बीएसपी के उत्तराधिकारी आकाश आनंद के सामने चुनौती बने चंद्रशेखर रावण - न्यूज़ अटैक इंडिया
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बीएसपी के उत्तराधिकारी आकाश आनंद के सामने चुनौती बने चंद्रशेखर रावण

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बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती द्वारा अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद जारी चर्चाओं के बीच विश्लेषकों ने आकाश आनंद के सामने मौजूद चुनौतियों पर ध्यान दिलाया है। अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ ने इन चुनौतियों पर एक विश्लेषण छापा है। इसके अनुसार राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में 28 साल के आकाश आनंद के सामने सबसे बड़ी चुनौती उस पार्टी में बदलाव लाने की है, जो एक समय में राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी खिलाड़ी मानी जाती थी।

विश्लेषकों की नज़र में दलित-केंद्रित पार्टी का गिरता समर्थन-आधार उसके गृह क्षेत्र यानी उत्तरप्रदेश में पिछले दो विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उसके प्रदर्शन से स्पष्ट है। बीएसपी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि पार्टी चीफ़ और यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने लखनऊ में 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीति पर चर्चा के लिए बुलाई बैठक में ये घोषणा की।

आकाश पर कौन-कौन सी ज़िम्मेदारी?

आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। आकाश ने ब्रिटेन से एमबीए की पढ़ाई पूरी की है। अख़बार लिखता है कि साल 2019 में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक बनाए जाने के बाद से ही आकाश आनंद को बीएसपी सुप्रीमो के उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया जाने लगा था। उन्हें जो सबसे पहली अहम ज़िम्मेदारी दी गई, वो थी उत्तर प्रदेश के युवाओं के बीच पहुँच बढ़ाना। उन्हें ख़ासतौर पर दलित समुदाय के युवाओं के बीच जाना था, जो कि साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार आने के बाद से ही बीएसपी से छिटकता जा रहा है।

लखनऊ में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक असद रिज़वी के हवाले से अखबार लिखता है, ‘आकाश की यूपी की राजनीति में एंट्री ऐसे समय में हुई जब दलित वोट बैंक में उथल-पुथल जैसी स्थिति थी। 2017 के बाद बीएसपी का जातीय हिसाब-किताब गड़बड़ा चुका था और दलित आकांक्षाओं को भुनाने में गहरी दिलचस्पी के साथ चंद्रशेखर आज़ाद एक संभावित चुनौती के रूप में उभरे थे।

आकाश आनंद बिना नाम लिए चंद्रशेखर आज़ाद की आलोचना करते आए हैं। इसी साल जयपुर में 13 दिनों तक चली सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय संकल्प यात्रा के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘बहुत से लोग नीले झंडों के साथ घूम रहे हैं, लेकिन हाथी के चिह्न के साथ नीला झंडा सिर्फ़ आपका (बीएसपी समर्थक) है।

आकाश आनंद पहले से ही यूपी और उत्तराखंड के अलावा भी सभी राज्यों में पार्टी के सभी बड़े मामलों को संभालते आए हैं। शाहजहांपुर में बीएसपी के ज़िला प्रमुख उदयवीर सिंह ने अख़बार से बातचीत में कहा, ‘आकाश आनंदजी को अलग-अलग राज्यों में पार्टी संगठन को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी मिली है।

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भी आकाश आनंद छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और मिज़ोरम में पार्टी का चुनावी अभियान संभाल रहे थे। हालांकि वह हवा का रुख़ बीएसपी के पक्ष में मोड़ने में असफल रहे। एक समय पर बीएसपी को राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर देखा जाता था।

आकाश आनंद ने राजस्थान के कई ज़िलों में यात्राएं की। बीएसपी ने 184 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत केवल 2 पर मिली। बीएसपी का वोट शेयर भी 1.82 फ़ीसदी ही रहा, वहीं साल 2018 में बीएसपी ने राज्य में 6 सीटें जीती थीं और उसका वोट शेयर भी 4.03 फ़ीसदी था।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में तो पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी और 2018 की तुलना में उसे वोट भी काफ़ी कम मिले। 2018 के मध्यप्रदेश चुनावों में बीएसपी ने 2 सीटें जीती थीं और 5 फ़ीसदी से अधिक वोट पाए थे, लेकिन इस बार पार्टी इसका आधा वोट शेयर भी नहीं पा सकी।

