आरक्षण पर कुठाराघात कर यूजीसी ने निकाले नौकरी के विज्ञापन - न्यूज़ अटैक इंडिया
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आरक्षण पर कुठाराघात कर यूजीसी ने निकाले नौकरी के विज्ञापन

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देश में मौजूदा सरकार आरक्षण व्यवस्था पर कुठाराघात करने पर लगातार आमादा है ,जबकि संबिधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत पिछड़े वर्ग के नागरिकों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत अनुसूचित जाति(एससी), अनुसूचित जनजाति(एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों को समय-समय पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है। मौजूदा प्रावधान के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति(एससी), अनुसूचित जनजाति(एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों को 15 फीसदी, 7.5 फीसदी और 27 फीसदी क्रमश: आरक्षण का प्रावधान किया गया है किन्तु मौजूदा सरकार मे नौकरी में एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर लगातार कुठाराघात हुआ जिसे लेकर तमाम बार हंगामा हो चूका है किन्तु वर्तमान सरकार आरक्षण प्रविधानो को दरकिनार कर तमाम विज्ञापन निकाल नियुक्तियां कर रही है।

ताजा मामला केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी से है , जहा ज्वायंट सेक्रेटरी के चार पद आरक्षण नियमावली को दरकिनार कर निकाले गए हैं, सार्वजनिक मंचो से आरक्षण की वकालत करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अधीन कार्यरत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने आरक्षण नियमो पर कुठाराघात करते हुए संविधान के अनुच्छेद 16(4) में प्रदत अनुसूचित जाति(एससी), अनुसूचित जनजाति(एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों हेतु प्रद्दत आरक्षण व्यवस्था को दरकिनार कर केवल जनरल कैटेगरी हेतु विज्ञापन प्रकाशित कर आबेदन मांगे गए है।

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रकशित इस विज्ञापन को रद्द कर आरक्षण नियमो को शामिल कर पुनः विज्ञापन जारी करने की मांग उठने लगी है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक चिंतक दिलीप मंडल ने आरक्षण की अनदेखी कर प्रकशित विज्ञापन को रद्द करने की मांग करते हुए सोसल मीडिया X पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि ये बेहद गंभीर मसला है। केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने ज्वायंट सेक्रेटरी के चार पद निकाले हैं और आश्चर्यजनक रूप से इसमें रिज़र्वेशन लागू नहीं किया है। आम तौर पर मंत्रालय ऐसी बदमाशी इतना खुलकर नहीं करते हैं। ये नीति बनाने वाले पद हैं। और इन पदों पर एससी, एसटी, ओबीसी की अनुपस्थिति पहले से ही राष्ट्रीय चिंता का विषय है। ऐसे में बिना आरक्षण के विज्ञापन लाना आपराधिक कार्य है। सरकार से माँग है कि तत्काल ये विज्ञापन वापस लें और संवैधानिक आरक्षण के साथ नया विज्ञापन लाए।

आज भी मुख्यधारा के भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा केवल विशेष व समृद्ध वर्ग के लोगों की चिंताओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है. इस संविदा में हाशिए पर खड़े समाज जिसमें देश के पिछड़े ,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाएं, अल्पसंख्यक, किसान, मजदूर शामिल हैं, उनके हितों एवं संघर्षों को आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है. हाशिए पर खड़े इस समाज की आवाज बनकर उनका साथ देने का न्यूज़ अटैक एक प्रयास है. उम्मीद है आप सभी का सहयोग मिलेगा.
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