प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट और आदिवासियों का बर्बर दमन - न्यूज़ अटैक इंडिया
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प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट और आदिवासियों का बर्बर दमन

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नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में भारी पुलिस एवं सुरक्षा बलों के बीच कोयला खनन के लिए हसदेव अरण्य में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई और आदिवासियों का उत्पीड़न किया जा रहा है। 21, 22 और 23 दिसंबर, 2023 यानि तीन दिनों के भीतर लगभग 50,000 पेड़ों की बेरहमी से कटाई की गई। और कोयला खदानों का विरोध करने वाले स्थानीय संगठन हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्यों और प्रभावित आदिवासी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई और गिरफ्तारियां की गईं।

केंद्र सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और राजस्थान सरकार के इस आदिवासी विरोधी, पर्यावरण विरोधी और वन्यजीव विरोधी कार्रवाई के विरोध में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने मंगलवार यानि 2 जनवरी 2024 को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एक प्रेस कॉफ्रेंस करके छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य और ओडिशा के सिजिमाली क्षेत्र में वेदांता की बॉक्साइट खनन परियोजना के लिए जंगलों से ग्रामीणों को जबरन उजाड़ने की कार्रवाई को मीडिया के माध्यम से देश के समक्ष साझा किया।

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प्रेस कॉफ्रेंस में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के अमेश्वर सिंह अरमो, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरे, वरिष्ठ पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण और बड़ी संख्या में पत्रकार, कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने कहा कि “छत्तीसगढ़ से लेकर ओडिशा तक ‘विकास’ के एजेंडे के लिए आदिवासियों का विस्थापन और उनके विरोध का अपराधीकरण किया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण और खनन से संबंधित कानून की सभी उचित प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया जा रहा है। और साथ ही जनता, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। जैसे ही भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ में आई उसने अपने पसंदीदा कॉर्पोरेट अडानी के लिए संसाधनों को लूटना और आदिवासियों का दमन करना शुरू कर दिया। 

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भारत के बीचोंबीच में जो जंगल दिखाई देता है उसे हसदेव अरण्य कहते है। जमीन के ऊपर सैकड़ों वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ घना जंगल और जंगलों के नीचे करोड़ों टन कोयले का भंडार। अब तक जंगल से हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग तकरीबन 10 साल से ज्यादा समय से विरोध करते आ आए हैं। छत्तीसगढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में हसदेव में कोयला खनन की अनुमति को ‘धोखा’ कहा था। लेकिन सरकार बनते ही अडानी की खदानों के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हो गई।

हसदेव अरण्य क्या है?

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित हसदेव अरण्य क्षेत्र तकरीबन 1,876 वर्ग किलोमीटर का इलाका है। क्षेत्रफल के लिहाज से यह दिल्ली से भी बड़ा है। यह जंगल तीन राज्य में फैला हुआ है। यह पूरा इलाका घने वनों, जैव विविधता, जल स्रोत यानी दुर्लभ वन प्रजातियों के लिहाज़ से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस इलाके को “नो गो को जोन” यानि यहां पर कोयला खनन की इजाजत नहीं होगी। हसदेव की जमीन के भीतर मौजूद कोयला को निकालने के लिए जंगलों को नहीं काटा जा सकता। कोयला मंत्रालय के मुताबिक, हसदेव अरण्य के पूरे इलाके में जमीन के नीचे 2032 मिलियन टन यानी 203 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान लगाया गया है।

दिसंबर 2011 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के साझे अध्ययन से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें हसदेव अरण्य में पड़ने वाले 23 कोयला ब्लॉक नो गो जोन के तौर घोषित कर दिया गया था। साल 2010 में पर्यावरण मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने सिफारिश की कि हसदेव अरण्य के इलाके में कोयला खनन का काम नहीं होना चाहिए।

इस तरह की रिपोर्ट के बावजूद हसदेव अरण्य में पड़ने वाले परसा ईस्ट केते में खनन को मंजूरी दे दी गई। यह कोयला खदान राजस्थान सरकार का है। जब छत्तीसगढ़ का यह कोयला खदान राजस्थान को दिया गया था, उस समय राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार थी। माइन डेवलपर ऑपरेशन ठेकेदार के तौर पर इस खदान का मालिकाना हक अडानी एंटरप्राइजेज के पास है। यानी कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण से लेकर पर्यावरण स्वीकृति, वन स्वीकृति आदि की जिम्मेदारी कंपनी की होगी और फिर कंपनी कोयला निकालकर राजस्थान सरकार को सप्लाई करेगी। जमीन के नीचे से कोयला निकालने का काम कारोबारी गौतम अडानी की कंपनी कर रही है, जो कोयला ब्लॉक की मालिक भी है।