लखनऊ यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान विभाग में पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर संजय गुप्ता के हवाले से अख़बार ने लिखा है, ‘मायावती एक ऐसे आंदोलन से उभरीं जिसने दलितों को उनके मतदान की ताक़त के बारे में जागरूक किया। पिछले एक दशक में जातीय गठबंधन बनाने की बसपा की ताक़त फीकी पड़ गई है। अगर मायावती पार्टी के गिरते जनाधार को रोक नहीं पाईं, तो ये आकाश आनंद के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि वह ज़मीनी नेता नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि आकाश आनंद जैसे राजनीतिक उत्तराधिकारियों के सामने समस्या यह है कि उनके मूल वोट बेस का एक बड़ा हिस्सा उन्हें ‘अभिजात्य वर्ग’ मानता है जिससे उनके लिए राजनीति में बड़ी ऊंचाई हासिल करना मुश्किल हो जाता है। संजय गुप्ता ने कहा, ‘अगर आप अधिकांश राजनीतिक शख्सियतों को देखें, तो उनके उत्तराधिकारी संघर्ष कर रहे हैं।

साल 2007 में उत्तरप्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 206 पर जीत हासिल कर के सरकार बनाने वाली बीएसपी का अब केवल एक विधायक है। पार्टी ने अपना करीब 60 फ़ीसदी वोट बेस खो दिया है। साल 2007 के चुनाव में पार्टी को 30.43 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में ये घटकर 12.8 फ़ीसदी रह गया।

दलित समाज के युवाओ में एक अलग पहचान कायाम कर रहे भीम आर्मी के मुखिया एवं वर्तमान में आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद रावण पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई दफा तीखा हमला किया है। उन्हें आरएसएस का एजेंट तक बताया, लेकिन चन्द्रशेखर ने इस मामले में सावधानी बरतते हुए अब तक उनको लेकर एक चुप्पी ओढ़े रखी है, लेकिन पार्टी के निर्माण के बाद चन्द्रशेखर ने सीधे रूप से बीएसपी और मायावती पर सवाल उठाया था। चन्द्रशेखर आजाद ने एक लेख लिखकर बताया था कि आखिर आजाद पार्टी की ज़रूरत क्यों पड़ी। इस लेख में आजाद लिखते हैं, ‘‘कांशीरामजी ने हमें सिखाया कि हमें अपने अधिकारों के लिए कैसे लड़ना है। लेकिन उनका सपना अब भी अधूरा है। हमारा उद्देश्य उस सपने को पूरा करना और शोषितों और बहुजनों को सत्ता दिलाना है। नए राजनीतिक दल के गठन का प्राथमिक उद्देश्य और एजेंडा यह सुनिश्चित करना है कि संविधान को बेहतर तरीके से लागू किया जाय।

आज़ाद ने अपने लेख में लिखा था कि ‘‘बीएसपी बहुजनों के हित के लिए लड़ती रही हैं, लेकिन कांशीरामजी का मिशन पूरा होना अभी बाकी है। दुर्भाग्य से, कांशीरामजी की मृत्यु के बाद बसपा ने अपने सिद्दांतों से समझौता किया। पार्टी में दलित-बहुजन की भूमिकाओं को कम किया गया और उच्च जातियों, पैसेवालों को सत्ता के पदों पर पहुंचाया जाने लगा। इससे बसपा का चुनावी पतन हुआ। आज बीएसपी को लेकर बहुजन समाज में गहरा असंतोष है।

दलितों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए अत्याचार पर मायावती का चुप रहना हो या केंद्र की बीजेपी सरकार के हर फैसले पर उसका समर्थन करना हो। जमीन पर उतरकर सरकार का विरोध करने की बजाय कभी-कभार ट्वीट करके विरोध जताने आदि कई आरोप बीएसपी प्रमुख मायावती पर लगते रहे हैं।

जिन मसलों पर सुश्री मायावती चुप रहीं उन मामलों पर चन्द्रशेखर रावण लगातार सड़कों पर उतरते रहे, जेल जाते रहे। उन्हें कई बार योगी सरकार ने जेल में डाला। उन्हें रासुका के तहत जेल में रखा गया। दिल्ली में डीडीए द्वारा रविदास मंदिर तोड़ने के खिलाफ चन्द्रशेखर ने बड़ा आंदोलन किया। जिसके बाद उन्हें महीनों जेल में बिताना पड़ा। गुजरात में जब दलितों पर हमले हुए तो चन्द्रशेखर वहां भी गए और कड़ा विरोध जताया।

