भारतीय विज्ञान कांग्रेस को समाप्त करने का षड्यंत्र क्या सफल होगा? - न्यूज़ अटैक इंडिया
Search

भारतीय विज्ञान कांग्रेस को समाप्त करने का षड्यंत्र क्या सफल होगा?

न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack

देश भर में 2024 के जनवरी माह में राममंदिर के उद्घाटन की चर्चा है। सारी मीडिया केवल इन ख़बरों से भरी है,कि वहां पर उद्घाटन कब होगा, किस तरह होगा, कितने लोग शामिल होंगे और किसे बुलाया गया और किसे नहीं बुलाया गया, जैसी ख़बरों से भरा है। इसके बहाने समूची गोदी मीडिया देश भर में एक तरह धार्मिक उन्माद पैदा कर रही है। जिससे कि आसन्न चुनाव में इसका फ़ायदा भाजपा को पूरी तरह से मिल सके, परन्तु इन उन्मादपूर्ण ख़बरों के बीच एक महत्वपूर्ण ख़बर: जिसका भविष्य में देश सामाजिक ढाँचे पर गहरा असर पड़ सकता है,वे ख़बरें गोदी मीडिया में बिलकुल नदारद है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार क़रीब एक शताब्दी से प्रतिवर्ष 3 जनवरी से पांच दिन का भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन देश के किसी न किसी विश्वविद्यालय में होता है। क़रीब 2023 में इसका 108वां आयोजन हुआ था, परन्तु इस वर्ष यह आयोजन इतिहास में पहली बार स्थगित कर दिया गया तथा इसे आयोजित करने की नयी तारीख का अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया।

भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन 2021-22 में भी कोविड महामारी के कारण नहीं किया जा सका था। 2023 में प्रधानमंत्री ने इस आयोजन का उद्घाटन ऑनलाइन किया था। इस वर्ष इसको स्थगित करने का कारण यह बताया जा रहा है कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन (आईएससीए) एक पंजीकृत सोसायटी है, जो इसका आयोजन करती है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) इस आयोजन के लिए धन देती है, लेकिन इस वर्ष उसने वित्तीय अनियमितताओं का हवाला देकर फंड पर रोक लगा दी तथा यह भी निर्देश दिया गया, कि इस आयोजन को करने के लिए सरकारी धन का उपयोग न किया जाए।

डीएसटी के निर्देश के ख़िलाफ़ आईएससीए अदालत में चली गई, जिसका फ़ैसला अभी तक नहीं हुआ है। आईएससीए के महासचिव रंजीत कुमार वर्मा ने कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोजन समय पर नहीं हो रहा है, लेकिन यह भारतीय विज्ञान कांग्रेस का अंत नहीं है। हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि 31 मार्च से पहले विज्ञान कांग्रेस का आयोजन हो सकता है।”

डीएसटी द्वारा इसके आयोजन के लिए हर वर्ष 5 करोड़ की धनराशि दी जाती थी, इसके अलावा आईएससीए को विज्ञान के प्रचार-प्रसार लगे कुछ अन्य सरकारी संगठनों से भी धन मिलता है और वह अपने सदस्यों से सदस्यता के माध्यम से भी कुछ धन जुटाता है, लेकिन यह धनराशि पर्याप्त नहीं है।

यह मामला देखने में जितना सरल लगता है, उतना है नहीं, क्योंकि वर्तमान सरकार ऐसी सभी संस्थाओं: जिससे उसे लगता है कि वह उसके एजेंडे को पूरा नहीं कर रही है, उन पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाकर मिलने वाला सरकारी फंड रोक रही है, क्योंकि कोई भी धार्मिक कट्टरपंथी बुद्धि, तर्क और विवेक: जिसका आधार वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है, उसकी वह विरोधी होती है।

एक उदाहरण के लिए:- 2016 में सरकार ने विज्ञान एवं औद्योगिक अनुसंधान रिसर्च (सीएसआईआर) का बजट आधा कर दिया और कहा कि “वह उत्पादों को तैयार करके बाकी ख़र्च जुटा लें।” इतना ही नहीं उनसे यहभी कहा गया कि, “वह सोशल सेंटर टेक्नोलॉजी की तरफ अपना फोकस बनाए रखें (जिसमें गोमूत्र पर अनुसंधान भी शामिल हो)।”

विडम्बना है कि 2000 करोड़ की इस कटौती से देश में अन्य स्थानों पर चल रहे रिसर्च के लिए सीएसआईआर के 38 सेंटरों को भी मदद मिलना बंद हो गया। रेखांकित करने वाली बात यह है, कि यह महज़ काऊपैथी को विज्ञान की नयी शाखा के रूप में स्थापित करना ही नहीं है बल्कि यज्ञों को समस्याओं के समाधान के तौर पर पेश करना भी है।

आज़ादी के पहले से ही भारत में वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार में विज्ञान कांग्रेस की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इनके उद्घाटन समारोह में अनेक महत्वपूर्ण व्याख्यान भी दिए थे, जो देश में वैज्ञानिक चेतना को विकसित करने के लिए आज के समय में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। विज्ञान कांग्रेस में भारतीय वैज्ञानिक विज्ञान में नवीनतम विकास के बारे चर्चा करने के लिए हर वर्ष एकत्रित होते थे, लेकिन पिछले एक दशक में इसकी गुणवत्ता में भारी गिरावट आई, जब इसमें ऐसे संदिग्ध लोगों का प्रवेश होने लगा, जिनका आधुनिक विज्ञान से कुछ भी लेना-देना नहीं है, हमारे देश में प्लास्टिक सर्जरी बहुत पहले से थी,

