भूमिहीन दलित, आदिवासी, पिछड़े और पसमांदा समाज के लिए मांगी जमीन, मिली जेल - न्यूज़ अटैक इंडिया
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भूमिहीन दलित, आदिवासी, पिछड़े और पसमांदा समाज के लिए मांगी जमीन, मिली जेल

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लखनऊ। दलित, पिछड़ा, मुस्लिम गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों को एक-एक एकड़ जमीन देने की मांग को लेकर कमिश्नर कार्यालय गोरखपुर में दस अक्टूबर को पूरे दिन चले डेरा डालो – घेरा डालो आंदोलन के बाद पुलिस ने पूर्व आईजी एवं दलित चिंतक एसआर दारापुरी, लेखक-पत्रकार डाॅ सिद्धार्थ, अम्बेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला सहित 13 नामजद और 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ कैंट थाने में एफआईआर दर्ज किया।

इन लोगों के खिलाफ सरकारी काम काज में बाधा डालने, तोड़फोड़ करने, निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में आईपीसी की धारा 147, 188, 342, 332, 353, 504, 506, दंड विधि संशोधन अधिनियम 1932 की धारा 7, सार्वजनिक सम्पत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 की धारा 3 ओर विद्युत अधिनियम 2033 की धारा 138 के तहत केस दर्ज किया गया है।

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यह एफआईआर कमिश्नर गोरखपुर के नाजिर राजेश कुमार शर्मा द्वारा दर्ज कराई गई है। तहरीर में कहा गया है कि 10 अक्टूबर की सुबह 10 बजे कमिश्नर कार्यालय परिसर में श्रवण कुमार निराला, ऋषि कपूर आनंद, सीमा गौतम, राजेन्द्र प्रसाद, ड0 रामू सिद्धार्थ, नीलम बौद्ध, सविता बौध, दीदी निर्देश सिंह, अयूब अंसारी, दारापुरी, जयभीम प्रकाश, देवी राम, सुधीर कुमार झा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जबरन कार्यालय परिसर में घुस गए और कार्यालय से बिजली का तार जोड़कर बिजली चोरी करते हुए माईक लगाकर जनसभा करने लगे। मना करने पर इन लोगों ने मेरे साथ धक्का मुक्की की जिससे मैं गिर गया। ये लोग कार्यालय में घुस गए और हम लोगो को गालियां देते हुए सरकारी दस्तावेज फाड़ दिए, सरकारी फूल के गमलो को तोड़ दिए। पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता एसआर दारापुरी, डॉ रामू सिद्धार्थ, श्रवण कुमार निराला, ऋषि कपूर सहित आधा दर्जन से अधिक लोगो को गिरफ्तार किया। पुलिस ने फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक हेराल्ड वैलेटिन जीन रोजर को भी इस मामले में गिरफ्तार कर लिया है। उनके ऊपर कमिश्नर कार्यालय परिसर में आयोजित आंदोलन में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। जबकि आंबेडकर जनमोर्चा के सदस्यों का कहना है कि वे दलितों से जुड़े सवालों को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री के निर्माण के लिए आए थे।

दलित, पिछड़ा, मुस्लिम गरीब मजदूर भूमिहीन परिवारों के हितो एवं अधिकारों हेतु आन्दोलन के बाद गोरखपुर में गिरफ्तार पूर्व आईजी और दलित चिंतक एसआर दारापुरी, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. सिद्धार्थ और अंबेडकर जन मोर्चा के संयोजक श्रवण कुमार निराला समेत 10 लोगों की जमानत याचिका को सीजीएम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

सीजीएम कोर्ट के द्वारा जमानत याचिका खारीज करने के बाद ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी की गिरफ्तारी और उनकी रिहाई के संदर्भ में आइपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने राष्ट्रपति भारत गणराज्य को पत्र भेजा है। पत्र को समर्थन करने के लिए कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, सपा, बसपा, राजद, जेडीयू, आप, द्रमुक, त्रिमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और टीआरएस को भी भेजा गया है।

पत्र में कहा गया कि आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी, पत्रकार डॉ सिद्धार्थ रामू, अम्बेडकर जन मोर्चा के श्रवण कुमार निराला और गोरखपुर में अन्य की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार को राजनीतिक मान्यता और मर्यादा की कतई परवाह नहीं है सीधे-सीधे कानून सम्मत कार्यवाही की जगह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर शासन करती है। आयुक्त कार्यालय प्रांगण में शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई सभा को सम्बोधित करने वाले दारापुरी जी जैसे जिम्मेदार नागरिक को दूसरे दिन गिरफ्तार करके 307 के तहत जेल भेज उन्हें विदेशी ताकतों से सांठ-गांठ करने वाले के बतौर भी पेश करने की कोशिश हो रही है जबकि उनकी नागरिकता और देशभक्ति की प्रमाणिकता दशकों तक बतौर आईपीएस प्रशासनिक भूमिका निभाने में दर्ज है। 

इस मुद्दे पर रिहाई मंच ने पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, पत्रकार सिद्धार्थ रामू, दलित नेता श्रवण कुमार निराला की गिरफ्तारी को गैर-कानूनी बताते हुए तत्काल रिहाई की मांग की. रिहाई मंच ने अंबेडकर जन मोर्चा के नेताओं की गिरफ्तारी को योगी सरकार का दलित विरोधी कृत्य करार देते हुए जन आंदोलन को कुचलने साजिश करार देते हुए रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दलित, पिछड़ा, मुस्लिम और वंचित समाज के भूमिहीनों के लिए एक-एक एकड़ भूमि की मांग करना योगी राज में अपराध हो गया है. अपराध तो यह है कि आज तक यह क्यों भूमिहीन थे. सरकार इसका जवाब दे. अंबेडकर जनमोर्चा द्वारा कमिश्नर कार्यालय पर घेरा डालो, डेरा डालो आंदोलन के बाद कमिश्नर के देर तक न आने का कारण मांग करने वाले वंचित समाज के लोगों को रुकना पड़ा. कमिश्नर द्वारा ज्ञापन लेने में देरी की वजह से दूर-दराज से आई महिलाओं को परेशानी हुई. इस दलित महिला विरोधी कृत्य के लिए गोरखपुर कमिश्नर पर एफआईआर होना चहिए था. गोरखपुर में योगी राज में दलितों पर यह एफआईआर साबित करता है कि सरकार दलित विरोधी है. जिस भूमिहीन समाज का जीवन बाधित किया जा रहा है, वह समाज जब अपने अधिकारों की मांग करता है तो सरकार उसे सरकारी काम में बाधा बताती है. इतना ही नहीं ऐसी मांगो में शामिल लोगों पर हत्या के प्रयास की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है. जिनके पुरखों को व्यवस्था कत्ल करती रही है अब उन्हें ही कातिल ठहराया जा रहा है.

मुकदमा तो प्रशासन पर दर्ज हुआ चाहिए कि जब नागरिक लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन करते हुए ज्ञापन देना चाहते थे तो ज्ञापन लेने में क्यों देरी की गई. अंबेडकर जनमोर्चा के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मुकदमा करके भूमिहीनों के जमीन की मांग को नहीं दबाया जा सकता. सरकार जनांदोलनों को दबा करके कार्पोरेट के लिए काम कर रही है. इस मुकदमे के लिए योगी आदित्यनाथ सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, जो नहीं चाहते कि गोरखपुर में वंचित समाज हक और हकूक को लेकर सवाल उठाए.

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