लखनऊ। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दिलाने के लिए 268 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। करीब तीन लाख विद्यार्थियों की शुल्क प्रतिपूर्ति की व्यवस्था इसके माध्यम से की गई है। पिछले वर्षों में शुल्क प्रतिपूर्ति न होने के कारण निजी स्कूल तरह-तरह के बहाने – बनाकर विद्यार्थियों को दाखिला नहीं दिए । बीते मार्च महीने में 181 करोड़ रुपये की धनराशि शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए दी जा चुकी है। अब इन स्कूलों में कक्षा एक से कक्षा आठ तक विद्यार्थियों को 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश देने के नियम को आगे और सख्ती के साथ लागू कराया जा सकेगा।
आरटीई के तहत करीब 42 हजार निजी स्कूलों में कुल साढ़े चार लाख से अधिक सीटें हैं, लेकिन निजी स्कूल निःशुल्क प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं। इस वर्ष भी करीब 80 हजार विद्यार्थी ही प्रवेश पा सके हैं। हर महीने प्रति छात्र 450 रुपये शुल्क और वार्षिक पांच हजार रुपये स्टेशनरी इत्यादि खरीदने के लिए दिए जाते हैं।
बताया जाता है शिक्षा का अधिकार अधिनियम में गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा की बाध्यता के बाद भी शिक्षा विभाग एवं प्राइवेट शिक्षण संस्थाओ की मिलीभगत से छात्रों को निशुल्क शिक्षा तो नहीं मिलती अपितु सरकारी धन का बंदरबाट हो जाता है। उक्त शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निजी विद्यालयों में कुल छात्र संख्या में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को प्रवेश के माध्यम से निःशुल्क शिक्षा देने को बाध्य किया गया है किन्तु शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों को प्रदेश के लगभग 95 प्रतिशत निजी विद्यालयों द्वारा ठेंगा दिखाते हुए गरीब परिवार के बच्चो के शिक्षा की हकमारी कर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रखा गया है। शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 में वर्णित नियमो को ताक पर रख निजी शिक्षण संस्थान शिक्षा विभाग के अधिकारियो की मिली भगत से खुले आम संचालित हो रहे है। जिला प्रशासन भी मौन धारण करते हुए निजी शिक्षण संस्थानों को मनमानी करने की मौन स्वीकृत दे चूका है जिस कारण आज तक शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 का उलंघन कर रहे शिक्षण संस्थानों पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं हुई।
भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक के प्रदेश प्रभारी पूर्वांचल कुंवर ऊदेन्दु उर्फ़ आशु चौधरी ने कहा कि शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत 25 प्रतिशत गरीब बच्चों की शिक्षा निजी विद्यालयों में निःशुल्क की गई है, जिसका खर्चा स्वयं सरकार वहन करती है, तांकि गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित ना रहे परंतु निजी विद्यालयों में इसके पीछे एक बहुत बड़ा खड्यंत्र हो रहा है। विद्यालयों द्वारा शासन को भेजी जाने वाली सूची में बड़े पैमाने पर भ्रस्ट्राचार का खेल चल रहा है। शिक्षा विभाग को विद्यालय प्रबंधन द्वारा भेजी गई सूची में गरीब बच्चों की जगह उनके सगे संबंधियों व रिश्तेदारों के बच्चो के नाम अंकित होते है जिन्हे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र के रूप में दर्शाया जाता है। इस बार भी सरकार ने निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा के लिए 268 करोड़ रुपया आवंटित किया है , उन्होंने आशंका जाहिर किया है कि शिक्षा विभाग एवं निजी शिक्षण संस्थानों की मिली भगत से कही आवंटित 268 करोड़ का बंदरबाट न हो जाय। इस मुद्दे पर सरकार को सख्त रवैया अपनाते हुए एक सर्वेक्षण टीम बनाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को आरटीआई भेज कई विन्दुओ पर जानकारी मांगी गई है। जल्द ही हमारा संगठन इस मुद्दे पर हाईकोर्ट लखनऊ में पीआईएल दाखिल कर निजी विद्ययालयो पर लगाम लगाने की मांग करेगा ताकि गरीव बच्चे शिक्षा से बंचित होने से बच सके।
आरटीआई में मांगी गई जानकारी :
- जनपद में शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत सम्मिलित विद्यालयो की सूची
- जनपद में संचालित सम्पूर्ण विद्यालयो की सूची एवं पंजीयन /मान्यता की स्थिति
- शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत जनपद के निजी शिक्षण संस्थान में निःशुल्क अध्यनरत छात्र/ छात्राओं के अभिभावक , दुरभाष एवं शिक्षण संस्थान की विवरण सहित सूची
- शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत 25 प्रतिशत निःशुल्क शिक्षा हेतु प्रवेश के मानक को पूर्ण करने एवं अपूर्ण मानक के विद्यालयो की सूची
- शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निःशुल्क शिक्षा के मानकों पर खरा न उतरने वाले शिक्षण संस्थानों के विरुद्ध कार्यवाही का विवरण
- निजी शिक्षण संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों की शैक्षिक योग्यता व मानदेय का विस्तृत विवरण अलग -अलग संस्थान की सूची
- जनपद में शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के प्रचार -प्रसार के मद में हुए खर्च का विवरण प्रपत्र सहित
- शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अध्यनरत छात्र / छात्राओं को दी गई सम्पूर्ण सुबिधा एवं उक्त मद में खर्च का सम्पूर्ण विवरण