प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस श्रमेव जयते, दुर्घटना बीमा, सफाई अभियान जैसी योजनाओं को चलाकर देश की तस्वीर बदलने के दावे कर रहे हैं, उसका लाभ तो उनकी पार्टी की यूपी ईकाई तक को नहीं मिल पा रहा है, जनता तो खैर दूर की कौड़ी है। पार्टी का मातृत्व संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, जिस सादगी, समरसता का अरसे से वकालत करता रहा है, वही विचारधारा यूपी भाजपा कार्यालय में तार-तार हो रही है। भाजपा में जिस अन्त्योदय की वकालत की जाती है, पार्टी में वही आखिरी आदमी अब हाशिए पर फेंक दिया गया है। यूपी भाजपा में खुद विचारधारा की उल्टी गंगा बह रही है, लेकिन ताकत के आगे सब नतमस्क हैं।
भाजपा की विचारधारा ‘बंसल प्लाजा’ में पड़ी कराह रही है। संघ का दर्शन बैताल की तरह उल्टा लटका पड़ा है। अपने स्वार्थ के वशीभूत उत्तर प्रदेश के नेताओं में इतनी ताकत नहीं है कि वे पार्टी के भीतर हो रहे गलत के खिलाफ आवाज उठा सकें। विरोध कर सकें। दरअसल, पार्टी का चालक एक सड़क हादसे में मारा जाता है, लेकिन ना तो उसे श्रमेव जयते का लाभ मिल पाता है और ना ही दुर्घटना बीमा का। चालक पार्टी के काम के दौरान मरता है, लेकिन उसके जान की कीमत लगती है मात्र एक लाख रुपए?
बीजेपी, जिसे अब व्यंग्य से लोग भारतीय जुमला पार्टी के नाम से पुकारने लगे हैं, यूपी में वर्ष 2017 में सरकार बनाने के सपने में खोई हुई है। सत्ता वापसी को लेकर पार्टी में बदहवासी है। बेचैनी है। पर, बड़ा सवाल यह है कि सत्ता से बाहर रहने की क्या सचमुच इतनी बौखलाहट है कि सादगी, मानवता और संवेदना की बातें करने वाली पार्टी अपना असली चरित्र भूल चुकी है? राष्ट्रभक्ति, नैतिकता,संवेदना, अंत्योदय विचारधारा की राजनीति का दावा करने वाली भाजपा के लिए क्या खुद इन शब्दों के कोई मायने हैं? शायद नहीं।
वरना, क्या कारण थे कि यूपी भाजपा अपने कर्मचारियों के लिए इतनी निष्ठुर और बेमुरौव्वत बन जाती कि बीस साल तक पार्टी की सेवा करने वाला वाहन चालक ट्रामा सेंटर में जिंदगी-मौत के बीच झूलता रहा और अध्यक्ष एवं संगठन महामंत्री को एक पल की फुर्सत नहीं मिली कि उसकी आखिरी धड़कन ही सुन आते? उसकी बची-खुची सांसें ही गिन आते? उसके परिवार को ढांढस ही बंधा आते। उसके लिए ट्रामा में इलाज की बेहतर व्यवस्था ही करा देते। यह हादसा एक बानगी है कि देश भर को खुशहाल, समृद्ध बनाने का दावा करने वाली पार्टी के नेताओं के भीतर जब अपने ही पार्टी कर्मचारियों के लिए दिल में जगह नहीं है तो आम आदमी के लिए इनकी सोच कैसी होगी? इस घटना ने पार्टी के चरित्र को भी दांव पर लगा दिया है!
