कुर्मियों के दल के रूप में चर्चित अपना दल एस लगातार कुर्मी वोट बैंक पंर एकछत्र पकड़ का दावा करता है किंतु अपना दल एस पंर कुर्मियों को ही ठगने के लगातार आरोप लगे है
देश मे आगामी लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने को लेकर सभी दल बेचैन है , खास कर उत्तर प्रदेश की शियासत को बिगाड़ने और बनाने को लेकर उत्तर प्रदेश में सभी दलों की निगाहें पिछड़ों के साथ ही विशेषकर कुर्मी वोटों पर केंद्रित हो गयी हैं। सभी दलों में एन केन प्रकारेण अपने तरीके से बड़े कुर्मी नेताओं को अपनी पार्टी से जोड़ने की होड़ लगी है। प्रदेश के पिछड़े समाज के वोटर पर पहले जहां समाजवादी पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी अपना दावा कर रही थी, वहीं विगत के विधान सभा एवं लोकसभा के चुनावी नतीजो ने पूरे समीकरण को उलट-पलट दिया। बदले समीकरण में सभी दल अब पिछड़े वोटर के साथ ही कुर्मी वोटर को लुभाने में जुट गए है ।
उत्तर प्रदेश में कुर्मी वोटर्स की आबादी लगभग 14 प्रतिशत है किंतु तमाम मनुवादी मीडिया एवं स्वयम्भू समीक्षक छह फीसदी ही बताते है । इनमें पटेल, वर्मा, चौधरी, गंगवार, सचान, कटियार ,उमराव ,उत्तम , सैंथवार, मल्ल, चनऊ जैसे उपनाम वाली जातियां आती हैं। राज्य के सभी ओबीसी वोटर्स में इनकी संख्या का आकलन किया जाये तो यह करीब 35 फीसदी होती है। कुर्मी वोटर का उत्तर प्रदेश के करीब 25 लोक सभा सीटो बरेली, पीलीभीत,,फतेहपुर, श्रावस्ती , अंबेडकर नगर, बाराबंकी , फैजाबाद ,बस्ती ,संतकबीरनगर मिर्जापुर, सीतापुर, महाराजगंज, पडरौना , फूलपुर, प्रतापगढ़,धौरहरा, बांदा , खीरी, फर्रुखाबाद ,कन्नौज, मिश्रिख बिल्हौर, बहराइच, घाटमपुर, हरदोई , बनारस आदि लोकसभा सीटों पर प्रभाव ऐसा है कि इनकी एकजुटता से पसंदीदा उम्मीदवार जीत का परचम लहरा सकता है ।
उत्तर प्रदेश में हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 42 विधायक कुर्मी समाज से जीतकर उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सदन में पहुँचे । राजनैतिक समीक्षक मानते है कि उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज का बड़ा वोट बैंक कई राजनैतिक दलों की हैसियत को बनाने एवं बिगाड़ने में आगामी लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। आगामी लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने की फिराक में जुटे राजनैतिक दल संभवतः इसीलिए राज्य में पिछड़े एवं अतिपिछड़े वोटों के साथ ही कुर्मी समाज के वोट पर गिद्ध निगाह जमाए अपने पक्ष में जोड़ने की मुहिम में जुटे है ।
भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा लगातार पिछडो की वकालत करते हुए तमाम राजनैतिक हथकंडों का प्रयोग करते हुए पिछड़े समाज का झुकाव अपने दल के पक्ष में करने हेतु हेतु लगातार सम्मेलनों के माध्यम से प्रयत्नशील है । सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में यादव समाज के बाद सबसे बड़ा पिछडो का वोटबैंक कुर्मी समाज का ही है इसलिए कुर्मी बिरादरी को साधने के लिए भाजपा, सपा, कांग्रेस के अलावा बसपा भी पूरी ताकत लगाये हुई हैं, जबकि अपना दल के दोनों गुट कुर्मी वोटर्स पर अपना एकछत्र दावा करने से गुरेज नही करते ।
