जद यू का नेतृत्व अपने हाथ लेने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नजर राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका पर है। वह हिंदी पट्टी के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं, जिनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव होने के साथ ही उनके 4 दशक से अधिक के राजनीतिक कैरियर में कोई दाग नहीं है। शुरुआत से ही वह एक समाजवादी नेता की छवि रखते हैं, उन्होंने कई मौकों पर वामपंथी दलों और कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया है। ऐसे कई फैक्टर नीतीश के पक्ष में हैं। 2024 का चुनाव बिहार के मुख्यमंत्री के लिए “करो या मरो की लड़ाई होगी” नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में एक बड़ी भूमिका की तलाश में हैं और एक समय में कई राजनीतिक जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं। यह आने वाले समय में उनके राजनीतिक करियर का एक निर्णायक मोड़ हो सकता है।
जदयू की कमान संभालने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के सभी प्रदेश अध्यक्षों को लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाने का निर्देश दिया। नई दिल्ली स्थित अपने आवास में एक-एक कर पार्टी के 22 प्रदेश अध्यक्षों, प्रभारियों सहित अन्य नेताओं से उन्होंने मुलाकात कर राज्यों में पार्टी संगठन की स्थिति सहित राजनीतिक हालात को लेकर विस्तृत चर्चा किया। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत झारखंड के रामगढ़ से 21 जनवरी को करेंगे। इस दौरान “नीतीश जोहार” के नाम से उनकी पहली सभा रामगढ़ में होगी। इसके बाद आगे का कार्यक्रम तय होगा।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इंडिया महागठबंधन के नेताओ को पता है कि हिंदी पट्टी राज्यों में नीतीश कुमार सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं। इसलिए इंडिया गठबंधन के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की ताकत बहुत ज्यादा है, हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा का दबदबा और भी बढ़ गया है। अब विपक्षी गठबंधन को एक ऐसे चेहरे की जरूरत है। जिसमें हिंदी भाषी राज्यों में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने की ताकत हो। बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के पास सरकार चलाने के साथ-साथ गठबंधन का गणित भी संभालने का अनुभव है। वह भले ही पीएम नरेंद्र मोदी की तरह जादुई वक्ता न हों, लेकिन अपने देहाती दृष्टिकोण और मृदुभाषी व्यवहार के जरिए जनता से अच्छे से जुड़ जाते हैं। यह ऐसे पहलू हैं जो उत्तरी राज्यों में ध्रुवीकरण के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का श्रेय जाता है। यह मुद्दा भारतीय राजनीति में गेमचेंजर साबित हो सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समाज से आते हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केटेगरी में शामिल है, इसी जाति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान 4 प्रस्ताव पारित किए थे। इसमें से एक प्रस्ताव ऐसा था जिसमें देशभर में जाति आधारित जनगणना का समर्थन करना था, यहां तक कि कांग्रेस जो कि बिहार में नीतीश की सहयोगी पार्टी है, वह भी जाति आधारित जनगणना का समर्थन कर रही है।
भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार सबसे बड़े मुद्दों में से एक है। वर्तमान में अधिकांश विपक्षी दल भ्रष्टाचार की जांच का सामना कर रहे हैं। कांग्रेस, आप , टीएमसी , आरजेडी और डीएमके के वरिष्ठ नेता भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिति अन्य विपक्षी दलों से अलग है, लगभग दो दशकों तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उन पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं लगे हैं हालांकि मुख्यमंत्री के रूप में उनके पिछले दो कार्यकाल कुछ विवादों से घिरे रहे हैं, फिर भी वे अपनी छवि साफ रखने में कामयाब रहे हैं।
उनकी पार्टी में हालिया घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि अगर स्थिति की मांग हुई तो ललन सिंह जैसे को भी हटाया जा सकता है ,जद यू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निश्चित रूप से विपक्षी गठबंधन में एक बड़ी भूमिका पाने की संभावना की कल्पना करेंगे। यहां तक कि जद यू ने उन्हें सहयोगी दलों से बातचीत के लिए भी अधिकृत किया है। नीतीश उनके लिए एक एसेट्स की तरह साबित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि सब कुछ योजना के अनुसार नहीं हो रहा है, तो वह सिरदर्द साबित हो सकते हैं।
यूपी में नीतीश की सक्रियता से किसको नुकसान
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उत्तर प्रदेश जदयू के नेताओं ने मुलाकात कर उनसे उत्तर प्रदेश में कई जगह सभा करने का अनुरोध किया। इस दौरान उत्तर प्रदेश जदयू के प्रभारी के तौर पर बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार मौजूद रहे। उत्तर प्रदेश के जदयू नेताओं ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि वे फूलपूर, वाराणसी, अंबेडकरनगर, घाटमपुर, फतेहपुर में अपनी सभा के लिए सहमति दें। इस पर मुख्यमंत्री ने उन सभी को कार्यक्रम तय कर वहां पहुंचने का आश्वासन दिया है। जद यू को पता है कि उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज नेतृत्व विहीन है , उत्तर प्रदेश का कुर्मी समाज बिहार की भांति एक न होकर बिभिन्न दलों में बिखरा हुआ है, यदि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में समय देते है तो निकश्चित तौर पर कुर्मी समाज की लगभग 14 प्रतिशत आबादी का एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार की अगुवाई में चलने को तैयार हो जाय। जिसका नुकसान भाजपा एवं सहयोगी दल को होना तय है।
सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में ‘कुर्मी सीएम’ के सपने के साथ ही बहुजन समाज पार्टी से अलग होकर सोने लाल पटेल ने ‘अपना दल’ नाम से अलग पार्टी बनाई थी। उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल एस का साथ लेना भाजपा के लिए जरूरी बना हुआ है तो उधर दूसरी बेटी पल्लवी पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल कमेरा को अखिलेश यादव अपने साथ लिए हुए हैं। उत्तर प्रदेश में कुर्मी वोटों की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि पिछले दो जुलाई को सोने लाल पटेल जयंती कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह खुद लखनऊ पहुंचे। यूपी में कुर्मी वोट की अहमियत की वजह से ही अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री भी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी पट्टी में नीतीश कुमार कुर्मी समाज के सबसे बड़े नेता हैं। विपक्ष के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर नीतीश कुमार यूपी से चुनाव लड़ते हैं तो उनके चेहरे पर कुर्मी समाज विपक्ष के साथ गोलबंद हो सकता है। कुर्मी समाज अगर गोलबंद होकर विपक्ष के साथ आ जाता है तो फिर यूपी के चुनावी गणित पर असर पड़ना स्वाभाविक है। कोशिश यह है कि नीतीश कुमार चुनाव लड़ें अपनी ही पार्टी के निशान पर, लेकिन राष्ट्रीय गोलबंदी में शामिल विपक्ष के सभी दल उनका समर्थन करें।
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