लखनऊ.समाजवादी पार्टी में चल रहा घमासान अभी शांत नहीं हुआ है पिता पुत्र में मनमुटाव जारी है .लखनऊ में यश भारती सम्मान कार्यक्रम में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव मौजूद नहीं रहे। ऐसा पहली बार हुआ जबकि मुलायम सिंह ने ही 1994-95 में यश भारती पुरस्कार का शुभारंभ किया था। उसके बाद जब-जब पुरस्कार बंटा मुलायम उसमें मौजूद रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में इसे सत्ता और संगठन के बीच बढ़ी रार की दरार ही माना जा रहा है।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने जिस यश भारती पुरस्कार की नीव खुद डाली थी उसी यश भारती के सम्मान कार्यक्रम से दूर रहकर मुलायम ने पार्टी –परिवार में सब ठीक है-हम एकजुट हैं के दावे को खुद ही झूठा कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विभूतियों को सम्मानित करते हुए मुलायम को कई बार याद किया। यह उनकी सदाशयता से अधिक उत्तराधिकार दर्शाने का प्रयास हो सकता है क्योंकि वह चाचा शिवपाल और अमर सिंह के खिलाफ मुखर मोर्चा खोल चुके हैं। कहा जा रहा है कि सरकार और संगठन के बीच के मतभेद के चलते ही लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित आवास पर मौजूद होने के बाद भी मुलायम सिंह ने यश भारती सम्मान समारोह में हिस्सा लेने से गुरेज किया।
सपा एमएलसी आशु मलिक की पिटाई करने वाले राज्य मंत्री पवन पांडेय का मामला भी सत्ता और संगठन की राहें अलग-अलग दर्शाता है। पवन को सपा से निकालने की घोषणा में मुलायम सिंह की सहमति थी जिसकी जानकारी प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पत्र के जरिये भेजी मगर मुख्यमंत्री ने उसका संज्ञान नहीं लिया। इससे दावों से इतर हालात ऐसे नजर आ रहे हैं। प्रस्तावित रथयात्रा के लिए बुलाई बैठक में अखिलेश यादव के विश्वस्त आगे आगे रहे। विभिन्न शहरों में आयोजन का जिम्मा उन्हीं सुनील यादव साजन, आनंद भदौरिया, संजय लाठर, अरविंद यादव के कंधे पर है जिन्हें पार्टी निष्कासित कर चुकी है.