* इन्साफ के तराजू पर जारी है रुपयों का घृणित खेल
गोण्डा – यहाँ की हकीकत सुनाने लगेंगे तो पत्थर भी आंसू बहाने लगेंगे। शायर की ये पंक्तियां वज़ीरगंज थाने के पीड़ितों पर बिल्कुल स्टीक बैठती है जहाँ एक बेखौफ दरोगा पीड़ितों को कानूनी पैंतरे का डर दिखा कर उससे आज़ाद करने के लिये खुलेआम उनसे रुपयों का सौदा करता है और शासन प्रशासन की आँखों में धूल झोंककर आये दिन अपने काले कारनामो को बखूबी अंजाम देता है। काश सी.एम. की नज़रें यहाँ भी इनायत होती जहाँ सम्बंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के चलते व कुछ भ्रष्ट सफेद पोश नेताओं का अभय वरदान पाकर कानून की नुमाइंदगी करने वाला यह दरोगा खाकी को शर्मसार कर रहा है।
सरकार का सबका साथ सबका विकास का नारा भले ही टी.वी चैनलों के साथ देश के हर कोने में गुंजायमान हो रहा है मगर हकीकत तो यह है कि यहाँ ऊँची हनक रखने वालों का ही विकास हो रहा है क्योंकि यहाँ के कुछ खाकी व भ्रष्ट सफेदपोश नेताओं के चलते इस मिशन पर ग्रहण लग रहा है। और तो और पीड़ितों का साथ देने की बजाए यहाँ उन्हें दुश्वारियों के दलदल में धकेला जा रहा है। जिसके चलते फरियादियों को न्याय की तलाश में दर दर भटकना पड़ता है। जिसका जीता जागता प्रमाण थाना वज़ीरगंज का है जहाँ का दरोगा प्रमोद अग्निहोत्री का घृणित खेल किसी से छिपा नहीं है प्रकरण की बात करें तो थाना वजीरगंज क्षेत्र के उदयपुरग्रन्ट निवासी जानकी प्रसाद चौहान को बेकसूर होने होने के बावजूद खाकी के नुमाइन्दों के चलते कानून की चक्की में पिसना पड़ा। और उसे कानून को ताक पर रखने वाले दरोगा के हाथ 25 हज़ार रुपयों का नजराना पेश करना पड़ा। पीड़ित जानकी ने जो दर्द बयां किया वो चौकाने वाला था उसने बताया कि गांव के ही करीब उसका साखू , कटहल व सागवान का बाग है जिसका पूरा कागजात उसके पास है। बावजूद इसके हतवा का एक युवक ने फर्जी मुकदमा दायर कर रखा है। पीड़ित जानकी का कहना है कि वह बंवर साफ़ करके नुकसानदेह लकड़ियों को काट रहा था इसी बीच ग्राम हतवा का वह युवक लोगों के उकसाने पर थाने में जाकर मेरी शिकायत कर दी। तत्पश्चात मुझसे रुपये ऐंठने के चक्कर में कानून के रखवालों ने मुझे कागज़ दिखाने हेतु थाने बुलया। पीड़ित ने बताया कि वह जैसे ही थाने पहुंचा उसका कागज़ देखने की बजाय उसे लॉकअप में डाल दिया गया। और खाकी के नुमाइन्दों ने उससे यह कहा कि आचार संहिता के कारण तीन माह जेल में पड़े रहोगे अगर छुटकारा पाना है तो 50 हज़ार देने होंगे। मरता क्या न करता किसी तरह मामला 25 हज़ार पर तय हुआ और सलाखों से जानकी को आज़ाद कर दिया गया। बात यहाँ ख़त्म नहीं होती पीड़ित ने बताया कि थाने के दरोगा प्रमोद अग्निहोत्री ने उससे जब 25 हज़ार रूपए वसूल लिए तो बाद में गांव में जाकर उसे अलग बुलाकर कहने लगे कि अगर तुम बचना चाहते हो तो तुम्हे उन रुपयों के अतिरिक्त अभी और 50 हज़ार रुपये देने होंगे नही तो अलग से लकड़िया लाकर 4/10 का मुकदमा कायम कर दिया जायेगा तब न्ययालय का चक्कर काटते रहोगे। जिसे सुन पीड़ित का माथा चकराने लगा।। पीड़ित के अनुसार जब उसने बाद में दरोगा से फोन पर संपर्क साधा तो दरोगा ने कहा कि हमने तुम्हारे लड़के से प्रकरण के बारे में कई बार कहा मगर तुम नही मिले,इसमें तुम्हारे दोनों बच्चे भी फंसे हैं, गवाही ले आना तुम्हारा मर मुकदमा सही करा दूँ, तत्पश्चात जब पीड़ित ने यह कहा कि साहब जो 25 हज़ार दिया है क्या ये इस 50 हज़ार में से कम नहीं होगा तो दरोगा ने कहा वो तो बड़े साहब आपको छोड़ने के खातिर लिए थे। यह सुनकर पीड़ित ने जब यह कहा कि साहब 50 से कुछ कम नही हो पायेगा तो दरोगा ने यह कह कर फोन काट दिया कि ठीक है पहले थाने पर आइए। यहाँ सोचने का विषय तो यह है कि उन फरियादियों को न्याय कौन दिलाएगा जिसका शोषण खुद थाने की खाकी करती हो, ऐसे में वो सी.एम व अधिकारियों को छोड़ जाए तो जाए कहाँ?
* आखिर कहाँ गए 25 हज़ार
पीड़ित का कहना है कि बाग का पूरा कागज़ात होने के बावजूद उसे कानून के चक्की में पीसा गया और जबरन थाने के लॉकअप में डाला गया जहाँ छोड़ने के लिए दरोगा ने 25 हज़ार लिए और बाद में 50 हज़ार रुपयों का अतिरिक्त डिमांड करते रहे।
* जगी न्याय की उम्मीद
कानून के सताए पीड़ित को योगी सरकार एवं नवागत एस.पी व डी. एम से न्याय की उम्मीद है। उसका कहना है कि अगर यहाँ भी न्याय न मिला तो वह सी.एम के दरबार का रुख अख्तियार करेगा।
* क्या कहते हैं नवागत थानाध्यक्ष
प्रकरण के सन्दर्भ में नवागत थानाध्यक्ष गोरखनाथ सरोज का कहना है कि ये प्रकरण मेरे आने से पहले का है, जिसके बारे में मुझे किसी ने अवगत नही कराया, और अगर ऐसा हुआ है तो कानून सबके लिए बराबर है चाहे वह आम आदमी हो या फिर कानून का रक्षक ही क्यों न हो। कानून से बढ़कर कोई नहीं है।
प्रकरण में जब एसपी उमेश सिंह से उनके सीयूजी पर बात किया तो पीआरओ शैलेश सिंह ने मीटिंग में होने की बात कह कर कहा आडियो मेरे सरकारी नंबर पर भेज दे यह पहला वाकिया नहीं है इससे पूर्वभी एसपी से वर्जन लेने के लिए फोन किया गया तो फोन पीआरओ ने उठाया एसपी से बात नहीं हो सकी।
रिपोर्ट -केएसवर्मा
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