अखिलेश यादव के कार्यकाल में शायद ही ऐसा कोई विभाग रहा हो, जहां लूट न मची हो। पूरे पांच साल का दौर लूटकाल के दौर के रूप में कुख्यात रहा। मायावती के शासन काल से भी ज्यादा लूट को अखिलेशराज में अंजाम दिया गया। अखिलेश के शासन में भी वही अधिकारी प्राइम पोस्टिंग पर रहे, जिन्होंने मायावती शासन में ऐसे कामों को अंजाम दिया। सूचना विभाग में तो पूरे पांच साल भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती रही और तमाम लोगों ने इसमें डूबकी लगाई। एक उपनिदेशक ने सूचना निदेशक को सुपरसीड कर सारे नियम-कानूनों को दरकिनार कर अपने स्तर से तमाम प्रकाशन करवाए। निदेशक ने जांच कराने के बाद प्रमुख सचिव सूचना को इसके निलंबन के लिए पत्र लिखा, लेकिन जब निलंबन करने वाले का ही शह मिला हो तो भला कार्रवाई कैसे संभव थी?
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार के कामों का प्रचार-प्रसार करने के लिए बनाया गया सूचना विभाग पिछले पांच साल तक जबर्दस्त की आकंठ में डूबा रहा। अखिलेश यादव के शासनकाल में जितनी लूट इस विभाग में मची, उतनी लूट शायद ही किसी और मुख्यमंत्री के शासनकाल में मची हो। लूट का आलम यह रहा कि सूचना विभाग का सौ करोड़ से कम का सालाना बजट बढ़ाकर लगभग 600 करोड़ सालाना कर दिया गया। इस विभाग में कई अधिकारी तो ऐसे रहे कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सुपरसीड कर मनमाने ढंग से अपनी मर्जी से आदेश जारी किए।
शिकायत होने के बाद भी ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि ऐसे लोगों पर विभाग के प्रमुख सचिव का हाथ था, जो खुद ही कई भ्रष्टाचार के आरोप से घिरा हुआ था। कार्रवाई ना होने के चलते कर्मचारियों का मनोबल इतना बढ़ गया कि हर काम में कमीशन उगाहने लगे। इसका एक उदाहरण है उप निदेशक सैय्यद अमजद हुसैन। इसने सूचना निदेशक के नाम से आए पत्र को उनके संज्ञान में लाए बिना लाखों के छपाई का आदेश अपने स्तर से दे डाला, जबकि वह इसके लिए सक्षम प्राधिकारी भी नहीं था।
जब इस मामले का खुलासा हुआ तो सूचना निदेशक ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर सैय्यद अमजद हुसैन को निलंबित करने का आग्रह किया, लेकिन प्रमुख सचिव ने अपने इस चहेते अधिकारी का बाल भी बांका नहीं होने दिया, बल्कि निदेशक को ही विभाग से तबादला हो गया। इसके पहले भी इस अधिकारी के खिलाफ राज्यपाल के आदेश पर भर्त्सनात्मक प्रवृष्टि भी दी जा चुकी थी, इसके बावजूद यह समाजवादी पार्टी के शासन काल में प्रमुख जिम्मेदारी संभाल रहा था।
मामला यह है कि समाजवादी पार्टी के सरकार में पंचायती राज विभाग के राज्यमंत्री कमाल अख्तर ने 8 अप्रैल 2015 को सूचना निदेशक आशुतोष निरंजन को पत्र भेजकर यह जानकारी मांगी गई थी कि सूचना विभाग में प्रिंटिंग कार्य हेतु क्या कोई दर सूची अनुमोदित है? यदि हां तो यह क्या अन्य विभागों में बतौर मानक के तहत प्रयोग में लाई जा सकती है? एवं इन दरों पर अन्य विभाग भी प्रिंटिंग का कार्य करा सकते हैं? पर आश्चर्य की यह पत्र सूचना निदेशक तक पहुंचा ही नहीं।
उप निदेशक अमजद हुसैन ने सूचना निदेशक के संज्ञान में लाए बिना ही अपने स्तर से ब्रोशर छपवा कर बिल भेज दिया। वह भी बिना किसी नियम और शासनादेश के। बिल भेजे जाने के बाद राज्य मंत्री कमला अख्तर ने अप्रसन्नता व्यक्त की। जब इसकी जानकारी निदेशक आशुतोष निरंजन को मिली तो उन्होंने अपर निदेशक की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित कर जांच आख्या मांगी। पूरे मामले की जांच के बाद अमजद हुसैन से स्पष्टीकरण मांगा, जिस पर श्री हुसैन ने 15 अक्टूबर 2015 को अपनी आख्या दी। जांच समिति ने बताया कि अमजद हुसैन उपनिदेशक प्रकाशन प्रभाग ने प्रिंटर्स के साथ दुरभिसंधि कर उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया है।
