बसपा की बढ़त से भाजपा में खलबली ,अमित शाह को देनी पड़ी सफाई - न्यूज़ अटैक इंडिया
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बसपा की बढ़त से भाजपा में खलबली ,अमित शाह को देनी पड़ी सफाई

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उत्तर प्रदेश की कुर्सी की उठापटक में फिर एक नया मोड़ आ गया पहले चरण का मतदान सम्पन्न हुआ दूसरी ओर सभी चैनल के एग्ज़िट पोल में बसपा की बढ़त दिखने लगी, राजनीति की दिशा-दशा बदलती इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अमित शाह के गले में ऐसी घंटी बाँध दी कि आनन-फ़ानन में उन्हें यूपी के केंद्रीय कार्यालय लखनऊ पहुँचकर एक प्रेस वार्ता आयोजित कर के सफ़ाई देनी पड़ी कि पहले चरण की 70 सीटों में से बसपा 50 नहीं बल्कि भाजपा 50 से भी अधिक सीटें जीत रहीं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आजकल नेता की बात पर जनता को कितना विश्वास है ? आख़िर हो चुके मतदान का प्रचार-प्रसार इतना प्रासंगिक क्यूँ ? और कुछ ही पलों बाद बदले में माया का भी काउंटर अटैक आया जिसमें कहा गया कि “अमित शाह भाजपा की नहीं बसपा की की सीटें गिन के बता रहे” … शाह पर माया की इतनी शीघ्र टिप्पणी क्यूँ ?? आख़िर जब चुनाव पूरे उत्तर प्रदेश में है तो पहले चरण के हो चुके मतदान पर इतनी सियासत क्यूँ ?? क्यूँ अमित शाह नहीं चाहते कि माया की बढ़त यूपी की जनता में प्रसारित हो ?? क्यूँ माया अपनी बढ़त को पुख़्ता करना चाहतीं हैं ?? क्या पशिचिमी यूपी में माया सच में बढ़त में हैं ?? क्या ये चैनलों द्वारा प्रायोजित बढ़त है ?? ऐसे तमाम सवाल हैं जो जनता के लिए पहेली बनें हुए हैं अगर सभी सवालों के समीकरणों पर प्रकाश डाला जाए तो ध्यान देनें वाली बात यह है की असल में पहले चरण में जिस क्षेत्र की 70 सीटों पर मतदान हुआ है उसमें अधिकतर सीटों पर बसपा का गढ़ रहा है. जिसमें दलित,जाटव एवं कुछ प्रतिशत मुस्लिम वोटों का सीधा योगदान रहा है .
जिसको लखनऊ में प्रेस वार्ता के दौरान अमित शाह ने ख़ुद ही स्वीकारा और आगे के क्रम में यदि बसपा की बढ़त पहले चरण में साबित हो जाती है तो सपा का निर्णायक पारम्परिक मुस्लिम वोट जो अभी सपा-बसपा में 70:30 के अनुपात में बटा हुआ है वो पूरी तरह से लगभग 90 % प्रतिशत बसपा में खिसक जाएगा क्योकि बसपा की शुरुआती बढ़त साबित होते ही मुस्लिम ये मान लेगा की भाजपा को हराने के लिए बसपा ही एक विकल्प है.मुस्लिम वोटर समय और हवा का रूख भाँप कर पाला बदलने में माहिर है. इसका सीधा अर्थ ये हुआ कि सपा पूरी तरह से लड़ायी से बाहर हो जाएगी और क्रमश: दूसरे चरण में भी बसपा बढ़त में आ जाएगी और अगर फिर से चैनलों के साथ प्रिंट मीडिया का भी रूख बसपा की तरफ़ रहा क्यूँकि प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता जनमानस में अधिक मानी जाती है . तो यक़ीन मानिए इस बार मीडिया ही माया की सरकार बनवाने का पूरा काम करेगी क्यूँकि बसपा ने इस बार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए अपने प्रचार के मानक बदलें हैं जिसके चलते चनालों का भरपूर लाभ हुआ है . दोनों चरणों की बढ़त साबित होते ही हवा बनने-बनाने के आंशिक प्रयास भी माया को सातों चरण में बढ़त दिलाएँगे और राजनीति की पुरोधा बनकर माया फिर से उभर सकती हैं. इसीलिए गणित की भूमिका की समझ रखने के चलते शाह भी लखनऊ आकर पहले चरण की 70 में 50 से भी अधिक सीटें जीतने का दावा ठोंक कर गाएँ हैं.अब देखना यह होगा कि क्या माया मुस्लिम वोटरों के मन में विस्वास जगा पायीं या शाह अपनी सफ़ाई देनें में कामयाब साबित हुए इसका फ़ैसला तो 11 मार्च को ही होगा लेकिन सत्ता के वर्तमान दावेदार अखिलेश पिछड़ते नज़र ज़रूर आ रहें अखिलेश के चाचा शिवपाल भी अपने क्षेत्र से लेकर कई क्षेत्रों में अखिलेश-सपा+कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ अपने समर्थित प्रत्याशी लोकदल से लड़वा रहें हैं. जिसके चलते अखिलेश कई जीतती हुई सीटें हार रहें है इतना ही नहीं जिन प्रत्याशियों को शिवपाल चुनाव मैदान में भेज रहे उन्हें मुलायम से विजय का आशीष भी दिलवा रहे .”आख़िर अखिलेश के चचा हैं शिवपाल” तभी तो इतनी आसानी से अखिलेश की नय्या डुबाते नज़र आने लगे हैं और अपनी राजनैतिक हार का बदला लेने में काफ़ी हद तक सफल होने लगें हैं , यहाँ तक शिवपाल आंतरिक रूप से बसपा के समर्थन की भी तय्यारी में हैं जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि जो समीकरण ऊपर बनते नज़र आ रहे यदि माया-शिवपाल इन्हीं समीकरणों को आगे भी क्रमशः बनाने में सफल हुए तो लड़ाई भाजपा-सपा ना होकर बसपा-भाजपा हो जाएगी.

अभ्युदय अवस्थी
(लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार )



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