लखनऊ .उत्तर प्रदेश की सत्ता में भाजपा का 15 साल पुराना वनवास खत्म हो गया है. भाजपा को एतिहासिक जीत मिली है. अब मंथन हो रहा है कि भाजपा का संभावित मुख्यमंत्री कौन होगा ?
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुताबिक रविवार को मुख्यमंत्री के नाम का पर्दा उठ जाएगा . रविवार शाम भाजपा मुख्यालय पर पार्टी कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करेंगे. इसके बाद भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक होगी.संसदीय बोर्ड की बैठक में मुख्यमंत्री के नाम पर विचार किया जायेगा और जो सबसे योग्य उम्मीदवार होगा, उसे ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.
भाजपा को यह याद रखना होगा कि कल्याण सिंह के उत्कर्ष के दौरान जो गैर-यादव ओबीसी तबका भाजपा के साथ खड़ा दिखता था. वही मतदाता इस बार पार्टी के साथ खड़ा दिखा.सूबे में भाजपा को भारी जनसमर्थन ओबीसी जातियों की वजह से मिला है तो इस समुदाय से किसी नेता को नेतृत्व का मौका दिया जाना चाहिए.
कौन है मुख्यमंत्री की दौड़ में ………….
संतोष गंगवार
भाजपा के कद्दावर नेता केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार जो वित्त-राज्यमंत्री का जिम्मा संभाल रहे हैं. वो भी मुख्यमंत्री की रेस में प्रवल दावेदार हैं.2014 के लोकसभा चुनाव में 16 वीं लोकसभा के लिए बतौर सांसद उन्होंने चुनाव जीता और अपने सियासी विरोधी को 2.4 लाख मतों से चुनाव में शिकस्त दी थी ..
जहां तक बात प्रशासकीय अनुभव की है तो संतोष गंगवार को इसकी कमी नहीं है. वित्त-राज्यमंत्री बनने से पहले गंगवार पेट्रोलियम और नेचुरल गैस राज्यमंत्री थे.जबकि इसके साथ ही उन्हें संसदीय कार्य की भी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई थी.
वर्ष 1999 में वो साइंस एंड टेक्नोलॉजी राज्यमंत्री भी रह चुके हैं. 1989 के बाद से ही गंगवार भाजपा के स्टेट वर्किंग कमेटी के सदस्य भी हैं.संतोष गंगवार की स्वजातीय मतों में बेहद घुसपैठ है .
स्वतंत्रदेव सिंह
बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले जमीनी नेता, साफ छवि के कुशल वक्ता तथा मंच संचालक, प्रदेश के संगठन पर मजबूत पकड़ व उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलीयो की सफलता का दायित्व निभाने वाले प्रदेश में भाजपा के सदस्यता अभियान के प्रभारी रहे प्रदेश महामंत्री स्वतंत्रदेव सिंह.का नाम भी चर्चा में है.
उत्तर प्रदेश में भाजपा की हर रैली, धरना-प्रदर्शन एवं चुनावी रणनीति के प्रमुख कर्ता-धर्ता होने के कारण उनका समर्पण उन्हें पर्दे के पीछे से लाकर लोगों के सामने मुखर कर रहा है. अमूमन कैमरों की चकाचौंध और दिखावे से दूर रहने वाले स्वतंत्रदेव सिंह कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ वाले संगठनकर्ता माने जाते हैं. अपनी इसी संगठन क्षमता की बजह से लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तकरीबन सभी रैलियों के प्रभारी के रूप में आपने एक अलग पहचान बनाई है.
पढने के दौरान से संघ से जुड़े स्वतंत्र देव की रुचि हमेशा संगठन के प्रति ही रही. प्रदेश में लगातार महामंत्री और उपाध्यक्ष रहने के बाद भी आपने सिर्फ एक बार विधानसभा का चुनाव लड़ा.पद की लालसा से दूर स्वतंत्र पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे है .
