लखनऊ। संख्या बल में ठीकठाक स्थिति होने के बावजूद जालौन जिले में 1967 के बाद से कुर्मी(निरंजन) समाज का कोई भी प्रत्याशी विधानसभा नहीं पहुंच पाया था। इन 50 सालों के लंबे अंतराल पर विधानपरिषद के सदस्य तो कुर्मी समाज से तीन हुए लेकिन माधौगढ़ क्षेत्र से विधानसभा पहुंचकर समाज को गौरवान्वित होने का मौका दिया मूलचन्द्र निरंजन ने।
1967 के बाद सुरक्षित हो गई थी कोंच विधानसभा-
1952 और 1957 में बाबू चित्तर सिंह निरंजन कोंच क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के विधायक चुने गए। इसके बाद इसके बाद 1962 में बाबू विजय सिंह निरंजन से पराजित हो गए। 1967 तक बाबू विजय सिंह के विधायक रहने के बाद कोंच विधानसभा सुरक्षित हो गई। इसके बाद यह क्षेत्र सुरक्षित होने पर वहां से किसी प्रभावशाली कुर्मी नेता के लिए अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची। इसी कारण कुर्मी समाज के लोगों का मानना है कि कोंच सीट को उनके साथ साजिश के तहत सुरक्षित कराया गया था।
2012 मे कोंच विधानसभा समाप्त होने से कुर्मी वोट बिखर गए-
2012 में परिसीमन के बाद कोंच विधानसभा का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। उरई सुरक्षित और माधौगढ़ विधान सभा क्षेत्र के बीच इस कोंच विधानसभा के कुर्मी समाज का बंटवारा इस तरह हुआ है कि सिर्फ समाज के वोटों के आधार पर मजबूत दावेदारी पेश ही ना की जा सके। कालपी में कुर्मी बिरादरी के नेता को प्रत्याशी बनाया भी है तो विडंबना यह है कि उक्त क्षेत्र में कुर्मियों की संख्या नगण्य है।
उरई विधानसभा से ताल ठोकते रहे सुरेश निरंजन भईया जी –
जिले में कुर्मी बिरादरी में लंबे समय तक सर्वमान्य नेता के तौर पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भैया जी को नेता माना गया। लेकिन उरई विधानसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव लड़ने के बाद बहुत कम अंतरों से उन्हें किसी ना किसी बजह से हर बार हार का सामना करना पड़ा। 2007 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति में वे भाजपा के दिग्गज नेता बाबूराम दादा का टिकट कटवा कर एनडीए के प्रत्याशी बन गए लेकिन बदकिस्मती से उन्हें इस चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा। समाज पर उनकी पकड़ का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि 1993 में जब सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार अकबर अली के साथ मुस्लिम व अधिकांश पिछड़ी जाति के वोट चले गए थे और सामान्य जातियां बाबूराम दादा और विनोद चतुर्वेदी के साथ चले गए थे इसके बाद भी कुर्मी समर्थन की बदौलत सुरेश निरंजन भैया जी 25 हजार से ज्यादा मत पा गए थे।
स्वच्छ और बेदाग छवि का फायदा मिला मूलचन्द्र जी को-
1978 से संघ के स्वयंसेवक के रूप मे सक्रिय, शालीन स्वभाव के, पेशे से शिक्षक मूलचंद्र निरंजन को साफ और स्वच्छ छवि का फायदा मिला है। उनको मिले मतों से इतना तो साफ है कि उन्हे समाज के हर वर्ग ने वोट देकर ऐतिहासिक विजय दिलाने मे अपना योगदान दिया है। 2014 मे जालौन-गरौठा भोगनीपुर संसदीय क्षेत्र के संयोजक होने और उसमे सफलता मिलने का भी फायदा आपको मिला।
जो भी चुनाव लड़े सफलता मिली है –(एक राजनीतिक सफरनामा)
- 1986- उरई के प्रतिष्ठित डीवीसी डिग्री कॉलेज छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीता।
- 1995- खकसीस क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य ।
- 2000 जिला सहकारी बैंक संचालक का चुनाव जीता ।
- 2005 पहाड़गांव क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य ।
- 2003-07 भाजपा जनपद जालौन के जिलाध्यक्ष
- 2008-10 कानपुर क्षेत्र समिति के सदस्य
- 2013-14- झांसी जिला प्रभारी की जिम्मेदारी
- 2014- जालौन-गरौठा-भोगनीपुर संसदीय क्षेत्र के संयोजक
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