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में छह बिंदुओं का उल्लेख किया। समिति ने लिखा कि शासकीय कार्य प्रणाली की यह सामान्य प्रक्रिया है कि अन्य विभागों के पत्र जो विभागाध्यक्षों या कार्यालयाध्यक्षों को प्रेषित किए जाते हैं, वह सर्वप्रथम विभागाध्यक्षों के समक्ष ही प्रस्तुत किए जाते हैं, जिस पर यथोचित निर्देश या मार्किंग के उपरांत विभिन्न स्तरों के माध्यम से संबंधित प्रभाग को उपलब्ध कराया जाता है। उक्त पत्र पर प्राप्ति संख्या आदि अंकित कर प्रभाग के संबंधित सहायक द्वारा संगत पत्रावलली पर टीप या प्रस्ताव अंकित कर प्रभाग के प्रभारी के माध्यम से उच्चादेशार्थ प्रस्तुत किया जाता है और समक्ष स्तार का अनुमोदन प्राप्त कर तदनुसार आदेश निर्गमन की कार्यवाही संपादित की जाती है।
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में भी यही प्रक्रिया प्रचलित है, किंतु श्री हुसैन द्वारा प्रकाशन प्रभाग में उक्त प्रक्रिया का उल्लंघन कर कार्यवाही की जाती रही है। अन्य विभागों द्वारा निदेशक सूचना को जो पत्र प्रेषित किए जाते थे वह निदेशक सूचना को प्राप्त ही नहीं होते थे और श्री हुसैन द्वारा उन्हें अनाधिकृत रूप से सीधे प्राप्त कर लिया जाता था तथा अपने स्तर से मनमाने ढंग से कार्यवाही की जाती रही है।
दूसरे बिंदू में जांच समिति ने लिखा कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अन्य विभागों के उच्चाधिकारियों द्वारा निदेशक सूचना को नाम से अर्द्धशासकीय पत्र प्रेषित किए जाते थे किंतु ऐसे पत्र भी श्री हुसैन द्वारा दुराशय से सीधे प्राप्त कर लिया जाता था और उसे अधोहस्ताक्षरी के संज्ञान में नहीं लाया जाता था। सक्षम स्तर का अनुमोदन प्राप्त किए बिना ही कार्यवाही की जाती थी।
उल्लेखनीय है कि अर्द्धशासकीय पत्र जिस अधिकारी को प्रेषित किए जाते हैं वह बंद लिफाफे में होते हैं औन नियमानुसार उक्त पत्र को किसी अन्य अधिकारी को सीधे प्राप्त नहीं कराया जा सकता है, किंतु प्रकरण में अपर निदेशक, राज्य भूमि उपयोग परिषद, नियोजन विभाग का अर्द्धशासकीय पत्र दिनांक 5 दिसंबर 2014 को श्री हुसैन द्वारा प्राप्त कर लिया गया तथा उसे निदेशक सूचना के संज्ञान में लाए बिना ही अपने स्तर से आदेश जारी कर दिए गए।
जांच समिति ने इसे भी गंभीर कृत्य बताते हुए सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम 3 का उल्लंघन बताया। समिति ने जांच में लिखा कि श्री हुसैन दुरभिसंधि के तहत निदेशक सूचना को प्रेषित अर्द्धशासकीय पत्रों को भी नियमों के विपरीत प्राप्त कर लिया जाता था और उनके संज्ञान में लाए बिना ही अपने स्तर से कार्यवाही कर ली जाती थी, जो गंभीर अनियमितता है और उक्त कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आता है।
तीसरे बिंदु में जांच समिति ने लिखा कि श्री हुसैन द्वारा संगत पत्रावली प्राप्त कर अपने स्तर से सीधे आदेश पारित कर बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग से पत्रचार किया गया है। संबंधित टीप किसी सहायक या प्रशासनिक अधिकारी द्वारा प्रस्तुत नहीं की गई है और उक्त टीप पर श्री हुसैन के अतिरिक्त किसी अन्य कार्मिक के हस्ताक्षर नहीं हैं। यह विचारणीय है कि श्री हुसैन द्वारा किन निमयों या प्राइज़ के अंतर्गत सीधे आदेश पारित किए गए हैं? यह गंभीर त्रुटि है।
