नवनीश कुमार
जनादेश आ गया है। लोगों ने अपने मन की बात बता दी है। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तक सब तरफ मोदी ही मोदी हैं। प्रदेशों के चुनावों में भी मोदी! सवाल, क्या यह अजीब है? क्या यह चौंकाने वाला है? क्यों हारी कांग्रेस?, कहां अटकी है (जनता जनार्दन की) कृपा?”
तेलंगाना
तेलंगाना में 119 सीटों में से कांग्रेस ने 64 सीटें जीती हैं। भारत राष्ट्र समिति को 39 सीटें मिलीं। असदुद्दीन ओवैशी की एआईएमआईएम को सीटें मिलीं। इस तरह तेलंगाना में कांग्रेस अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है।
बीजेपी का प्रदर्शन इस बार पिछले बार से बेहतर रहा है। 2018 के चुनाव में बीजेपी ने केवल एक सीट जीती थी। लेकिन इस बार यह पार्टी कुल 8 सीटों पर जीत दर्ज की है। एक सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के खाते में गई है। कांग्रेस को इस बार 39.40 प्रतिशत मत मिले हैं। वहीं बीआरएस को 37.35 प्रतिशत वोट मिले हैं। इस तरह इन दोनों दलों के बीच मतों का अंतर दो फ़ीसदी से अधिक रहा। बीजेपी के मतों का प्रतिशत इस बार पिछली बार की तुलना में बढ़कर दोगुना हो गया है। 2018 में बीजेपी को 6.98 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन इस बार बीजेपी को 13.90 प्रतिशत मत मिले हैं। एआईएमआईएम को 2.22 प्रतिशत वोट मिले, जबकि बीएसपी को 1.37 प्रतिशत। वहीं नोटा पर यहां 0.73 प्रतिशत मत पड़े।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार शाम नई दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय से कार्यकर्ताओं और आम लोगों को संबोधित किया। कहा, “इस चुनाव में देश को जातियों में बांटने की बहुत कोशिशें हुई, लेकिन मैं लगातार कह रहा था कि मेरे लिए देश में 4 जातियां ही सबसे बड़ी जातियां है।” “जब मैं इन 4 जातियों की बात करता हूं तब हमारी नारी, युवा, किसान और हमारे ग़रीब परिवार इन 4 जातियों को सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है।” बीजेपी की जीत पर अमित शाह ने कहा कि जनता के दिल में सिर्फ और सिर्फ मोदी जी हैं… उधर, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पार्टी को मजबूत करेंगे तो राहुल गांधी ने कहा कि विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी।
क्या बताते हैं नतीजे, कहां रही कमी?
चार राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के नतीजे ऊपरी तौर पर यह बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थन आधार में विस्तार का सिलसिला अभी रुका नहीं है। तेलंगाना में एक हैरतअंगेज उलटफेर में कांग्रेस ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को हरा दिया, लेकिन उसका भाजपा की सियासत के लिए कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा। असलियत तो यह है कि वहां भी भाजपा के समर्थन आधार में विस्तार ही हुआ है। यहां तक कि दक्षिण राज्य कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनाव में अन्य समीकरणों के कारण भले भाजपा हार गई हो, लेकिन अपने वोट आधार (36 प्रतिशत) की रक्षा करने में वह वहां भी सफल रही थी।
जिम्मा केवल राहुल गांधी के कंधों पर नहीं डाला जा सकता, इसमें सबको अपनी हिस्सेदारी निभानी होगी। भाजपा की जीत का एक प्रमुख कारण सोशल इंजीनियरिंग की उसकी नीति भी है। जातीय प्रतिनिधित्व की आकांक्षाओं को उसने अपनी हिंदुत्ववादी राजनीति के बड़े तंबू के अंदर समेट लिया है। इस तरह वह 1990 के दशक में उभरी मंडलवादी राजनीति की काट तैयार कर ली है। आज हकीकत यह है कि उत्तर भारत में ओबीसी मतदाताओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा का मतदाता है। दलित और आदिवासी समुदायों में भी उसकी पैठ अब काफी मजबूत हो चुकी है।
2024 और उसके आगे भी आम चुनावों में कांग्रेस या विपक्ष का कोई भविष्य नहीं है। अगर वह अपना भविष्य बनाना चाहता है, तो उसे राजनीति की नई परिकल्पना करनी होगी- राजनीति क्या है इसकी एक नई समझ बनानी होगी। नई राजनीति नए तौर-तरीकों से ही की जा सकती है। इसलिए ऐसे तौर-तरीके ढूंढ़ने होंगे। लेकिन ऐसा इलीट कल्चर (अभिजात्य संस्कृति) में जीते हुए करना असंभव है। यह एक श्रमसाध्य राजनीति है, जिसके लिए कम से कम आज का विपक्ष तो तैयार नहीं दिखता।
साभार – सबरंग इंडिया
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