लखनऊ. “जबरा मारे और रोने भी न दे” यह कहावत भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर बिल्कुपल सटीक बैठ रही है. उत्तर प्रदेश के नीति निर्धारक आरोपों पर कार्रवाही करने की बजाय कार्यकर्ताओं को ही धौंस देने लग गए हैं. प्रत्याशी चयन में जिम्मेदार लोगों पर धन उगाही जैसे गंभीर आरोपों पर चुप्पी साध लेने वाला नेतृत्वन अब मौका पाते ही अनुशासन की आड़ में बदले की कार्रवाई की की रूपरेखा तैयार कर लिया है. पार्टी नेतृत्वत को आईना दिखाने वालों को अनुशासन की लाठी से किनारे लगाया जाएगा.
पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने मीडिया के माध्यम से सन्देश भेजा है कि चुनाव में भितरघात करने और चुप्पी साधने वाले कार्यकर्ताओं पर उनकी नजर है. माना जा रहा है कि माथुर ने कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देकर आक्रोश का तापमान मापने की कोशिश की है.,साथ ही तमाम धांधली के आरोपों को दरकिनार कर चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में न निकलने वालों की लिस्ट बनाने की बात करके उपेक्षित किये गए कार्यकर्ताओं को दबाव में लेने की रणनीति बनाई है. यदि ऐसा होता है तो नेताओं के अहंकारी रवैये से यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा को लेने को देने पड़ सकते हैं.
चुनावी रणनीति में पार्टी के महाबली बन कर उभरे प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल द्धारा सार्वजानिक तौर से रूठों को समझाने का अब तक कोई बयान नहीं आना या सकारात्महक प्रयास का प्रचार करती भी पार्टी नहीं दिख पा रही है.भाजपा मामलों के जानकर वरिष्ठ पत्रकार आरपी सिंह के अनुसार भाजपा नेतृत्व समायोजन का लालच देकर या हंटर दिखा कर यूपी के कार्यकर्ताओं को सक्रिय नहीं कर पायेगा. टिकट वितरण के समय कार्यकर्ताओं को अकड़ दिखाने वाले नेता यदि समय रहते आहत नेताओं से याचक बन कर संपर्क करेंगे तभी पार्टी की स्थिति में गुणात्मक सुधार होगा नहीं तो फिर सरकार ढूंढते रह जायेंगे.