1-क्योंकि गणेश जी का कटने पर हाथी का सिर लगाया गया था।

2-गाय ऑक्सीजन छोड़ती है,कार्बन-डाई-ऑक्साइड लेती है।

3-यज्ञों के धुएं से वातावरण अशुद्ध नहीं शुद्ध होता है।

4-रॉकेट साइंस का अविष्कार हमारे देश में पहले भी हो चुका था, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता है।

इस तरह की ग़ैर वैज्ञानिक और अतार्किक बातें विज्ञान कांग्रेस में की जाने लगीं। दुर्भाग्यवश देश के प्रधानमंत्री तक इन बातों का समर्थन करने लगे। तंत्र-मंत्र,भूत-प्रेत और ज्योतिष आदि पर शोध कराने के लिए सरकारी अनुदान दिया जाने लगा,यही कारण है कि देश के शीर्ष वैज्ञानिक विज्ञान कांग्रेस जैसे अधिवेशनों से दूर होते चले गए तथा इसमें विश्वविद्यालय और कॉलेजों के ऐसे अध्यापकों का जमावड़ा होने लगा, जो पहले ही से पिछड़ी हुई ग़ैर वैज्ञानिक मूल्य-मान्यताओं से ग्रस्त थे। अन्ततः इसका अनुदान रोककर सरकार ने इसके ताबूत पर अंतिम कील ठोंक दी है।

पाकिस्तान के मशहूर भौतिकविद एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता परवेज़ हुदभौय ने ‘द डॉन अखबार’ छपे अपने एक लेख जिन्ना इनवेड कैंपसेस) में लिखा है कि, “पाकिस्तान के शिक्षण और वैज्ञानिक संस्थाओं में आजकल ऐसे सेमिनारों का बोलबाला है, जिनमें यह बताया जाता है कि इस्लाम की धार्मिक पुस्तकों में वर्णित भूत और जिन्न वास्तव में मौजूद हैं। वहां दसवीं कक्षा में भौतिकी के इतिहास में न्यूटन और आइंस्टीन गायब हैं, बल्कि ‘टोलमी द ग्रेट, अल किन्दी, इल्म एक हैथाम’ आदि विराजमान हैं या फिर खैबर पख्तूनवा प्रांत में पाठ्यक्रम के लिए लिखी जीवविज्ञान किताब में डार्विन के इवोल्यूशन के सिद्धांत को पूरे सिरे से ख़ारिज कर देती है।”

पूरे मुल्क में बढ़ती इस बंद दिमागी का जो परिणाम दिखाई दे रहा है,उसका निष्कर्ष निकालते हुए उन्होंने लिखा था, “दुनिया के किसी अन्य इलाक़े की तुलना में पाकिस्तान एवं अफ़ग़ानिस्तान में अतार्किकता तेजी से बढ़ी है और ख़तरनाक हो चली है। लड़ाइयों में मारे जाने वाले सैनिकों की तुलना में यहाँ पोलियो कर्मचारियों की उम्र कम होती है और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस हक़ीक़त को देखते हुए स्कूल,कॉलेज और विश्वविद्यालय युवा मनों का प्रबोधन करने बजाय उन्हें कुचलने में लगे हैं। अतार्किकता के ख़िलाफ़ संघर्ष निश्चित ही यहां अधिक चुनौतीपूर्ण होने वाला है।” यह लेखक का क़रीब दो दशक पहले का लेख है। कोई भी बता सकता है कि वहां ये परिस्थितियाँ रातों-रात नहीं हुईं, इसके बीज बहुत पहले ही पड़े हैं।

आज अपने पड़ोसी के क़दम पर चलते हुए हमारा देश इस दिशा में बहुत तेजी से बढ़ रहा है। वास्तव में किसी भी देश में धार्मिक कट्टरपंथी शासन अतार्किकता,ग़ैर वैज्ञानिक और पिछड़ी मूल्य-मान्यताओं के आधार पर जड़ें जमाता है,इसलिए शासन व्यवस्था में शासकों के निशाने पर वे संस्थाएं और व्यक्ति होते हैं, जो ग़ैर वैज्ञानिक और पिछड़ी मूल्य-मान्यताओं के ख़िलाफ़ वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार में लगे हैं,इस क्रम में नरेन्द्र दाभोलकर जैसे चिंतक विचारक की हत्या हो या फिर इतिहास कांग्रेस जैसी संस्थाओं को समाप्त करने का षड्यंत्र हो,वास्तव में ये कृत्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

(स्वदेश कुमार सिन्हा स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

हाशिए पर खड़े इस समाज की आवाज बनकर उनका साथ देने का न्यूज़ अटैक एक प्रयास है. उम्मीद है आप सभी का सहयोग मिलेगा.
न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack
आपके पास शोषित समाज के उत्पीड़न अथवा किसी विभाग में भ्रस्ट्राचार की जानकारी हो तो व्हाटसअप नं. 9454606598 पर भेजें।
न्यूज़ अटैक इंडिया News Attack India News Attack
Share This.

Related posts

Leave a Comment