चौथे बिंदु में जांच समिति ने लिखा कि सचिव उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड लखनऊ के पत्र दिनांक 15 फरवरी 2014, जिसके द्वारा 8 लाख ब्रोशर छपवाकर बिल सत्यापित कर बोर्ड को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद फिर क्लयाण बोर्ड ने 7 जनवरी 2015 को 12 लाख ब्रोशर छपवाकर बिल भेजने का अनुरोध किया, लेकिन श्री हुसैन गलत तरीके से सूचना निदेशक को संज्ञान में लाए बिना अपने स्तर से ही बिना कोई मार्किंग किए अपने स्तर से प्रिंटर का चयन कर 20 लाख ब्रोशर का मुद्रण आदेश 13 जनवरी 2015 को निर्गत कर दिया। इसे जांच समिति ने गंभीर वित्तीय अनियमितता बताया।
आगे जांच समिति ने यह भी लिखा कि पत्रावली संख्या 18/2004 के पृष्ठ 5 पर अंकित टीप एवं उनके पत्र दिनांक 16 अक्टूबर 2014 कागज के नमूने को अनुमोदित करने, पत्र दिनांक 2 दिसंबर 2014 द्वारा नियोजन विभाग को उनकी एटलस के मुद्रण एवं बाइंडिंग पर आने वाले आगणन को उपलब्ध कराने का कार्य, पत्र दिनांक 7 नवंबर 2014 एवं द्वारा बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को बाजार दर बिल सत्यापित कर उपलब्ध कराने का कार्य तथा सूचना विभाग में डिजाइनिंग, डाई मेकिंग, डाई कटिंग, पोस्टिंग की दरें अनुमोदित न होने के उपरांत भी बाजार दर पर सत्यापन करते हुए उत्तर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड को पत्र दिनांक 15 जुलाई 2014 द्वारा आदेश निर्गत करने के कार्य किए हैं, जिसके लिए वह अधिकृत नहीं थे। इसमें श्री हुसैन की प्रिंटर के साथ प्रथम दृष्टया दुरभिसंधि प्रकटित होती है।
तत्कालीन निदेशक सूचना आशुतोष निरंजन ने अपने पत्र में लिखा कि प्रकरण में यह भी अवगत कराना है कि सूचना विभाग के शासनादेश संख्या 299/उन्नीस-2-2002-18/2002 दिनांक 2 मई 2002 में स्पष्ट रूप से यह अंकित है कि पंजीकृत मुदा्रणलयों को कार्य दिए जाने का अंतिम निर्णय निदेशक अथवा उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी के विवेकाधीन होगा। स्पष्ट है कि श्री हुसैन उक्त कार्य हेतु न तो सक्षम स्तर थे और न ही अधोहस्ताक्षरी द्वारा उन्हें उक्त कार्य हेतु अधिकृत किया गया था।
श्री निरंजन ने लिखा कि अमजद हुसैन, उप निदेशक प्रकाशन द्वारा जानबूझकर प्रिंटर्स से दुरभिसंधि के तहत दुराशय से की गई। उपरोक्त अनियमितताओं के दृष्टिगत उन्हें निलंबित करते हुए उनके विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील 1999 के अंतर्गत अनुशासनिक कार्रवाई करने का कष्ट करें। 13 जनवरी 2016 को प्रमुख सचिव सूचना अनुभाग 1 उत्तर प्रदेश शासन को भेजे गए पत्र में अमजद हुसैन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि जांच में तमाम गड़बडि़यों के जिम्मेदारी उन पर साबित हो रही थी।
दरअसल, अखिलेश शासन के ताकतवर अधिकारियों में शामिल प्रमुख सचिव सूचना नवनीत सहगल का पूरा वरदहस्त उपनिदेशक सूचना अमजद हुसैन के साथ था। इसी का परिणाम था कि अमजद को प्रकाशन जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उपर से प्रश्रय होने के चलते ही अमजद हुसैन अपने वरिष्ठ अधिकारी सूचना निदेशक को सुपरसीड करके और बिना उनके संज्ञान में लाए तमाम निर्णय लिए, जो भ्रष्टाचार की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इसके बाद भी कोई कार्रवाई ना होना समूचे सिस्टम पर सवाल खड़े करता है।
इसके अलावा भी इसने अपने चहेते और शुभचिंतकों को अलग-अलग तरीके से सूचना विभाग से लाभांवित कराया। इसका इतना आतंक था कि इसके डर से इसका कोई सहकर्मी इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। अब देखना है कि ताजा हवा जैसी महसूस हो रही योगी सरकार और नए प्रमुख सचिव सूचना अवनीश अवस्थी इस पर क्या कार्रवाई करते हैं?