दरअसल, अब यही नई वाली भाजपा का असली चरित्र है। इसके नेता हिंदू बन गए। सवर्ण बन गए। पिछड़े बन गए। दलित भी बनने की राह पर हैं, लेकिन ये लोग शायद इंसान नहीं बन पाए। मानवता नहीं सीख पाए। इंसान बन पाए होते तो इतनी संवेदना तो कम से कम जिंदा होती ही कि एक चालक को लगातार काम करने को बाध्य नहीं करते। उसको मौत के मुंह में ढकेलने का जतन न करते!सूत्रों की माने तो पार्टी के गाड़ी चालक नाजिम की मौत के लिए जिम्मेदार वे नेता हैं, जिन्होंने लगातार उससे काम तो लिया, लेकिन उसे आराम करने, चैन से सोने का मौका नहीं दिया। मौका दिया भी तो बस उसे आखिरी नींद सो जाने का। दर्दनाक मौत मर जाने का।
नाजिम लगातार तीन दिन से भाजपा अध्यक्ष के काफिले की गाड़ी में उन नेताओं को ढो रहा था, जो संवेदना, नैतिकता, मानवता और अंत्योदय की बातें करते हैं, जो बराबरी का ढोंग भी कर लेते हैं, जो सादगी का ढिंढोरा भी पीट लेते हैं, लेकिन इंसानियत नहीं दिखा पाते। हादसे से पहले बस्ती जिले में जब अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का कारवां रूका तब सारे बड़े नेता एसी कमरों में सो गए, नाजिम समेत क्षेत्रीय टीम के चालकों मच्छरों के बीच गर्मी में सोने को छोड़ दिया गया। मच्छरों से जूझते नाजिम की नींद पूरी नहीं हो पाई,लेकिन चलने का फरमान जारी हो गया। नींद पूरी ना होने की कीमत नाजिम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, जिसके लिए वह कतई दोषी नहीं था।
घोर हिंदूवादी पार्टी, जिसके साए से भी मुसलमानों को डर लगता था, उस भारतीय जनता पार्टी में रायबरेली का एक मुसलमान 1996 में वाहन चालक की नौकरी करने आया। मात्र कुछ सौ रुपए की एवज में उसने अपनी जिंदगी के बेहद कीमती बीस साल भारतीय जनता पार्टी की सेवा में गुजार दिए, और अंतिम सांसें भी ली तो इसी पार्टी की सेवा में। दिन-रात लगातार चलने वाला यह कोई और नहीं बल्कि वह नाजिम था, जिसने भाजपा की सेवा में ही अपनी शहादत दे दी। कुर्बानी दे दी। बदले में क्या मिला? उसके शव पर दो-चार फूल, कुछ संवेदनाओं के घडियाली आंसू, ढेर सारा ढकोसला! और एक लाख रुपए का ठुल्लू। अब नाजिम के बच्चों का क्या होगा, इसकी जिम्मेदारी पार्टी की कतई नहीं है, क्यों कि वह तो यहां का बस कर्मचारी था, जिसे काम के बदले तनख्वाह मिलती थी। वह हिंदू भी नहीं है, और ब्राह्मण तो बिल्कुल नहीं। फिर, पार्टी उसकी जिम्मेदारी अपने कंधों पर क्यों ढोए, जिसे यह सब करने की कभी आदत ही नहीं रही है?
दरअसल, 8-9 मई की रात जब लखनऊ जिले के सफेदाबाद में नाजिम की गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ तो वह नींद के झोंके में था। हादसे के बाद नाजिम का पूरा चेहरा वाहन के स्टीयरिंग व्हील में फंस गया था। पुलिस ने किसी तरह स्टीयरिंग काटकर नाजिम को बाहर निकाला तथा राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया। इस दौरान लोहिया अस्पताल तक भाजपा अध्यक्ष केशव मौर्य भी आए, क्यों कि नाजिम मौर्य के काफिले के साथ ही वापस लौट रहा था। हालत गंभीर होने पर डाक्टरों ने नाजिम को ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया, लेकिन वहां भाजपा का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा। मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित, सह प्रभारी लक्ष्मण चौधरी समेत कुछ चालक एवं अन्य कर्मचारी ही ट्रामा सेंटर गए।
स्थिति यह रही कि नाजिम को इमरजेंसी वार्ड में बेड मिलना ही मुश्किल हो गया। गंभीर होने के बावजूद उसे जनरल वार्ड में रखा गया। किसी तरह बातचीत करके भारत दीक्षित ने नाजिम को इमरजेंसी वार्ड में बेड दिलावाया,तब उस का इलाज शुरू हो सका, लेकिन इस दौरान उसकी हालत काफी नाजुक हो चुकी थी। ट्रामा में भर्ती होने के बाद भाजपा के छोटे-मोटे नेता नाजिम को देखने वहां गए, लेकिन यूपी भाजपा की पूरे सिस्टम के कर्ताधर्ता बने पार्टी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य तथा संगठन महामंत्री सुनील बंसल नाजिम को देखने या उसके परिवार को ढांढस बंधाने ट्रामा नहीं पहुंचे। शायद इन दोनों की शान-ए-अजीम इस तरह के कार्यों की इजाजत नहीं दे रहा था। यह अलग बात थी कि इस दौरान दोनों नेता लखनऊ में ही मौजूद थे? एक कर्मचारी ने आरोप भी लगाया कि ट्रामा के डाक्टरों ने नाजिम के स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता ही नहीं दिखाई, अगर यह दोनों नेता ट्रामा सेंटर पहुंच जाते तो डाक्टरों पर बेहतर इलाज का दबाव बन जाता, और संभव था कि नाजिम आज हमारे बीच होता?