राजनाथ सिंह
उत्तर प्रदेश के संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर ज्यादातर लोग केंद्रीय गृहमंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह के नाम पर शर्त लगाने को तैयार होंगे.राजनाथ सिंह सूबे में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता हैं. उन्होंने मार्च 2002 में मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था. इसके बाद उन्होंने अपना कदम राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ाया.
वो पहले केंद्रीय मंत्री बने फिर दो बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. बतौर स्टार प्रचारक राजनाथ सिंह विधानसभा चुनावों के दौरान 26 दिनों तक सूबे में जमे रहे. इस दौरान उन्होंने 120 जनसभाओं को संबोधित किया.
चुनाव प्रचार के दौरान राजनाथ सिंह ने 20 हजार किलोमीटर की यात्रा भी की. उनके बारे में कहा जाता है कि वो संगठन के काफी अनुशासित सिपाही हैं, जो हमेशा से पार्टी के फैसलों के साथ आगे बढ़ने के लिए जाने जाते हैं.
फिजिक्स (भौतिकी) में उन्हें मास्टर की डिग्री हासिल है. जबकि 1964 से वो आरएसएस से जुड़े हुए हैं और यही बात उन्हें एक ऐसा सियासी चेहरा बनाती है जो जमीनी स्तर पर लोगों से मजबूती जुड़े हुए हैं.
मनोज सिन्हा
मुख्यमंत्री की रेस में राजनाथ सिंह के बाद जिस दूसरे केंद्रीय मंत्री का नाम आता है वो दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा हैं.
आईआईटी बीएचयू से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने वाले मनोज सिन्हा ने अपने काम से बतौर संगठनात्मक रणनीतिज्ञ का दर्जा हासिल किया है.
इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भरोसा भी जीता है. सभी इस बात को जानते हैं कि उन्हें यूपी की हर एक विधानसभा सीट की जानकारी है.
इतना ही नहीं वो प्रधानमंत्री की हाई प्रोफाइल सीट वाराणसी का जिम्मा भी संभाले हुए हैं. वो एक मजबूत पार्टी कार्यकर्ता हैं जो हमेशा लो-प्रोफाइल में रहना पसंद करते हैं.
सिन्हा के साथ बस एक ही कमी है वो है उनकी जाति. वो भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं और पूर्वी यूपी के कुछ जिलों तक ही भूमिहारों की संख्या सीमित है.लेकिन यही कमी उनके लिए वरदान भी साबित हो सकती है क्योंकि अगर वो मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभालते हैं तो उनकी छवि जाति को लेकर पक्षपात नहीं करने वाले नेता की बनेगी.
केशव प्रसाद मौर्य
मुख्यमंत्री की रेस में फुलपुर से पहली बार चुने गए सांसद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का भी नाम शामिल है.
केशव प्रसाद मौर्य ने राजनाथ सिंह और मनोज सिन्हा के मुकाबले कम जनसभाओं को संबोधित किया है, क्योंकि वो पर्दे के पीछे रहकर संगठनात्मक जिम्मेदारियों को निभाने में लगे थे
हालांकि, केशव प्रसाद मौर्य के लिए जो सबसे कमजोर कड़ी है वो ये कि उन्हें थोड़ा भी प्रशासकीय अनुभव नहीं है. ऐसे में यूपी जैसे बड़े राज्य को संभालना काफी मुश्किल भी साबित हो सकता है.
योगी आदित्यनाथ
पार्टी के फायर ब्रांड नेताओं में से एक योगी आदित्यनाथ का नाम पूर्वांचल की राजनीति में अहम माना जाता है. उनकी इस छवि का इस्तेमाल पार्टी ने इस बार के चुनावों में भी जमकर किया.
पश्चिम उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक स्टार प्रचारक की हैसियत से आदित्यनाथ की ताबड़तोड़ सभाएं इसका गवाह हैं. संघ में भी उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है लेकिन पार्टी संगठन में योगी के लिए काफी चुनौतियां भी हैं.
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