लापरवाही पर हो चुकी है भर्त्सना
अमजद हुसैन आदतन अराजक रहा है। अपने काम के प्रति लापरवाह और गैरजिम्मेदार रहा है। 17 जून 2005 में अमजद हुसैन का तबादला मुख्यालय से मेरठ जनपद के लिए स्थानांतरित किया गया था। परंतु वह अक्सर वहां से गायब रहता था। जनपद मेरठ के तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपने पत्र दिनांक 8 फरवरी 2007 द्वारा यह आख्या भेजी थी कि अमजद हुसैन को कहीं भी सक्रियपूर्वक कार्य करते हुए नहीं देखा गया और यह संज्ञान में आया है कि यह अधिकारी न तो इस जनपद मुख्यालय पर और न मंडल मुख्यालय पर रहते हैं।
सूचना विभाग अनुभाग एक ने उक्त पत्र के आधार पर अमजद हुसैन से स्पष्टीकरण मांगा गया, जिस पर उसने 16 मार्च 2007 एवं 12 सितंबर 2007 को अवगत कराया कि जिलाधिकारी का कहना सत्य से परे है कि वह मेरठ मुख्यालय पर उपस्थित नहीं रहता। अमजद ने अपनी उपस्थिति प्रमाणित करने के लिए कुल 34 तिथियों का उल्लेख किया था, जिन पर महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा मंडल में भ्रमण किया गया। हालांकि अमजद ने अपने स्पष्टीकरण में कोई साक्ष्य नहीं दिया। कार्यालयी ज्ञाप में लिखा गया कि परिस्थिति गंभीर होने पर ही सामान्यता जिधाधिकारी या मंडलायुक्त या किसी जनपद या मंडल स्तरीय अधिकारी की शासन से शिकायत करते हैं। श्री हुसैन के स्पष्टीकरण के सम्यक परीक्षणोंपरांत यह पाया गया कि उनके द्वारा जानबूझकर अपने कर्तव्यों की अवहेलना की गई।
अनु सचिव राजाजाम के हस्ताक्षर वाले इस कार्यालयी ज्ञाप को 20 जून 2008 में जारी किया गया था। राजाराम के इस कार्यालय ज्ञाप में लिखा गया कि अतएव प्रकरण में सम्यक विचारोपरांत श्री राज्यपाल महोदय ने श्री हुसैन को निम्नवत तथ्यात्मक भर्त्सनात्मक प्रविष्टि दिए जाने का ओदश प्रदान करते हैं। ‘‘उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम तीन का उल्लंघन कर शासकीय आदेशों के अनुसार आचरण न करने के लिए तथ्यात्मक भर्त्सना की जाती है।’’
सरकारी आवास में चलता है कैटरिंग
अमजद हुसैन तथा इसके परिवार के लिए नियम-कानून कोई मायने नहीं रखते। राज्य सरकारें सरकारी आवास अपने कर्मचारियों को रहने के लिए देती है, लेकिन अमजद हुसैन और उनका परिवार सरकारी आवास का भी कामर्शियल इस्तेमाल करने से नहीं हिचकता है। सरकारी आवास से बाकायदे मुगलई क्यूशिन नाम से रेस्त्रां चलाया जाता है, जो होम डिलिवरी भी करती है। अमजद हुसैन को राज्य सरकार ने कैंट रोड स्थित डायमंड डेयरी कालोनी में ईडी 38 नंबर का मकान आवंटित किया है। इसी मकान से मिसेज हुसैन अपने कैटरिंग का काम करती हैं।
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