पूरे देश की आर्थिक तकदीर, तस्वीर बदल देने का दावा करने वाली भाजपा की यूपी इकाई लंबे समय तक पार्टी के वाहन चालकों को तीन हजार से पांच हजार रुपए के बीच वेतन देती रही, लेकिन जब डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी अध्यक्ष बने तो लगभग सभी वाहन चालकों की सैलरी दस हजार से ऊपर कर दी गई, लेकिन वाहन चालकों को पार्टी के किचेन से खाना कभी अलाऊ नहीं किया गया। वाहन चालक चाहे, जितने बजे रात को पार्टी नेताओं को लेकर वापस लौटें, खाना उन्हें खुद बनाकर या खरीदकर ही खाना था। कभी कभार चाय जरूर मिल जाती थी, लेकिन अब तो भाजपा के किचेन में वाहन चालकों के लिए चाय भी दूर की कौड़ी हो चुकी है। पार्टी सूत्रों की माने तो चालकों समेत पार्टी के अन्य कर्मचारियों के साथ इसी तरह का व्यवहार अब पार्टी में आम बात हो चुकी है। यूपी भाजपा का हाईटेक कार्यालय, जिसे अब लोग ‘बंसल प्लाजा’ के नाम से भी पुकारने लगे हैं, की पूरी रवायत ही बदल चुकी है। बसंल की हुकूमत के साथ ही अब यहां कहानी नए सिरे से लिखी जाने लगी है। यह कार्यालय बंसल के प्राइवेट प्रॉपर्टी जैसा बनता जा रहा है।
कार्यालय में कारपोरेटी कल्चर हावी हो चुका है। जिस भाजपा कार्यालय में किसी दौर में अध्यक्ष, संगठन मंत्री से लगायत भाजपा के बड़े नेता तक के लिए एक ही सामूहिक किचेन हुआ करता था, जहां अटलजी भी इसी एक किचेन में बना भोजन खाते थे, अब वहां दो किचेन बन चुके हैं। एक प्रजा के लिए, दूसरा महाराजा के लिए? सुनील बंसल के पहले संगठन मंत्री रहे राकेश जैन ‘प्रजा वाले’ सामूहिक किचेन में बना भोजन किया करते थे, लेकिन अब तस्वीर दूसरी है। समानता, समरूपता, सादगी भरे जीवनचर्या की बात करने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से आए सुनील बंसल को यह बातें सुहाती नहीं हैं। बंसल की खुद की विचारधारा आरएसएस के इन ढकोसलों में विश्वास नहीं रखती, तभी तो संघ की सादगी वाली सोच को दरकिनार करके विलासितापूर्ण जीवन जीना उन्हें पसंद आता है। पार्टी के पैसों से सैकड़ों रुपए देकर अपनी दो जोड़ी कपड़े धुलवाने वाले बंसल ने अपने लिए अलग किचेन बनवा लिया है। राजा-महाराजाओं की तरह अलग फीलिंग्स महसूस कराने के लिए इस किचेन में दो खानसामे भी रखे गए हैं, जो उनके तथा उनके अतिथियों के लिए स्पेशल भोजन तैयार करते हैं।
भाजपा का एक कर्मचारी कहता है, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजदूरों, कर्मचारियों के लिए श्रमेव जयते योजना लागू करते हैं, लेकिन यूपी भाजपा कार्यालय में ही इसका पालन नहीं होता है। यहां मोदी की सुनने वाला कोई नहीं है। सब अपने मन के मालिक हैं।’ विडंबना यह है कि नरेंद्र मोदी देश भर में स्वच्छता अभियान हांके पड़े हैं, खुद उनके पार्टी के उत्तर प्रदेश कार्यालय में कर्मचारियों के घरों के पास की नालियां बजबजा रही हैं। कर्मचारियों का रहना मुश्किल है, लेकिन उनका सुनने वाला कोई नहीं है। खबर तो यह भी है कि पार्टी ने केंद्र सरकार संचालित दुर्घटना बीमा से कर्मचारियों को महरूम कर रखा है। सड़क हादसे के शिकार हुए नाजिम का भी दुर्घटना बीमा नहीं हुआ था। हालांकि, भाजपा के प्रदेश कार्यालय प्रभारी भारत दीक्षित इससे इनकार करते हैं। वे कहते हैं, ‘पार्टी ने सभी कर्मचारियों का दुर्घटना बीमा करा रखा है।’
गौरतलब है कि अच्छे दिन आने का सपने दिखाकर केंद्रीय सत्ता में पहुंची भाजपा में 26 मई 2014 के बाद से ही यूपी कार्यालय के कर्मचारियों के बुरे दिन शुरू हो गए थे। केंद्र में सरकार बनने के बाद कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाए जाने के सपने दिखाए गए थे, लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलट। यूपी भाजपा ने धोखेबाजी वाला अपना चरित्र दिखाते हुए आधा दर्जन कर्मचारियों की छंटनी कर दी। खासकर उन कर्मचारियों की, जिन्होंने अपने जीवन का कीमती समय कुछ हजार रुपए के लिए पार्टी को दे दी थी, इस उम्मीद में कि भविष्य में उनको कहीं समायोजित कर दिया जाएगा। कर्मचारियों के हटाए जाने के आरोप की उंगली भी सुनील बंसल पर उठी थी। सवाल यही है कि जो पार्टी अपने ही कर्मचारियों का अच्छा दिन नहीं ला सकी, वो जनता के बारे में कितनी गंभीर होगी?