कुर्मी को ST का दर्जा देने सम्बन्धी केंद्र के पास कोई प्रस्ताव नहीं - न्यूज़ अटैक इंडिया
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कुर्मी को ST का दर्जा देने सम्बन्धी केंद्र के पास कोई प्रस्ताव नहीं

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लोकसभा की 14 सीटों वाले झारखंड में दो बड़े जाति समूह हैं आदिवासी और कुर्मी। राज्य की लगभग आधी आबादी इन्हीं दोनों की है। बाबूलाल मरांडी को प्रदेश की कमान सौंपने के बाद भाजपा कुर्मी समूह को साधने के प्रयास में है।  कुड़मी समाज के युवा विगत कई वर्षो से कुर्मी जाति को ST में शामिल करने हेतु लगातार आंदोलन किए , इस आंदोलन की वजह से हजारो युवा जेल की सलाखों के भीतर गए किन्तु आंदोलन की गति तेजी से बढ़ती रही ,लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक बार फिर कुड़मी को ST दर्जा देने के सवाल तेज हो सकता है.

इस बीच एक समाचार पत्र के संबाद कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से मौजूदा सबसे ज्वलंत मुद्दा कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा देने की मांग से संबंधित सवाल पूछे जाने पर उन्होंने नये तथ्य बताये. मुंडा ने कहा कि यह संवैधानिक मुद्दा है. इसकी अपनी औपचारिकताएं हैं. इसके आधार पर ही चीजों को देखा जाता है. इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं है. देश में कई संस्थाएं ऐसी हैं, जो स्वतंत्र रूप से काम करती हैं, जैसे चुनाव आयोग, सेंसस ऑफ इंडिया , न्यायपालिका आदि. इनकी अलग-अलग भूमिका है. ऐसे में हमें इन्हें उनके दायित्व पर छोड़ना चाहिए. फिलहाल केंद्र के पास कुर्मी को आदिवासी का दर्जा देने का कोई मामला लंबित नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने यह कहते हुए पत्र वापस ले लिया है कि इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है.

केंद्रीय मंत्री से पूछा गया कि हेमंत सोरेन सरकार का कहना है कि सरना धर्म कोड, ओबीसी आरक्षण जैसे मामले केंद्र सरकार ने लटका कर रखा है, इस पर केंद्रीय मंत्री का कहना था कि यदि आप इसके तह में जायेंगे तो यह ध्यान में आ जायेगा कि वे इस विषय पर कितने गंभीर हैं. ट्राइबल की पहचान परंपरा और उसके आचरण से होती है, न कि सिर्फ धर्म से. देश में जनजातियों के 700 से अधिक समुदाय हैं. इनकी परंपरा व आचरण को परिभाषित किया गया है. इस तरह के विषय को सिर्फ एक प्रदेश से जोड़ कर देखना उचित नहीं है. सिर्फ झारखंड में ही ट्राइबल होते और यह विषय आता, तो निर्णय लिया जा सकता था. देश में ट्राइबल के 700 समूह हैं. सभी की अलग-अलग परंपराएं हैं. सभी को एक तरीके से धर्म के आधार पर जोड़ना सही नहीं है. यह न तो संवैधानिक होगा और न ही जनजातीय के हित में. इसके लिए देश में एक फोरम बना कर सारे ट्राइबल के हितों को ध्यान में रखते हुए समग्रता के साथ विचार करने की जरूरत है. यह मुद्दे राजनीतिक नहीं है. सभी की धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन इसे सिर्फ इसी से जोड़ कर नहीं देख सकते हैं. हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि इस मांग के पीछे उनकी मंशा क्या है. वे आदिवसियों को एकजुट देखता चाहते हैं कि नहीं? इस विषय पर वृहत फोरम पर बात करनी चाहिए. सिर्फ एक राज्य की बात करना सही नहीं होगा.

पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली शिकस्त और आदिवासी सीटें नहीं जीत पाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ मुद्दे तो उस समय उभरे थे, जिस पर हमने भी सुझाव दिया था कि इन चीजों पर ध्यान रखना चाहिए. अगर उन चीजों का ध्यान रख कर हम काम करेंगे, तो और अच्छा होने की गुंजाइश बनी रहेगी. हालांकि कुछ मुद्दों का राजनीतिक लाभ लेने के लिए ज्यादा प्रयत्न किया गया. हेमंत सरकार के कामकाज पर उन्होंने कहा कि इसका आकलन जनता को करने दीजिए. बेहतर यही होगा. कुल मिलाकर इस सरकार को देखा जाये तो वास्तविकता का पता चल जायेगा, यहां कैसी स्थिति है. राज्य की विश्वसनीयता बनी रहनी चाहिए. अगर आप विश्वसनीय नहीं हैं, तो संकट वहीं से प्रारंभ हो जाता है. इस समय शासन पर जो सवाल उठ रहे हैं. हम समझते हैं, राज्य की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. इसका ध्यान शासन में जरूर रखना चाहिए. क्योंकि शासन लोकतांत्रिक है. लोकसभा चुनाव के बाबत श्री मुंडा ने कहा कि 2014 में देश ने एक नये तरीके से निर्णय दिया और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कमान सौंपी. उन्होंने इन पांच वर्षों में पूरे जनमानस के लिए एक नीति अपनायी. ऐसे में लोगों को लगा कि देश की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है. एक धारणा बनी कि भविष्य के बारे में देखने से पहले यह सोचना चाहिए कि हम आंतरिक व बाहरी से सुरक्षित हैं कि नहीं. दूसरा यह है कि प्रधानमंत्री ने ऐसी योजनाओं का सूत्रण किया, जिसमें आम व्यक्ति केंद्रित रहे. इसके साथ डिलेवरी मैकेनिज्म को मजबूत किया गया. यही वजह है कि डिलेवरी मैकेनिज्म नीचे तक पहुंचा. इसका अच्छा परिणाम आया. 2019 के चुनाव में उससे भी ज्यादा ताकत के साथ जनता का समर्थन प्राप्त हुआ. जहां तक कि विधानसभा का सवाल है तो इसमें राष्ट्रीय से ज्यादा क्षेत्रीय मुद्दे प्रभाव डालते हैं. चुनाव हारना-जीतना लगा रहता है. कई बार परिस्थितियां अनुकूल होने के बावजूद परिणाम प्रतिकूल हो सकते हैं. यह पूछे जाने पर कि हेमंत सोरेन सरकार लगातार भ्रष्टाचार के मामले में घिर रही है. सरकार का कहना है कि इडी और सीबीआइ जैसी एजेंसी का केंद्र सरकार दुरुपयोग कर रही है. उन्होंने कहा कि एजेंसियों का सदुपयोग व दुरुपयोग का फैसला हम इस समय नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है. वहां पर उनको बताना चाहिए. क्या हो रहा है. नहीं हो रहा है. इसे राजनीतिक दृष्टि से देखना उचित नहीं है. क्योंकि कई चीजें दस्तावेज के साथ सामने आ रही हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी का कौन चेहरा होगा इस पर उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी लोकतांत्रित तरीके से चुने हुए प्रधानमंत्री है. लेकिन कुल मिलाकर पार्टी चुनाव लड़ती है. किस राज्य के लिए क्या रणनीति होगी. इसे पार्टी तय करेगी.

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