मनोज श्रीवास्तव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के तीन चरण बीत चुके हैं। सभी पार्टियां यूपी में पूर्ण बहुमत मिलने का दावा करते हुए एक दूसरे पर तीखा हमला कर रही हैं। इस चुनावी युद्ध में कोई किसी से पीछे नहीं दिखना चाहता। एक दूसरे को लेकर नए-नए मुहावरे गढ़े जा रहे हैं। कोई स्कैम का फुल फार्म बता रहा है तो कोई बीजेपी, बीएसपी और एसपी का। जैसे-जैसे यूपी का चुनावी रण आखिरी दौर में पहुंचता जा रहा है, आरोप-प्रत्यारोप का दौर उतना ही व्यक्तिगत और निम्नतम स्तर का होता जा रहा है। भाषाई मर्यादा की सीमाएं भी टूट रही हैं।
सभी पार्टियां खुद को उत्तर प्रदेश की आवाम का सबसे बड़ा हमदर्द बताने पर तुली हुई हैं, गोया जनता का दुख-दर्द इनकी सरकार बनते ही खत्म हो जाएगा। अब नया बखेड़ा उत्तर प्रदेश का बेटा बनने को आतुर नेताओं के बयानों से खड़ा हो गया है। अखिलेश और राहुल ने जब खुद को यूपी का बेटा तथा मोदी को बाहरी बताकर प्रचार शुरू किया तो मोदी भी कहां पीछे रहने वाले थे। तीसरे चरण से पहले ही उन्होंने खुद को उत्तर प्रदेश का गोद लिया बेटा बताकर यूपी के दोनों बेटों की बराबरी पर पहुंच गए। वैसे, यह दूसरी बात है कि यूपी को बरबाद करने में उनके बेटे-बेटियों ने ही सबसे ज्यादा योगदान दिया है।
गंगा मइया के बुलावे के बाद से ही बनारस परेशान है। अब जब यूपी ने गोद ले लिया तो दूसरे राजनीतिक दल परेशान हो उठे। दोनों बेटे परेशान हो उठे। यूपी का बड़ा बेटा तो चुनावी दौर में राज्य में आता है। छोटा बेटा विकास कराया था, लेकिन गोद लिए बेटे की बात सुनने के बाद प्रदेश में भाषण की शैली ही बदल गई। विकास के दावे पीछे छूट गए। अब स्थिति यह है कि यहां-वहां, जहां-तहां से सब कोई खुद को केवल यूपी का बेटा साबित करने पर तुला हुआ है। कोई खुद को यूपी का बहु साबित कर रहा है तो कोई बेटी बता रहा है। यूपी की जनता परेशान है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान से एक तरफ कुछ लोगों में खलबली है तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों के लिए यह सुखद अनुभूति साबित हो रही है। भाजपा ने दूसरे दलों से आने वाले जिन पुत्र-पुत्रियों को गोद लिया है, और टिकट भी दे दिया है, वे सुखद अनुभूति कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि वह भाजपा में गोद लिए जाने के लिए ही राजनीति में अवतरित हुए थे। भाजपा ने गोद लेकर अपने पर बहुत बड़ा एहसान किया है। दूसरी तरह भाजपा के अपने बच्चे सड़क पर धूल फांक रहे हैं। कई बच्चे नाराज भी हैं, लेकिन भाजपा को विश्वास है कि उनके गोद लिए गए बच्चे मोदीजी की तरह सभी बच्चों पर भारी पड़ेंगे।
भाजपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य तथा इनके पुत्र उत्कर्ष मौर्य, रीता बहुगुणा जोशी, रजनी तिवारी, बृजेश पाठक, धर्म सिंह सैनी, राजेश त्रिपाठी, ठा. दलबीर सिंह, नंद गोपाल नंदी, कुलदीप सेंगर, फतेह बहादुर सिंह, रोमी साहनी, बाला प्रसाद अवस्थी, संजय जायसवाल, माधुरी वर्मा, महावीर सिंह राणा, पूरन प्रकाश, श्याम प्रकाश, रोशन लाल वर्मा, शारदा प्रसाद, सत्यवीर, अनिल मौर्य, ओम कुमार, दीनानाथ भास्कर, ओमवती, मयंकेश्वर सिंह, हरगोविंद सिंह, ममतेश शाक्य, डा. मुकेश वर्मा, अजय सिंह और अरविंद गिरि जैसे कई बड़े नेताओं को भाजपा ने गोद भी लिया है और चुनावी समर में भी उतारा है।
लम्बे अर्से से यूपी की सत्ता से दूर रही भाजपा को बहुमत दिलाने और खुद को जिताने के लिए गोद लिए सभी बेटे जी जान से जुटे हुए हैं। दोहरे दबाव के बीच भाजपा के गोद लिए बेटों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। अब परिणाम बताएंगे कि गोद लेने की परम्परा वाली संजीवनी कितनों को जीवनदान देगी और यूपी अपने गोद लिए बेटे की बात पर कितना भरोसा करेगी, लेकिन जो मूल रूप से भाजपाई रहे हैं उनका भविष्य अब अंधकारमय हो गया है। उन पर गोद लिए पुत्र सभी जगह भारी पड़ गए हैं, अब ऐसे कार्यकर्ता अपने कर्तव्यों और अधिकारों के बीच सामंजस्य बैठाने में परेशान हैं।