लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तकरीबन 10 से 12 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाला कुर्मी(पटेल) समाज बीजेपी सरकार के मंत्रिमंडल में की गई अनदेखी से नाराज है। लोगों का गुस्सा धीरे-धीरे बाहर आ रहा है और पूरे प्रदेश में हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ने के लिए माहौल बन रहा है। लोगों का तर्क है कि पटेल समाज ने भारतीय जनता पार्टी को खुलकर वोट किया लेकिन बदले में उनको उपमुख्यमंत्री तो छोड़िए सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री देकर ढ़ंग से हिस्सेदारी भी नहीं दी गई। ऐसा ही व्यवहार केन्द्र में संतोष गंगवार के साथ किया गया है।
बीजेपी में संख्याबल में तीसरी बड़ी संख्या है कुर्मी विधायकों की-
बीजेपी ने पटेल समाज के लोगों को 28 टिकट दिए जिनमें से 27 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे। संख्याबल के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी में तीसरी बड़ी संख्या कुर्मी विधायकों की है। इसके अलावा सहयोगी अपना दल ने 4 टिकट पटेल समाज को दिए जिनमें से चारों विधायक जीते यानि सरकार में हिस्सेदारी 31 विधायकों की है। लेकिन पटेल समाज को सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री एक स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री और अपना दल कोटे से एक राज्यमंत्री दिया गया।
नाराजगी की बजह केन्द्र से लेकर राज्य तक-
बुंदेलखंड क्षेत्र से कोई भी कैबिनेट मंत्री ना होना। स्वतंत्रदेव सिंह जैसे कद्दावर नेता जिनको लोग सीएम या डिप्टी सीएम के बतौर देख रहे थे उनको कैबिनेट ना देकर राज्यमंत्री स्वतंत्रप्रभार बना देना। मंत्री और सांसद रह चुके आरके पटेल और लोक प्रिय नेता पूर्व मंत्री रामकुमार वर्मा को पूरी तरह से मंत्रीमंडल में नजरअंदाज कर देना। मिर्जापुर –वाराणसी क्षेत्र से कुर्मी समाज का कोई मंत्री ना होना। केन्द्र में सात बार के सांसद संतोष गंगवार को राज्यमंत्री बनाकर उनका कद छोटा कर देना।
समाज ने विधायक के लिए नहीं सरकार बनाने के लिए वोट दिया है-
इस बार कुर्मी समाज बाहुल्य कई सीटों पर जाति के प्रत्याशी को वोट न देते हुए पटेलों ने बीजेपी के प्रत्याशी को जिताया है। ऐसी ही एक सीट है रोहनिया जहां तकरीबन एक लाख कुर्मी मतदाता है लेकिन 10 हजार की संख्या वाले भूमिहार प्रत्याशी जीते हैं। इस बारे में विधायक और पूर्व मंत्री आरके पटेल कहते हैं कि इस बार पटेल समाज ने स्वजातीय विधायक नहीं जिताए हैं बल्कि सरकार बनवाने के लिए वोट किया है। ऐसी स्थिति में हिस्सेदारी ना मिलने पर नाराजगी व्यक्त करना लोगों का अधिकार है इसे हम कैसे रोक सकते हैं? विधायक आरके पटेल की इस बात को जब हमने आंकड़ों में देखा तो उनकी बात 100 फीसदी सही पाई गई। पूरे प्रदेश की 26 विधानसभाएं ऐसी हैं जहां सपा-बसपा से पटेल समाज का प्रत्याशी होने के बाद भी कुर्मी समाज ने भाजपा के प्रत्याशी को वोट दिया। इनमें सपा और बसपा के कई विधायक और पूर्व मंत्री शामिल हैं।
विरोध के स्वर तेज
पटेल समाज ने बचाई पीएम की लाज-
प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी के संसदीय क्षेत्र की कई सीटें कुर्मी बाहुल्य हैं जिसमें पिंडरा, सेवापुरी, रोहनियां प्रमुख हैं। तीनों ही सीटें पर कुर्मी मतदाता 50 हजार से लेकर 1 लाख तक हैं लेकिन पटेल समाज ने पीएम से विकास की उम्मीद में भाजपा को वोट देकर तीनों ही सीटों पर स्वजातीय प्रत्य़ाशी को ही हरा दिया।
26 विधानसभाएं जहां कुर्मी प्रत्याशी होने के बाद भी पटेलों ने बीजेपी को जिताया-
- चित्रकूट वीर सिंह पटेल -सपा
- बिलासपुर प्रदीप कुमार गंगवार- बसपा
- बदायूं भूपेन्द्र सिंह दद्दा- बसपा
- बिथरी चैथपुर वीरेन्द्र सिंह- बसपा
- बरखेड़ा डा. शैलेन्द्र सिंह गंगवार- बसपा
- बीसलपुर रत्नेश गंगवार सपा, दिव्या पटेल बसपा
- गोला गोकर्णनाथ ब्रज स्वरूप कनौजिया- बसपा
- धौरहरा यशपाल चौधरी- सपा
- बिंसवा- निर्मल वर्मा- बसपा
- सिकंदरा सीमा सचान सपा, महेन्द्र कटियार बसपा
- जहानाबाद मदनगोपाल वर्मा -सपा
- पट्टी राम सिंह पटेल -सपा
- चायल चन्द्रबलि सिंह पटेल-सपा
- मेजा रामसेवक पटेल- सपा
- करछना दीपक पटेल-बसपा
- बाराबंकी सुरेन्द्र सिंह वर्मा- बसपा
- टांडा मनोज वर्मा- बसपा
- भिनगा इंद्राणी वर्मा- सपा
- कप्तानगंज रामप्रसाद चौधरी- बसपा
- रुदौली राजेन्द्रप्रसाद चौधरी बसपा
- गोरखपुर शहर जनार्दन चौधरी- बसपा
- सहजवना देवनारायण सिंह- बसपा
- फाजिलनगर विश्वनाथ सिंह-सपा जगदीश सिंह- बसपा
- हाटा बीरेन्द्र सिंह सैंथवार- बसपा
- पिंडरा बाबूलाल पटेल- बसपा
- रोहनिया सुरेन्द्र सिंह पटेल -सपा
- कुर्सी वी पी सिंह वर्मा -बसपा
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