उत्तर प्रदेश की शियासत को बदलने की क्षमता रखने बाली कुर्मी बिरादरी लंबे समय तक कांग्रेस एवं भाजपा के साथ जुड़ी रही, लेकिन समय के साथ आये बदलाव में काशीराम के सहयोग से बसपा ने कुर्मी बिरादरी को अपने पाले में ला खड़ा किया। जिस कारण उत्तर प्रदेश की शियासत में बसपा ने झंडा बुलंद करते हुए सत्ता की सवारी का मजा भी लिया किंतु जैसे ही बसपा से कुर्मी वोटर्स का मोहभंग हुआ बसपा हासिए पंर आ गई , फिर कुर्मी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा सपा की ओर झुका जिस कारण उत्तर प्रदेश में पुनः समाजवादी पार्टी की सरकार बनी । समाजवादी पार्टी ने अपने स्थापना काल से ही बेनी प्रसाद वर्मा को जोड़े रखा और एक दौर में वह कुर्मी बिरादरी के करीब दो दशक तक सर्वमान्य नेता बने रहे। समाजवादी पार्टी की सरकार में कुर्मी समाज ने अपने को एकबार फिर ठगा महसूस किया जिस कारण भाजपा की ओर झुकाव हुआ , भाजपा भी अपने कुर्मी बिरादरी के नेताओं संतोष गंगवार , पंकज चौधरी , रामकुमार वर्मा , ओम प्रकाश सिंह , के सहारे कुर्मी मतदाताओं का बड़ा तबका जोड़े रखा किंतु भाजपा सरकार में कुर्मी समाज पर हुए अनेको अत्याचार पर भाजपा के सामाजिक नेताओ की चुप्पी से एक बार फिर कुर्मी समाज का झुकाव भाजपा से ख़त्म होता दिख रहा है । बदले राजनैतिक परिवेश में इस वक्त कुर्मी समाज में सर्वमान्य नेता की कमी भी महसूस की जा रही है ।
डा. सोनेलाल पटेल द्वारा गठित अपना दल के दोनों गुट कुर्मी वोट बैंक के स्वयंभू सर्वमान्य नेता घोषित करने से परहेज नही करते जबकि डॉ सोनेलाल पटेल जी के समय वाली अपना दल की सामाजिक पकड़ से अब कोषों दूर बताए जाते है । कुर्मियों के दल के रूप में चर्चित अपना दल एस लगातार कुर्मी वोट बैंक पंर एकछत्र पकड़ का दावा करता है किंतु अपना दल एस पंर कुर्मियों को ही ठगने के लगातार आरोप लगे है , कुर्मियों पंर हुए अत्याचार पर अपना दल एस की चुप्पी भी अपना दल एस के लिए घातक साबित हो रहा है , जबकि इसी दल पंर कुर्मी वोट बैंक को बेचने के तमाम आरोप भी लगते रहे है फिरहाल अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल एनडीए गठबंधन के साथ तो डॉ सोनेलाल पटेल जी की पत्नी एवं अपना दल कमेरावादी की राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल सपा के साथ जुड़ी हुई हैं।
भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर अपना दल एस की अनुप्रिया पटेल के अलावा कुर्मी बिरादरी के वोटों को सहेजने के लिए अभी से अपने नेताओं संतोष गंगवार, पंकज चौधरी और संजय गंगवार , राकेश सचान एवं स्वतंत्रदेव सिंह को सक्रिय करने में जुटी है तो दूसरी तरफ सपा भी कुर्मी वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए कृष्णा पटेल , पल्लवी पटेल के अलावा अपने प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल , राम प्रसाद चौधरी , लालजी वर्मा , अनिल प्रधान , नरेंद्र सिंह वर्मा , राकेश कुमर वर्मा , बालकुमार पटेल को सक्रिय किए है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी भी कुर्मी वोटरों को सहेजने के लिए अपने पुराने नेताओं को तलाशने में जुटी है ।
लोकसभा चुनाव की राजनैतिक सरगर्मी के बीच भाजपा के लिए मुसीबत बन रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उत्तर प्रदेश में मौजूदगी भी कई दलों के लिए खतरे की घण्टी बन रही है , चर्चा है कि उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट से नीतीश कुमार चुनाव लडेंगे , नीतीश कुमार बिहार में कुर्मियों के सर्वमान्य नेता है , बिहार में कुर्मियों की कम आबादी के बाद भी सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार के हाथ रहने के कई मायने लगाए जाते है । देश मे सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश में नीतीश कुमार की मौजूदगी से कुर्मी वोट बैंक के तथाकथित ठेकेदारों को अपनी ठेकेदारी खत्म होने का खतरा भी मंडरा रहा है , सभी दलों को डर है कि लोकसभा चुनाव में बिहार की भांति उत्तर प्रदेश में भी लव – कुश कार्ड चला तो देश की शियासत चरमरा जाएगी । फिरहाल सच क्या होगा लोकसभा चुनाव के नतीजो के बाद ही सामने आएगा ।
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