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सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 मे कांग्रेस के दौर में जारी किए गए 204 कोयला ब्लॉक के आवंटन को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ज्यादातर कोयला ब्लॉकों का आवंटन मनमाना और गैरकानूनी है। कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए इस तरह का गैरकानूनी रास्ता बन गया है कि पिछले दरवाजे से व्यावसायिक मकसद के लिए प्राइवेट कंपनियों को कोयला खनन की इजाजत मिल जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा कानून केंद्र सरकार की कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित करने की इजाजत देता है मगर राज्य सरकार के अधीन कंपनियों को नहीं।

इसके बाद साल 2014 में भाजपा चुनाव जीतकर आई। नरेंद्र मोदी कोयला घोटाले के लिए नया कानून भी लेकर आए। मगर उसमें इस तरह के नियम-कायदे बनाए गए कि अडानी या निजी कंपनियों का छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में मिला खनन का अधिकार खारिज न हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हसदेव अरण्य में अडानी को मिला कोयला खनन का अधिकार भी खत्म हो जाना चाहिए था। इस तरह से कांग्रेस के जयराम रमेश ने वन सलाहकार समिति की सिफारिश को खारिज करते हुए हसदेव अरण्य के किनारे पर कोयला खनन का अधिकार दिया। भाजपा की वसुंधरा राजे की सरकार ने इस कोयला खनन के अधिकार को कंपनी बनाकर अडानी लिमिटेड को बेच दिया।

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अडानी समूह की कंपनी के खनन अधिकार को खत्म कर देना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ।हसदेव अरण्य का इलाका संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है। संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए इलाकों को संभालने के लिए प्रशासनिक अधिकार मिले हुए हैं। इसके मुताबिक, जब तक ग्राम सभा सहमति नहीं देगी तब तक खनन के लिए भूमि अधिग्रहित नहीं की जा सकती है। इसी अधिकार का इस्तेमाल करके हसदेव अरण्य की 20 ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव पारित किया कि वन अधिकार कानून के तहत इस इलाके को कोयला खनन के लिए आवंटित नहीं किया जाना चाहिए।

हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला का कहना है, ‘2015 के बाद तीन-तीन बार ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव जारी किया कि वह खनन का अधिकार नहीं देंगे, इजाजत नहीं देंगे। मगर साल 2018 में फर्जी सहमति ली गई। 2018 में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार सत्ता में आई। इसने भी इस फर्जी सहमति पर कोई जांच नहीं करवाई। जबकि 2015 में राहुल गांधी ने आदिवासियों के संघर्ष में खड़ा होकर कहा था कि हम आपके संघर्ष के साथ खड़े हैं और बिना आपकी सहमति से कोयला नहीं निकाला जाना जाना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, ‘फर्जी ग्राम सभा की जांच और उस पर कार्रवाई के लिए 75 दिनों तक लोगों ने धरना दिया मगर प्रशासन का कोई भी व्यक्ति सुनते नहीं आया और फर्जी ग्राम सभा के आधार पर ही वन स्वीकृत की प्रक्रिया आगे बढ़ती रही। अंततः जब ग्राम सभा की बात नहीं सुनी गई तब 2 अक्टूबर 2021 के दिन आदिवासियों ने 300 किलोमीटर पैदल यात्रा की और 14 अक्टूबर 2021 को रायपुर में पहुंचकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात की। मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ने कहा कि आपके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा जब तक ग्राम सभा की सहमति नहीं मिलेगी तब तक कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी। यह सब केवल सरकारी शासन आश्वासन था। झूठा दिलासा था। आज तक फर्जी ग्राम सभा पर जांच नहीं हुई है।’

अब नियम कानून सबको अलग रखकर हसदेव अरण्य के परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के दूसरे चरण के खनन और परसा कोल ब्लॉक के खनन के लिए वनों की कटाई की जा रही है। इसमें तकरीबन 4.5 लाख के आसपास वन काटे जाएंगे। आलोक शुक्ला का कहना है कि बीते 21 दिसंबर को परसा ईस्ट केते बासन के दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए 91 हेक्टेयर जमीन पर वनों की कटाई शुरू हुई। बिना ग्राम सभा की सहमति के। 500 पुलिस वालों की तैनाती में 500 इलेक्ट्रिक आरा मशीन ने तकरीबन 30 हजार पेड़ काट दिए। जबकि आधिकारिक आंकड़ा 15 हजार का बताया जा रहा है।

साभार – प्रदीप सिंह (दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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