लखनऊ.उत्तर प्रदेश की राजनीति में चल रही पिता -पुत्र ,चाचा -भतीजे की जंग ने अठारह घंटों के भीतर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यह सिद्ध कर दिया कि मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत के असली हकदार वही हैं. इन 18 घंटों के भीतर इस स्टोरी में विलेन बने शिवपाल यादव को भी इस बात का अच्छी तरह अहसास हो गया कि अंतत: नेताजी पर पिताजी ही हावी रहेंगे.
अखिलेश के निष्काषन व फिर से पार्टी में उनकी नाटकीय वापसी के बाद सपा के भीतर व बाहर यह विवाद भी खत्म हो जाना चाहिए कि विधानसभा चुनाव के दौरान सपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए किसे प्रोजेक्ट किया जाएगा?
अखिलेश यादव को सपा से छह साल के लिए निष्काषित करने की घोषणा करते समय सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने यह टिप्पणी की थी कि प्रो. रामगोपाल यादव अखिलेश के राजनीतिक भविष्य को बर्बाद कर रहे हैं.इस टिप्पणी से ही स्पष्ट था कि उन्होंने दुखी मन से निष्काषन का निर्णय लिया है. इसका अर्थ यह भी था कि वे पुत्र से सुलह की संभावना को खारिज नहीं करते हैं.
दूसरी तरफ निष्काषन के बाद अखिलेश यादव ने अपने समर्थकों को सख्त हिदायत दी थी कि वे पिता के खिलाफ एक शब्द भी न बोलें. अखिलेश ने अपने निष्काषन पर एक शब्द बोलना भी उचित नहीं समझा. राजनीतिक स्तर पर अखिलेश को पिता मुलायम से अनेक शिकायतें रही हैं, लेकिन पिता के तौर उन्होंने कभी किसी भी रूप में असम्मान प्रकट नहीं किया है.अखिलेश ने अंकल शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ अप्रत्यक्ष तौर पर कई बार सार्वजनिक टिप्पणियां की हैं, लेकिन पिता के प्रति हमेशा आदर का भाव प्रकट किया है. पिता मुलायम ने जरूर कई बार अखिलेश को सार्वजनिक तौर पर फटकार लगाई है, जिन पर अखिलेश की टिप्पणी होती थी कि पिता को फटकार लगाने का अधिकार है.
यह कहना सही नहीं होगा कि अखिलेश द्वारा शक्ति प्रदर्शन करने की वजह से मुलायम सिंह यादव ने पुत्र को क्षमादान दिया है. अखिलेश को मिला क्षमादान पिता-पुत्र के बीच रिश्ते का नतीजा है.सपा के 180 से अधिक विधायकों ने मुख्यमंत्री अखिलेश का समर्थन जरूर किया, लेकिन वे मुलायम सिंह यादव का विरोध नहीं कर रहे थे. उनकी आपत्ति केवल अमर सिंह व शिवपाल यादव की भूमिका को लेकर थी.सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपने लगभग 50 साल के राजनीतिक जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे हैं. अपने खून-पसीने से इस पार्टी को वर्तमान स्तर तक पहुंचाया है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में यदि आज समाज के वंचितों व पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों की चिंता को महत्व दिया जा रहा है तो उसमें मुलायम सिंह यादव के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.अपने साढ़े चार साल के शासन के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस राजनीतिक विरासत को एक नया आयाम दिया है. समाजवादी पार्टी का असर कुछ वर्गों तक सीमित था, उसे अखिलेश ने सर्वव्यापी बनाने की कोशिश की है.मुलायम सिंह यादव जब मुख्यमंत्री होते थे, तब विकास का मुद्दा प्राथमिकता सूची में निचले स्तर पर होता था, जिसे अखिलेश ने पहले नंबर पर रखकर हर वर्ग के युवा को सपा की तरफ आकर्षित किया है.
भाजपा व बसपा यह उम्मीद लगाए बैठी थी कि सपा में टूट होने का सीधा लाभ उन्हें मिलेगा, मुलायम सिंह यादव ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि सपा में अखिलेश यादव का नेतृत्व मजबूत होने से भाजपा व बसपा की मुश्किलें बढ़ेंगी. बसपा सुप्रीमो मायावती चाहती हैं कि कम से कम 70 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता उनकी झोली में आ जाएं.
अखिलेश के नेतृत्व पर सहमति होने के कारण मुस्लिम मतदाता सपा के साथ ही जुड़ते दिखाई देते हैं. भाजपा की यह आस भी पूरी होती नहीं दिखाई दे रही है कि असम की तरह उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम वोट विभाजित हो जाए.साभार फर्स्टपोस्ट