चन्द्रशेखर ना सिर्फ दलितों के लिए सड़क पर उतरे बल्कि सीएए कानून बनने और एनआरसी लाने के सरकार के फैसले के खिलाफ जब मुस्लिम समुदाय सड़क पर उतरा तो चन्द्रशेखर जामा मस्जिद पर धरना देने भी गए। यहां दिल्ली पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।

दूसरी तरफ 2014 से अब तक बीएसपी के कई बड़े नेता पार्टी से नाराज़ होकर अलग हो गए या बाहर कर दिए गए। वे आज बीजेपी और कांग्रेस में हैं। कहीं ना कहीं बीएसपी जमीन पर काम करने वाले नेताओं की कमी से जूझ रही है। बीते दिनों में मायावती के भीतर एक और बदलाव दिखा है परिवारवाद का, मायावती कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देने के बजाय अपने भाई और भतीजे को पार्टी के बड़े ओहदों पर बिठा चुकी हैं।

ऐसे में चन्द्रशेखर आजाद ने नई दलित अस्मिता की पार्टी बनाकर मायावती को एक बड़ी चुनौती दे दी है। आजाद की नज़र भी उसी दलित और मुस्लिम वोट बैंक की तरफ है जिसपर बीएसपी की पकड़ रही है।, और जिसके सहारे मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। सुश्री मायावती द्वारा भतीजे आकाश आनंद को बसपा की बागडोर सौपे जाने के बाद दो युवाओ के बीच दलित वोटो पर जंग होगी , जबकि आजाद समाज पार्टी ने हाल के राजस्थान चुनाव में बसपा की अपेक्षा उम्दा प्रदर्शन किया है।

चन्द्रशेखर के भविष्य को लेकर बद्रीनारायण कहते हैं, ‘‘चन्द्रशेखर लगातार काम कर रहे हैं. हर वक़्त दिखाई पड़ते हैं. मेहनती है। अभी इनको अपने को फैलाना है। चंद्रशेखर के भविष्य को लेकर दिलीप मंडल कहते हैं, ‘‘मैं उन्हें भारतीय राजनीति की संभावना के रूप में देखता हूं। उनका भविष्य क्या होगा इसपर कुछ नहीं कह सकता। दिलीप मंडल आगे कहते हैं, ‘‘दलितों की इस देश में एक से ज्यादा पार्टियों की गुंजाइश है। इस देश में सवर्णों के नेतृत्व वाली कई पार्टियां हैं जिसमें से मुख्य रूप से कांग्रेस, बीजेपी और लेफ्ट है। उनमें से कोई ग्रुप अपने लिए बेहतर विकल्प चुनता है वैसे ही दलितों के लिए कई विकल्प हों तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है।, और दूसरी बात यह है कि कोई पार्टी जब ढलान पर होती है तो उसका वोट इधर-उधर छिटकता है। ये दुनिया में हर पार्टी के साथ होता है। अगर बीएसपी का वोट प्रतिशत इधर-उधर छिटक रहा है तो वो कहीं ना कहीं तो जा रहा है। अगर वह छिटककर एक दलित पार्टी के पास जाता है तो मेरे ख्याल से यह बेहतर स्थिति होगी।

लक्ष्मण यादव चन्द्रशेखर के भविष्य को लेकर कहते हैं, ‘‘चन्द्रशेखर ने अपनी पार्टी की घोषणा करते हुए कहा कि था हम कांशीराम के विचारों को लेकर आगे चलेंगे। कांशीराम 85 प्रतिशत बहुजन की बात करते थे। जिस समय ओबीसी नेता मुलायम सिंह यादव मंडल कमिशन पर बोल नहीं रहे थे उस वक़्त में कांशीराम ने छह सौ रैलियां मंडल कमीशन लागू कराने के लिए की थी। कांशीराम ओबीसी, दलित मुस्लिम सबको साथ लेकर चलने की बात करते थे। ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रशेखर मुस्लिम-दलित गठजोड़ की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ मुस्लिम और दलित गठजोड़ को लेकर ही नहीं चलेंगे बल्कि ओबीसी को भी साथ लेंगे। अगर इस लाइन पर चन्द्रशेखर चलते हैं तो उनका भविष्य बेहतर हो सकता है,क्योंकि उनके पास एक विजन है। जिसमें मायावती फ़िलहाल असफल दिख रही हैं।

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