नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में भाजपा विधायक दल की बैठक में चौकाने वाला फैसला हुआ कि विधायक दल के नेता मोहन यादव होंगे, मोहन यादव का नाम विधायक दल के नेता के रूप में आने के बाद सभी भौचक रह गए। जबकि विधायक दल का नेता अर्थात मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम लोकसभा चुनावों को दृश्टिगत फेंकी गई एक सोची-समझी चाल के रूप में देखा जा रहा है वही भाजपा पर कांग्रेस द्वारा लगातार उठाए जा रहे ओबीसी के मुद्दे पर एक करारा जवाब भी कहा जा सकता है ,ऐसी चर्चा भी शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि लगभग सभी जातियों में पैंठ जमा चुकी भाजपा यादवों के बीच जगह बनाने में अभी भी उतनी सफल नहीं हुई थी। यह एक लाइन थी जिसे भाजपा ने इस ऐलान के साथ अब तोड़ने का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश और बिहार यादवों का मजबूत गढ़ एवं आधार माना जाता है और अब भाजपा ने एक तीर से कई निशाने पर वार करने का प्रयाश किया है। यह इस ओर भी इशारा है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हिन्दी भाषी राज्यों में यादव वोट को साधने के लिए मोहन यादव का नाम आगे करते हुए एक बेहतरीन पिच तैयार की है।
जनसत्ता के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने हिंदी भाषी इलाकों में राजनीतिक प्रभाव रखने वाले यादव परिवारों में सेंध लगा दी है। पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब मोहन यादव उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां यादवों की मजबूत उपस्थिति है, प्रचार करेंगे तो कैसा प्रभाव पड़ेगा। वह कहते हैं कि अगर लोकसभा में यादवों का एक वर्ग भाजपा में चला जाता है तो भी इसका प्रभाव बहुत बड़ा होगा क्योंकि भाजपा के पास पहले से ही महत्वपूर्ण बढ़त है। यह भी संकेत है कि भाजपा ने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के किले भेदने की भी एक कोशिश की है।
एक नेता ने कहा कि अगर पार्टी ने उत्तर प्रदेश या बिहार में किसी यादव को शीर्ष पद पर बिठाया होता, तो इससे पिछड़े वर्ग की दूसरी जातियों में नाराजगी हो सकती थी लेकिन मध्य प्रदेश का मामला अलग है। मध्य प्रदेश के माध्यम से किसी और को परेशान किए बिना यादवों को एक संकेत भेजा गया है।
भाजपा ने यादव वोट को साधने का लगातार प्रयास किया है । बिहार के 2015 विधानसभा चुनावों में 23 यादवों को मैदान में उतारा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना की एक रैली में कहा था कि ‘यदुवंशियों’ को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि पार्टी उनके हितों का ख्याल रखेगी। 2024 के आम चुनावों से पहले पार्टी ने 2021 में भूपेन्द्र यादव को केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठाया और 2022 में सुधा यादव को पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल किया। यह गहरे संकेत हैं जिनसे पार्टी की मंशा ज़ाहिर होती है।
छात्र राजनीति से शुरुआत, संघ में अच्छी पकड़
मोहन यादव का जन्म 25 मार्च 1965 को हुआ है। दो पुत्र और एक पुत्री है। उन्होंने एलएलबी किया है। 1982 में माधव विज्ञान महाविद्यालय में पहली बार छात्र संघ के सह सचिव चुने गए थे। 1984 में अखिल भारती विद्यार्थी परिषद उज्जैन के नगर मंत्री व 1986 में वह विभाग प्रमुख बने थे। 1988 में मोहन यादव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में प्रदेश सह मंत्री एवं 1991-92 में मोहन यादव राष्ट्रीय मंत्री बन गए थे। इसके बाद उन्होंने संघ से भी जुड़कर लंबे समय तक काम किया है। वह उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट से विधायक हैं। संगठन और संघ में उनकी अच्छी पकड़ है।
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