चुनावों में इस मत के बहुत मायने हैं.कई समीकरण उलट-पुलट जाएंगे. मायावती से सबसे ज्‍यादा डर भारतीय जनता पार्टी को है. भाजपा को लग रहा है कि दलित के साथ मुसलमान भी बसपा के साथ चला गया तो उसकी राह कठिन हो जाएगी. समीकरण भी कुछ ऐसे ही बनते जा रहे हैं. मुसलमानों की पहली पसंद मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बाद यह वर्ग घबराहट में है. कांग्रेस ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह कांग्रेस पर भरोसा कर ले. इस स्थिति में मुसलमानों को अपना वोट बंट जाने का डर भी सता रहा है. अब बच जाती है बसपा, जो भाजपा को मजबूत टक्‍कर दे सकती है.

मुसलमान इसी बात पर विश्‍वास कर के बसपा की तरफ जा सकता है, लेकिन उसे यह डर भी बना रहेगा कि त्रिशंकु नतीजों की स्थिति में मायावती कहीं भाजपा से हाथ ना मिला लें। अब मुसलमान वोटर के पास सपाई घरेलू घमासान के बाद बसपा ही एकमात्र मजबूत विकल्‍प बच जाती है. बसपा का दलित-मुस्लिम समीकरण ने मजबूती से काम कर दिया तो फिर सपा, भाजपा समेत सभी दलों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है. वैसे भी, भाजपा के इतिहास को देखें तो कांग्रेस शासित राज्‍यों में मजबूत प्रदर्शन करने वाली यह पार्टी क्षेत्रीय क्षत्रपों के सामने घुटने टेकती नजर आई है. बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, दिल्‍ली, तमिलनाडू जैसे अनेक राज्‍य हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी क्षत्रपों से बुरी तरह पराजित हो गई. इसके विपरीत कांग्रेस शासित राज्‍य हरियाणा, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, असम जैसे राज्‍यों में पार्टी बेहतर प्रदर्शन किया. यूपी में भी भाजपा के लिए सपा से बड़ी परेशानी बसपा है.




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