राज्य में वजूद की जंग लड़ रही कांग्रेस साइकिल के कैरियर पर बैठते ही सपा के 29.15 फीसदी मत अपनी झोली में मान रही हैं. लेकिन ‘माइनस माइनस प्लस’ का गणित का फार्मूला राजनीति में सही नहीं होता.
ऐसे ही फार्मूले के भरोसे कांग्रेस ने यूपी में कभी बीएसपी का साथ पकड़ा था. नतीजा कांग्रेस 27 साल से राज्य में सत्ता से दूर है. पार्टी नेताओं की गणित को जमीन पर केमिस्ट्री का साथ नहीं मिला और ‘कांग्रेसी चौबे, दुबे बनकर लौटे’. जबकि, बीएसपी राज्य में राजनीतिक ताकत बन गई.
ऐसे में महज आंकड़ों के भरोसे राज्य में जीत पर दांव लगा रहे दोनों दलों को जमीनी हकीकत को समझना और इससे पर पाना होगा. राज्य में 27 साल यूपी बेहाल के नारे पर चुनाव में उतरी कांग्रेस ने लंबे समय बाद कार्यकर्ताओं में उत्साह भरा था. अब जब अचानक पार्टी ने गठबंधन का एलान कर दिया है, क्या वे कार्यकर्ता जो कांग्रेस के लिए चुनाव में जाने को तैयार थे, सपा के साथ हो लेंगे?
देवरिया जिले के 55 वर्षीय राम कृपाल कहते हैं, ‘हमारी लड़ाई बीजेपी से नहीं एसपी की गुंडागर्दी से थी, हम उन्हें कैसे वोट दे सकते हैं?’ यह केवल राम कृपाल का दर्द नहीं है. कांग्रेस के ज्यादातर कार्यकर्ता या उनके पीछे खड़े लोग एसपी से नाराज हैं. उसके शासन से नाराज हैं.
राहुल से नाराज हैं कांग्रेसी कार्यकर्ता
वे महज राहुल गांधी के कहने भर से अपनी परेशानियां छोड़ एसपी के वोटर बन जायेंगे, मुश्किल लगता है. गोरखपुर के लल्लू पांडे कहते है, ‘ ब्राह्मण चेहरा लेकर पार्टी आई थी. सोचा था अब यूपी में कुछ बदलेगा. लेकिन हमारे नेता ने हमें एसपी के हाथ बेच दिया.’
लल्लू आगे कहते हैं, ‘हम सपा को वोट कैसे दे सकते हैं? इससे ठीक तो बहन जी को वोट दें, गुंडागर्दी से मुक्ति तो मिलेगी.’ कुछ ऐसा ही हाल एसपी के कार्यकर्ताओं का भी है.
पार्टी में हुई उथल-पुथल से पार्टी का एक बड़ा वर्ग नाराज़ है. भले ही अखिलेश के मुख्यमंत्री पद पर होने के नाते वह मौन हों लेकिन गठबंठन को लेकर पार्टी में असन्तोष बहुत ज्यादा है.
ऐसे में मुलायम का बयान कि वे ‘कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच हुए गठबंधन के खिलाफ हैं,’ ने आग में घी का काम कर दिया है. इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि ‘हम कांग्रेस के बजाय लोकदल को वोट देंगे’.
मेरठ के हरनारायण यादव कहते है, ‘पहले नेता जी को छोड़ा फिर जिससे जीवनभर लड़े उसका हाथ पकड़ लिया. जीवनभर कांग्रेस से दूर रहा अब पंजे पर वोट कैसे दूं, सो लोकदल के साथ जाने का फैसला किया है’. यह नाराजगी केवल कार्यकर्ताओं तक नहीं है. एसपी छोड़कर गए अंबिका चौधरी और नारद राय जैसे नेता सपा को जितना नुकसान पहुचाएंगे उससे ज्यादा पार्टी के भीतर वे नेता जो अपनी आवाज उठा नहीं रहे हैं.